बनारस से सटी इस सीट पर दिलचस्प हुआ मुकाबला, मोदी के मंत्री की साख दांव पर
गाजीपुर सीट से भाजपा प्रत्याशी व केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा का सामना गठबंधन उम्मीदवार अफजाल अंसारी से है।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Tue, 14 May 2019 09:37 AM (IST)
सर्वेश मिश्र, गाजीपुर। आज का गाजीपुर कभी लहुरीकाशी के नाम से विख्यात था जो ऋ षि मुनियों की तपोस्थली हुआ करता था। यहां इस बार चुनावी बयार तेज है। बीते पांच साल का विकास दिख रहा है, उसकी गूंज भी सुनी जा रही है लेकिन जातिगत आंकड़े की गणित भी उलझाए हुए है। अलबत्ता यहां कुल मतदाताओं में आधे से अधिक उन युवा वोटरों की संख्या निर्णायक साबित हो सकती जिनके सोचने का अंदाज अलहदा है। यहां भाजपा प्रत्याशी व केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा का सामना गठबंधन उम्मीदवार अफजाल अंसारी से है। वैसे यहां कभी किसी एक दल का दबदबा रहा भी नहीं।
गाजीपुरवासियों ने लगभग सभी दलों को मौका दिया। यहां तक कि एक बार निर्दल सांसद भी चुने गए। अब एक बार फिर से कमल खिलेगा या गठबंधन के सहारे बसपा अपना खाता खोल सकेगी, यह कहना आसान नहीं है। भाजपा और गठबंधन प्रत्याशी के सीधे मुकाबले के बीच कांग्रेस दशकों से खोए हुए अपने वर्चस्व को कायम कर लड़ाई त्रिकोणीय बना पाएगी, यह फिलहाल नहीं लग रहा है।1952, 57 व 62 में लगातार कांग्रेस ने जीत दर्ज कर हैट्रिक लगाई। इसमें दो बार हरि प्रसाद सिंह तो तीसरी बार विश्वनाथ सिंह गहमरी सांसद निर्वाचित हुए थे। इसके बाद से आज तक कोई भी पार्टी हैट्रिक नहीं मार सकी है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा से मनोज सिन्हा चुनाव जीते। सपा दूसरे तो बसपा तीसरे स्थान पर रही। इस बार सपा-बसपा दोनों एक साथ हो गए हैं। गठबंधन से बसपा प्रत्याशी अफजाल अंसारी सहित दोनों पार्टियों के शीर्ष नेता भाजपा के लिए बड़ा दबाव बनाने की जुगत में दिन रात एक किए हुए हैं। उधर, भाजपा भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती।
कांग्रेस, जन अधिकार पार्टी और अपना दल के संयुक्त प्रत्याशी अजीत प्रताप कुशवाहा लड़ाई को त्रिकोणीय करने में जी जान से जुटे हुए हैं। यहां की लड़ाई इसलिए और दिलचस्प हो जाती है क्योंकि अपवाद स्वरूप कुछ एक मामले को छोड़ दिया तो किसी लहर के असर से यह अमूमन अछूता ही रहा है। 2014 में मनोज सिन्हा को 32452 मतों से जीत मिली थी। 2017 के विधानसभा चुनाव में इसका असर दिखा और दो विधानसभा जंगीपुर और सैदपुर से सपा ने जीत दर्ज की। इन्हीं आंकड़ों व सपा-बसपा के परंपरागत वोटों की गिनती करने के साथ सोशल इंजीनियरिंग को अपने पक्ष में मानते हुए गठबंधन प्रत्याशी अपनी जीत का दावा कर रहे हैं तो भाजपा प्रत्याशी मनोज सिन्हा को अपने कराए गए विकास कार्यों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर भरोसा है।
वर्तमान समय में विभिन्न दलों के स्टार प्रचारक सहित शीर्ष नेताओं के कार्यक्रम होने व कइयों के आने की संभावना से मई माह की तपिश के साथ चुनावी सरगर्मी बढ़ती जा रही है। राजनीतिज्ञ विशेषज्ञ भी यह मानते हैं कि पिछली बार की अपेक्षा मनोज सिन्हा की लोकप्रियता काफी बढ़ी है, लेकिन जीत को लेकर कोई किसी तरह का दावा पक्के तौर पर नहीं कर रहा है। यहां और दो पहलुओं को समझने की जरूरत है। पहली बात कि भाजपा के लिए ओमप्रकाश राजभर की पार्टी का मैदान में आना तथा कांग्रेस प्रत्याशी का कुछ इलाकों में दमदारी से चुनाव लड़ना परेशानी का कारण बना हुआ है तो बसपा के लिए गठबंधन के मतों को सहेजे रखना बड़ी चुनौती है।मसलन सपा मतदाताओं में वह जोश भरना होगा जो अमूमन उनमें दिखता है। यहां यह बात ध्यान रखने वाली है कि भाजपा और गठबंधन में से जो सीधे एक दूसरे में सेंधमारी कर लेगा उसे उन वोटों का दो गुना लाभ मिलेगा। यहां कम से कम गठबंधन भाजपा के मतों में सीधे सेंधमारी करता तो नहीं प्रतीत हो रहा है। इसके इतर भाजपा इसमें कुछ हद तक जरूर सफल है। यही चुनाव को रोचकता की ओर ले जा रहा है। पांच विधानसभा क्षेत्रों वाले इस संसदीय सीट में दो सैदपुर और जखनियां सुरक्षित है। इस बार एक निर्दल सहित कुल 14 प्रत्याशी मैदान में हैं। अब तक यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, सूबे के डिप्टी सीएम केशव मौर्य की सभाएं हो चुकी हैं। उधर, 13 मई को सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव व बसपा सुप्रीमो मायावती का कार्यक्रम निर्धारित हो चुका है। ऊंट किस करवट बैठेगा, देखने वाली बात होगी।
कौन हैं अफजाल अंसारीअफजाल अंसारी पूर्वांचल के बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी के बड़े भाई हैं। विधायक कृष्णानंद राय हत्याकांड में मुख्तार और अफजाल साजिशकर्ता के रूप में आरोपित हैं। अफजाल अभी जमानत पर हैं जबकि मुख्तार जेल में बंद हैं।लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप