'...इससे चुनाव जीतने का मजा नहीं', पढ़ें बहुमत की बात पर कांग्रेस नेता टीएस सिंहदेव का बेबाक इंटरव्यू
Exclusive Interview TS Singh Deo छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के कद्दावर नेता टीएस सिंह देव ने संविधान पर खतरे से लेकर भूपेश बघेल सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर खुलकर बात की। उन्होंने विधानसभा चुनाव में हार के कारण और लोकसभा चुनाव 2024 की रणनीति पर भी अपनी राय रखी। पढ़िए टीएस सिंह देव से हुई खास बातचीत...
संदीप तिवारी, रायपुर। त्रिभुवनेश्वर शरण सिंहदेव, जिनका प्रचलित नाम टीएस सिंहदेव या टीएस बाबा है, छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग के कांग्रेस के कद्दावर नेता हैं। वह जून 2023 से दिसंबर 2023 तक छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री भी रहे।
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें 16 सदस्यीय घोषणा पत्र समिति का संयोजक भी बनाया है। सिंहदेव का मानना है कि देश में बहुमत का दुरुपयोग हो रहा है। इससे देश का प्रजातांत्रिक ढांचा संकट में है। विपक्ष को दबाने और कुचलने का प्रयास चल रहा है।
उनका मानना है, 'केंद्र की सरकार चाहती है कि विपक्ष को दबाएंगे तो तभी तो सत्ता में आएंगे। इस पर काम चल रहा है।' पेश है जागरण नेटवर्क के राज्य ब्यूरो प्रभारी संदीप तिवारी व पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव के बीच हुई खास बातचीत के प्रमुख अंश:-
सवाल- कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल कह रहे हैं कि तीसरी बार मोदी आए तो संविधान बदल देंगे, क्या संविधान खतरे में है ?
जवाब - केंद्र ने बहुमत के आधार पर कई कानून बनाए हैं। कई फैसलों के खिलाफ मामले सुप्रीम कोर्ट तक गए हैं। जम्मू-कश्मीर की बात देखिए कि सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया कि सितंबर तक वहां चुनाव कराइए। अभी तक बात नहीं मानी। क्या यह संवैधानिक संकट नहीं है?
इलेक्टोरल बांड की पहल को असंवैधानिक करार दे दिया। ईडी पर कोर्ट ने कह दिया कि संयमित उपयोग होना चाहिए। मान लें कि थानेदार को किसी को भी थाने में बैठाने का अधिकार है तो किसी को भी बैठा देंगे? संख्याबल और बहुमत के आधार पर सब कुछ बदलने में लगे हैं। इन्हीं के लोग कहते हैं कि संविधान बदल देंगे।
सवाल- कांग्रेस के घोषणा पत्र समिति के लिए राष्ट्रीय संयोजक नियुक्त होने के नाते आप कांग्रेस की न्याय की गारंटी से कितना आश्वस्त हैं?जवाब- यह मेरे लिए बहुत सम्मान और संतोष का विषय है कि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के 2024 के लोकसभा चुनाव में घोषणा पत्र बनाने के लिए सहभागी बनने का मौका मिला। पांच अप्रैल को हम अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी करेंगे। उसमें सारी बातें आ जाएंगी।
उन्होंने कहा कि कम से कम मुझे दूसरों से कोई मतलब नहीं है, हमने क्या किया इससे मतलब है। उसने काम नहीं किया, क्या नहीं किया, इससे चुनाव जीतने का मजा नहीं है। हमने क्या किया, इसमें चुनाव जीतेंगे। कांग्रेस ने किसानों, महिलाओं, युवाओं, मजदूरों, रोजगार नौकरी के लिए कई न्याय की गारंटी दी है। जो घोषणाएं की हैं वह सामने हैं और शेष बड़े पैमाने पर सामने आ जाएंगी।सवाल- कांग्रेस के कुछ नेता बागी होकर भाजपा में शामिल हो रहे हैं, इसकी वजह किसे मानते हैं?
जवाब- अवसरवादी हैं, न तो ठोस हैं न ही उनका पहले योगदान मिलता रहा होगा। इनमें कई उदाहरण हैं जो कि भाजपा से चुनाव लड़ (सरगुजा से चिंतामणि महाराज) रहे हैं। जो जहां जाना चाहते हैं, जाएं। ऐसे लोग केवल अपने हित की सोचते हैं। अब यही मतदाता की परिपक्वता होगी कि उन्हें ऐसे लोगों को नकारना चाहिए, जिनकी खुद की कोई विचारधारा ही नहीं है।1952 से लेकर अब तक के सभी लोकसभा चुनावों की जानकारी के लिए यहां क्लिक करें
सवाल - पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के गृह जिले से चार-चार प्रत्याशी मैदान में उतारे गए हैं। क्या फार्मूला सही है?जवाब- किसी को कुछ कहना उचित नहीं है, क्या पता, सब इसके लिए सहमत हो या नहीं हो। मुझे लगता है कि टिकट का सही बंटवारा हुआ है।सवाल - मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय लगातार पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहे हैं। ईडी-आईटी की कार्रवाई भी जारी है, इसे किस प्रकार देखते हैं?
जवाब- उनको (विष्णुदेव साय) पुरानी बातों को भी याद करना चाहिए। इसी प्रदेश में भाजपा सरकार में नान घोटाला हुआ। इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक घोटाले में नार्को टेस्ट हुए थे। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने स्वयं कहा था कि एक साल कमीशनबाजी मत करो तो हम चुनाव जीत जाएंगे। उनको ये सब बातें याद रखना चाहिए।सवाल - आप सरगुजा संभाग से आते हैं, विधानसभा चुनाव में यहां 14 सीटें कांग्रेस हार चुकी है, क्या लोकसभा चुनाव में असर पड़ेगा ?
जवाब- इसका विपरीत प्रभाव भी पड़ सकता है। कुछ लोग मान रहे हैं कि गलती हुई है तो इसकी भरपाई भी कर सकते हैं। मैं और कुछ भी नहीं कहना चाहता हूं पर कई लोग कह रहे हैं कि अब भरपाई करेंगे।चुनाव से जुड़ी और हर छोटी-बड़ी अपडेट के लिए यहां क्लिक करें
सवाल - विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार की बड़ी वजह किसे मानते हैं, किस वोटर से नुकसान हुआ? जवाब - विधानसभा की 90 में से 44 सीटें जो कि ग्रामीण क्षेत्र की हैं, उसमें कांग्रेस ने पिछले बार से इस बार अच्छा काम किया। पिछली बार 27 थी, इस बार 28 सीटें मिलीं। बाकी 46 सीटें जो कि शहरी व बस्तर की हैं। यहां हमें नुकसान हुआ है। इनमें बस्तर और सरगुजा की सीटे हैं।सवाल - क्या विधानसभा चुनाव में भाजपा की किसानों को बोनस देने और महतारी वंदन योजना ने कांग्रेस का समीकरण बिगाड़ दिया? जवाब- भाजपा का शीर्ष नेतृत्व कहता था कि किसानों को बोनस नहीं देंगे। जब कांग्रेस ने किसानों को बोनस देना शुरू किया तो केंद्र सरकार ने कहा कि हम चावल नहीं उठाएंगे।आखिर में उन्होंने किसानों को बोनस दिया और कांग्रेस की नीति को अपनाया। महतारी वंदन योजना की जहां बात है तो इस तरह की योजना पहले कर्नाटक, हिमाचल में लांच की गई। इसके बाद मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में भी अपनाया।ये भी पढ़ें- Lok Sabha Election 2024: कांग्रेस के 'चटटान पुरुष' के सामने सियासी विष पीकर अब चुनावी संकटमोचक बनने की चुनौतीये भी पढ़ें- जब एक नौकरशाह ने खत्म कर दिया था काका का राजनीतिक सफर; क्यों उनका नाम सुनते ही चिढ़ जाती थीं बेनजीर भुट्टो?
सवाल - विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार की बड़ी वजह किसे मानते हैं, किस वोटर से नुकसान हुआ? जवाब - विधानसभा की 90 में से 44 सीटें जो कि ग्रामीण क्षेत्र की हैं, उसमें कांग्रेस ने पिछले बार से इस बार अच्छा काम किया। पिछली बार 27 थी, इस बार 28 सीटें मिलीं। बाकी 46 सीटें जो कि शहरी व बस्तर की हैं। यहां हमें नुकसान हुआ है। इनमें बस्तर और सरगुजा की सीटे हैं।सवाल - क्या विधानसभा चुनाव में भाजपा की किसानों को बोनस देने और महतारी वंदन योजना ने कांग्रेस का समीकरण बिगाड़ दिया? जवाब- भाजपा का शीर्ष नेतृत्व कहता था कि किसानों को बोनस नहीं देंगे। जब कांग्रेस ने किसानों को बोनस देना शुरू किया तो केंद्र सरकार ने कहा कि हम चावल नहीं उठाएंगे।आखिर में उन्होंने किसानों को बोनस दिया और कांग्रेस की नीति को अपनाया। महतारी वंदन योजना की जहां बात है तो इस तरह की योजना पहले कर्नाटक, हिमाचल में लांच की गई। इसके बाद मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में भी अपनाया।ये भी पढ़ें- Lok Sabha Election 2024: कांग्रेस के 'चटटान पुरुष' के सामने सियासी विष पीकर अब चुनावी संकटमोचक बनने की चुनौतीये भी पढ़ें- जब एक नौकरशाह ने खत्म कर दिया था काका का राजनीतिक सफर; क्यों उनका नाम सुनते ही चिढ़ जाती थीं बेनजीर भुट्टो?