Lok Sabha Election 2024: गोरक्षपीठ की आभा में उलझा जातीय गणित, योगी आदित्यनाथ के गढ़ में कितना सफल होगा सपा का दांव?
Lok Sabha Election 2024 गोरखपुर से पांच बार सांसद रह चुके मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरपरस्ती में अपनी जीत का दावा कर रहे रवि किशन का मुकाबला इस बार इंडी गठबंधन से है जिसने सपा प्रत्याशी काजल निषाद को मैदान में उतारा है। गठबंधन का भरोसा जातीय समीकरण पर है पर इस समीकरण के मंदिर की आभा में उलझे होने का अहसास भी सभी को है।
डॉ. राकेश राय, गोरखपुर। साढ़े तीन दशक से गोरक्षपीठ की परंपरागत सीट होने की वजह से गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र की सियासी सरगर्मी पर पूरे देश की नजर है। पीठ का खड़ाऊं लेकर भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरने वाले सांसद रवि किशन उसी आभा मंडल के सहारे दूसरी बार सांसद बनने के प्रयास में लगे हैं।
क्षेत्र से पांच बार सांसद रह चुके मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरपरस्ती में अपनी जीत का दावा कर रहे रवि किशन का मुकाबला इस बार इंडी गठबंधन से है, जिसने सपा प्रत्याशी काजल निषाद को मैदान में उतारा है। गठबंधन का भरोसा जातीय समीकरण पर है पर इस समीकरण के मंदिर की आभा में उलझे होने का अहसास भी सभी को है। नाथ पीठ की परंपरागत सीट के वर्तमान समीकरण पर डॉ. राकेश राय की रिपोर्ट।
शुरूआत में था कांग्रेस का कब्जा
गोरखपुर सीट के संसदीय चुनावों के आंकड़ों पर गौर करें तो 1984 तक हुए आठ चुनावों में यहां छह बार कांग्रेस का दबदबा रहा। इस बीच सिर्फ दो बार कांग्रेस को यह सीट गंवानी पड़ी थी। 1967 में गोरक्षपीठ के तत्कालीन महंत दिग्विजयनाथ से और 1977 में इमरजेंसी के विरोध की लहर में जनता पार्टी के प्रत्याशी हरिकेश बहादुर से।1984 के चुनाव में सफलता हासिल करने के बाद से ही इस संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस पहले जीत को तरसती रही और उसके बाद जमानत बचाने तक के लिए। पिछली सदी के अंतिम दशक से गोरखपुर की सीट पर गोरक्षपीठ का दबदबा बना, जो अब तक बरकरार है।
गोरक्षपीठ ने बनाया दबदबा
बाद में 1989 से लेकर 1996 तक तीन चुनावों में तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ और 1998 से लेकर 2014 तक पांच चुनाव में वर्तमान पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ को जनता ने संसद के लिए अपना प्रतिनिधि चुना। इसके पहले 1967 में तत्कालीन महंत दिग्विजयनाथ और 1969 में उनके ब्रह्मलीन होने के बाद महंत अवेद्यनाथ गोरखपुर संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके थे।राममंदिर आंदोलन के दौर में 1989 के चुनाव में महंत अवेद्यनाथ ने दोबारा राजनीति में वापसी की और उसके बाद फिर गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र पर गोरक्षपीठ के दबदबे का सिलसिला चल पड़ा। 1989 का चुनाव महंत अवेद्यनाथ ने हिंदू महासभा के प्रत्याशी के रूप में लड़ा था, उसके बाद वह और उनके शिष्य योगी आदित्यनाथ लगातार भाजपा के दिग्गज नेताओं की कतार में शामिल होकर लड़ते और जीत हासिल करते रहे।