गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र: सियासत में मिसाल है विनोद बिहारी महतो और एके राय की दोस्ती
सियासी गलियारों में आज भी झारखंड झारखंड आंदोलन में प्रमुख योगदान देने वाले बिनोद बिहारी महतो और धनबाद के पूर्व सांसद एके राय की दोस्ती की मिसाल दी जाती है।
By Deepak PandeyEdited By: Updated: Sun, 17 Mar 2019 03:07 PM (IST)
दिलीप सिन्हा, गिरिडीह: सियासी गलियारों में आज भी झारखंड झारखंड आंदोलन में प्रमुख योगदान देने वाले बिनोद बिहारी महतो और धनबाद के पूर्व सांसद एके राय की दोस्ती की मिसाल दी जाती है। बिनोद बिहारी महतो ने 1971 के लोकसभा चुनाव में दूसरे स्थान पर रहने के बावजूद 1977 के लोकसभा चुनाव में अपने मित्र एके राय के लिए धनबाद लोकसभा सीट छोड़ दिया था। यह घटना उन दिनों भी काफी चर्चा में रही थी।
झारखंड आंदोलन में था प्रमुख योगदान: गौरतलब है कि बिनोद बिहारी महतो का झारखंड आंदोलन में प्रमुख योगदान था, लेकिन उन्हें लोकसभा पहुंचने के लिए लगातार पांच बार संघर्ष करना पड़ा। बिनोद बिहारी महतो झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक थे। प्रसिद्ध मार्क्सवादी चिंतक एके राय एवं शिबू सोरेन के साथ मिलकर उन्होंने झामुमो की स्थापना की थी। शिबू सोरेन उन्हें अपना धर्मपिता मानते थे।कम्युनिस्ट पार्टी भाकपा से शुरू किया सफर: झामुमो संस्थापक विनोद ने अपना राजनीतिक सफर वामपंथी पार्टी भारत की कम्युनिस्ट पार्टी भाकपा से शुरू किया था। उन्होंने अपने जीवन का पहला लोकसभा चुनाव झामुमो के गठन के पूर्व 1971 में धनबाद लोकसभा सीट से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर लड़ा था। कांग्रेस का उस दौर में पूरे देश में वर्चस्व था। कांग्रेस के रामनारायण शर्मा सांसद बने। विनोद दूसरे नंबर पर रहे थे। आपातकाल के बाद 1977 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ पूरे देश में हवा बह रही थी। ऐसे स्वर्णिम मौके पर भी पिछले चुनाव में दूसरे नंबर पर रहने के बावजूद उन्होंने अपने मित्र राय के लिए धनबाद सीट छोड़ दी। खुद गिरिडीह लोकसभा सीट से लड़े। वहां उन्होंने शून्य से सफर किया। धनबाद में जनता पार्टी का साथ राय को मिला, जबकि गिरिडीह में जनता पार्टी से रामदास सिंह थे।
पांच बार करना पड़ा संघर्ष: राय जहां पहले चुनाव में ही जीतकर लोकसभा पहुंच गए, वहीं बिनोद लगातार पांच बार चुनाव लडऩे के बाद 1991 में लोकसभा पहुंचे। पहले चुनाव में गिरिडीह में उन्हें मात्र चार फीसद वोट मिला था। इसके बाद हर चुनाव में वे अपना वोट और वोट प्रतिशत बढ़ाते गए और अंतत: 91 में वे सांसद बने। सांसद बनने के एक साल के अंदर ही उनका निधन हो गया। आज महागठबंधन के तहत झामुमो को जो गिरिडीह सीट मिल रही है, वह विनोद बिहारी के ही संघर्षों की देन है।1971 धनबाद लोकसभा चुनाव का परिणाम
- रामनारायण शर्मा - कांग्रेस - 107308 - 18 फीसद- बिनोद बिहारी महतो - माकपा - 36385 - 6 फीसद
- प्राण प्रसाद - 23714 - 4 फीसद1977 गिरिडीह लोकसभा चुनाव का परिणाम
- रामदास सिंह - जनता पार्टी - 164120 - 28 फीसद- आई अहमद - कांग्रेस - 85843 - 14 फीसद
- बिनोद बिहारी महतो - झामुमो - 24360 - 4 फीसद1980 लोकसभा चुनाव का परिणाम
- बिंदेश्वरी दुबे - कांग्रेस - 105282 - 15फीसद- रामदास सिंह - भाजपा - 79253 - 11 फीसद
- बिनोद बिहारी महतो - 56287 - 8 फीसद1984 लोकसभा चुनाव का परिणाम
- सरफराज अहमद - कांग्रेस - 195519 - 26 फीसद- बिनोद बिहारी महतो -झामुमो - 70766 - 9 फीसद- रामदास सिंह - भाजपा - 65653 - 8 फीसद1989 लोकसभा चुनाव का परिणाम- रामदास सिंह - भाजपा - 164573 - 17 फीसद- बिनोद बिहारी - महतो - 156391 - 16 फीसद- सरफराज अहमद - कांग्रेस - 133703 - 14 फीसद1991 लोकसभा चुनाव का परिणाम- बिनोद बिहारी महतो - झामुमो - 228413 - 23 फीसद- रामदास सिंह - भाजपा - 150610 - 15 फीसद- सरफराज अहमद - कांग्रेस - 76930 - 8 फीसद