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हरीश रावत को डॉ. इंदिरा हृदयेश और महेंद्र पाल की नाराजगी का करना पड़ सकता है सामना

हरीश रावत और इंदिरा हृदयेश के बीच तल्खी तो जगजाहिर है। नेता प्रतिपक्ष इस चुनाव में या तो स्वयं मैदान में उतरना चाहती थीं या पूर्व सांसद महेंद्र पाल सिंह को टिकट दिलवाना चाहती थीं।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Sun, 24 Mar 2019 11:33 AM (IST)
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हरीश रावत को डॉ. इंदिरा हृदयेश और महेंद्र पाल की नाराजगी का करना पड़ सकता है सामना
हल्द्वानी, आशुतोष सिंह : नैनीताल संसदीय सीट से कांग्रेस प्रत्याशी हरीश रावत के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनों को मनाने की है। यदि उन्होंने ऐसा नहीं किया तो इस संसदीय क्षेत्र में बड़ा कद रखने वाले दो कद्दावर चेहरे नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश और महेंद्र पाल सिंह की नाराजगी का सामना भी करना पड़ सकता है। पिछले विधानसभा चुनाव में भी किच्छा सीट से पूर्व सीएम की नैया कांग्रेसियों की नाराजगी की वजह से ही डूबी थी।

उत्तराखंड कांग्रेस में गुटबाजी कोई नई बात नहीं है। हरीश रावत और इंदिरा हृदयेश के बीच तल्खी तो जगजाहिर है। यही वजह है कि नेता प्रतिपक्ष इस चुनाव में या तो स्वयं मैदान में उतरना चाहती थीं या पूर्व सांसद महेंद्र पाल सिंह को टिकट दिलवाना चाहती थीं। इसके लिए उन्होंने उत्तराखंड प्रभारी अनुग्रह नारायण सिंह से लेकर केसी बाबा तक को अपने पक्ष में कर लिया था, लेकिन अंतत: हरीश रावत का पलड़ा भारी पड़ा। दरअसल दोनों नेताओं के बीच असल दरार पड़ी पिछले निकाय चुनाव में। उस चुनाव में नेता प्रतिपक्ष के पुत्र सुमित हृदयेश हल्द्वानी से कांग्रेस के टिकट पर मेयर का चुनाव लड़ रहे थे। हरीश रावत ने तमाम छोटी-बड़ी सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों का प्रचार किया लेकिन हल्द्वानी सीट से उन्होंने दूरी बनाए रखी। चुनाव में सुमित को वोट तो अच्छे (करीब 55 हजार) मिले, लेकिन दस हजार वोट से हार का सामना करना पड़ा। नेता प्रतिपक्ष के समर्थकों का मानना था कि यदि हरीश रावत ने उस चुनाव में हल्द्वानी में रोड शो या जनसभा कर दी होती तो सीट निकल सकती थी, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। यही नहीं हरदा के खास माने जाने वाले समर्थकों ने सोशल मीडिया में भी ऐसे-ऐसे पोस्ट कर डाले कि लगने लगा था कि हरदा गुट उनके खिलाफ खड़ा है। यही वजह रही कि चुनाव बाद कई कांग्रेसियों के खिलाफ प्रदेश नेतृत्व ने निष्कासन का एक्शन भी लिया। यहीं से दोनों वरिष्ठ नेताओं के बीच तल्खी और बढ़ गई थी।

नेता पतिपक्ष ने पार्टी के सामने रखे थे दो विकल्‍प

निकाय चुनाव के ठीक बाद नेता प्रतिपक्ष ने नैनीताल संसदीय सीट से लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी। संसदीय क्षेत्र के दोनों जिलों में उन्होंने अच्छी-खासी टीम भी तैयार कर ली थी। उन दिनों हरीश रावत की दिलचस्पी हरिद्वार सीट में अधिक थी, लिहाजा इस सीट पर नेता प्रतिपक्ष से बड़े कद का कोई दूसरा दावेदार नहीं था। एक सप्ताह पूर्व जैसे ही इस सीट से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट का नाम चर्चा में आया, अचानक हरीश रावत सक्रिय हो गए और उन्होंने नैनीताल सीट से टिकट के लिए लामबंदी शुरू कर दी। उनके सक्रिय होते ही नेता प्रतिपक्ष ने पार्टी नेतृत्व के सामने दो विकल्प रख दिए। पहला खुद को टिकट देने का और दूसरा  यदि किसी कारणवश उन्हें टिकट नहीं मिलता है तो महेंद्र पाल सिंह को दिए जाने का। महेंद्र पाल सिंह के नाम पर पूर्व सांसद केसी बाबा समेत कई वरिष्ठ कांग्रेस भी सहमत थे। महेंद्र पाल सिंह को भी शनिवार की शाम तक टिकट मिलने का पूरा भरोसा था। यहां तक कि उनके समर्थक 25 को उनके पर्चा दाखिले की तैयारी कर रहे थे, लेकिन देर रात हरीश रावत के नाम की घोषणा हो गई।

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