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Lok Sabha Speaker का पद कितना अहम, जानिए कैसे होता है चयन; सदन में क्या होती है भूमिका और क्यों नहीं दिलाई जाती है शपथ?

Lok Sabha Speaker नरेन्द्र मोदी ने तीसरी बार पीएम पद की शपथ ली। इसके बाद सदन में नव निर्वाचित सांसद शपथ लेंगे। इसी बीच लोकसभा अध्यक्ष पद पर कौन आसीन होगा इसे लेकर चर्चाएं चल रही हैं। लोकसभा स्पीकर का पद अहम होता है। इस पद पर बीजेपी के साथ ही जेडीयू और टीडीपी की भी नजर है। जानिए स्पीकर की भूमिका अधिकार और शक्तियों के बारे में।

By Jagran News Edited By: Deepak Vyas Updated: Sun, 09 Jun 2024 01:52 PM (IST)
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How Lok Sabha Speaker Selected: लोकसभा स्पीकर की सदन में क्या है भूमिका, क्या हैं कार्य और शक्तियां।

दीपक व्यास, नई दिल्ली। नरेन्द्र मोदी ने तीसरी बार पीएम पद की शपथ ली।लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद भारतीय जनता पार्टी अकेले बहुत लाने में असमर्थ रही। ऐसे में बीजेपी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार बनी है। इसी बीच लोकसभा स्पीकर का पद को लेकर सबसे अधिक खींचतान है। बीजेपी यह पद अपने पास रखना चाहेगी, वहीं जेडीयू और टीडीपी भी इस पद को लेकर दिलचस्पी है। आखिर लोकसभा अध्यक्ष का पद इतना अहम क्यों है? इस पद की क्या शक्तियां और जिम्मेदारियां होती हैं, कैसे चुनाव होता है, एडमिनिस्ट्रेटिव पावर्स क्या हैं। पढ़िए सदन के स्पीकर के अधिकारों और कर्तव्यों और उनकी प्रशासनिक शक्तियों से जुड़ी सभी बातें।

पिछली यानी 17वीं लोकसभा में 2019 में बीजेपी सांसद ओम बिरला को सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुना गया था। अब 18वीं लोकसभा के लिए स्पीकर के पद पर कौन आसीन होगा, इसे लेकर कवायदें चल रही हैं। लेकिन इससे पहले सदन में चुने हुए सांसदों को शपथ दिलाने के लिए प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति की जाएगी। प्रोटेम स्पीकर आमतौर सदन का सबसे सीनियर लीडर होता है। 

कब से कब तक होता है स्पीकर का कार्यकाल?

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद ओम बिरला 19 जून 2019 को लोकसभा अध्यक्ष बने। एक स्पीकर का कार्यकाल उनके चुने जाने की तिथि से लेकर अगली लोकसभा की पहली मीटिंग से ठीक पहले तक माना जाता है। इस हिसाब से देखा जाए तो जब तक वर्तमान में चुनकर आए लोकसभा के सांसदों की यानी 18वीं लोकसभा की पहली बैठक नहीं होती है, तब तक ओम बिरला ही लोकसभा अध्यक्ष रहेंगे। यह कार्यकाल पांच वर्ष का होता है।

क्यों पड़ी स्पीकर पद की जरूरत?

भारत की शासन प्रणाली वेस्टमिंस्टर मॉडल का अनुसरण करती है, यही कारण है कि देश में संसद की कार्यवाही का नेतृत्व एक पीठा​सीन अधिकारी करता है, जिसे लोकसभा स्पीकर कहा जाता है। सदन के अध्यक्ष की महत्ता के बारे में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि संसदीय लोकतंत्र में अध्यक्ष सदन की गरिमा और स्वतंत्रता का प्रतिनिधित्व करता है। चूंकि संसद देश का प्रतिनिधित्व करती है, इसलिए अध्यक्ष पद एक हिसाब से देश की स्वतंत्रता का प्रतीक बन जाता है।

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अध्यक्ष पद के चुनाव से कार्यभार ग्रहण तक क्या है प्रक्रिया?

लोकसभा देश की सर्वोच्च विधायी संस्था है। इसके द्वारा सदन के कामकाज को चलाने के लिए एक अध्यक्ष को चुना जाता है। अध्यक्ष पद का चुनाव सदन का सबसे पहला काम होता है। लोकसभा अध्यक्ष को वरीयता प्रोटोकॉल में छठे नंबर पर रखा गया है। संसद की कार्यवाही के सुचारू संचालन के लिए स्पीकर के पास पर्याप्त शक्तियां होती हैं।

  • लोकसभा अध्यक्ष पद के चयन के लिए सबसे पहले स्पीकर को सदन का सदस्य होना जरूरी है। हालांकि अध्यक्ष पद के लिए कोई विशेष क्वालिफिकेशन का होना जरूरी नहीं है। लेकिन संविधान और कानून की समझ होना चाहिए। अध्यक्ष के साथ ही दोनों पीठासीन अधिकारियों और उपाध्यक्ष का चुनाव भी सदन में मौजूद और मतदान करने वाले मेंबर्स द्वारा साधारण बहुमत से किया जाता है।
  • सामान्यत: सत्ताधारी दल के सदस्य को ही स्पीकर बनाया जाता है। हालांकि परंपरा यही रही है कि सत्ताधारी दल अन्य दलों और समूहों के नेताओं के साथ अनौपचारिक रूप से मंथन और विमर्श करता है और उसके बाद ही अपना उम्मीदवार घोषित करता है।
  • उम्मीदवार का निर्णय लिए जाने पर सामान्यत: संसदीय कार्य मंत्री या प्रधानमंत्री द्वारा उसके नाम का प्रस्ताव किया जाता है। फिर सर्वसम्मति से स्पीकर की नियुक्ति की जाती है। लेकिन कई बार एकमत न होने पर वोटिंग भी हो जाती है।
  • लोकसभा अध्यक्ष निर्वाचित होने पर वह दोबारा इस पद के चुनाव के लिए पात्र होता है। एक और खास बात यह है कि लोकसभा भंग होने के बाद भी अध्यक्ष अपना पद नहीं छोड़ता है। नव निर्वाचित लोकसभा की पहली बैठक होने तक वह पद पर बना रहता है।

पीएम और विपक्ष के नेता ले जाते हैं अध्यक्ष को आसन तक

लोकसभा अध्यक्ष चुने जाने के बाद नवनिर्वाचित स्पीकर को प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता द्वारा अध्यक्ष पद के आसन तक ले जाया जाता है। इसके बाद सभा में उपस्थित सभी राजनीतिक दलों के नेता अध्यक्ष के आसन पर जाकर उन्हें बधाई देते हैं। इसके बाद स्पीकर का धन्यवाद भाषण होता है, फिर वे अपना कार्यभार ग्रहण करते हैं।खास बात यह है कि लोकसभा स्पीकर का चयन सदन में मौजूद सदस्यों द्वारा ही किया जाता है, इसलिए स्पीकर के लिए कोई शप​थग्रहण समारोह नहीं होता है।

गैरमौजूदगी में उपाध्यक्ष या गठित पैनल का सदस्य चलाता है सदन

  • भारतीय संविधान में यह प्रावधान है कि लोकसभा अध्यक्ष के वेतन भत्तों पर सदन में मतदान नहीं किया जाएगा। उनके वेतन भत्ते भारत की संचित निधि से दिए जाएंगे। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 266(1) में भारत की संचित निधि संबंधी प्रावधान है।
  • नई लोकसभा में भी स्पीकर के लिए विशिष्ट रूप से कुर्सी रखी गई है, जहां से वह पूरे सदन को देख सके। संसदीय कार्यों और होने वाले दैनिक कार्यों के लिए स्पीकर को लोकसभा के महासचिव और सचिवालय के सीनियर अफसरों की टीम मदद करती है।
  • लोकसभा अध्यक्ष की गैरमौजूदगी में उपाध्यक्ष कार्यों का निर्वहन ​करता है। अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों की गैरमौजूदगी में सभापति का जो पैनल बनता है, उसमें से एक सदस्य सदन की अध्यक्षता करता है।

लोकसभा अध्यक्ष की क्या हैं शक्तियां?

  • लोकसभा स्पीकर के दो अहम अधिकार होते हैं। पहला वह संसद के संयुक्त अधिवेशन में भाग लेता है।
  • कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं, इसका निर्णय लोकसभा स्पीकर द्वारा किया जाता है।
  • अध्यक्ष सदन की बैठकों की अध्यक्षता करता है। साथ ही सदन की कार्यवाही और संचालन के लिए नियम और विधि का सुचारू निर्वहन का जिम्मा भी अध्यक्ष पर ही होता है।
  • स्पीकर की जिम्मेदारी होती है कि वह सदन की व्यवस्था बनाए रखे, जिससे कि सदन का सुचारू संचालन हो सके। इसके लिए वे निर्धारित नियमों के तहत कार्यवाही भी कर सकते हैं।
  • सदन के अध्यक्ष ही लोकसभा सदस्यों को सदन में बोलने की अनुमति प्रदान करते हैं। साथ ही उनके वक्तव्य का समय निर्धारित करते हैं।
  • लोकसभा अध्यक्ष सदन में राजनीतिक दलों तथा समूहों को मान्यता प्रदान करते हैं। यदि कोई सदस्य, अध्यक्ष की आज्ञा नहीं मानता है या सदन की कार्यवाही में बाधा उत्पन्न करता है तो अध्यक्ष उस सदस्य की सदस्यता भी निलंबित कर सकता है।

संविधान संशोधन से और पावरफुल हो गया स्पीकर का पद

  • लोकसभा की शक्तियों को संविधान के संशोधन के बाद और ज्यादा पावरफुल बनाया गया है। दल बदल विरोधी संविधान संशोधन अधिनियम 1985 द्वारा स्पीकर की भूमिका को पावरफुल किया गया है। इसमें स्पीकर दल-बदल कानून के अंतर्गत सदस्यों की सदस्यता भी रद्द कर सकते हैं।
  • किसी भी प्रस्ताव पर वोटिंग के समय स्पीकर भूमिका काफी अहम रहती है। यदि किसी विधेयक पर पक्ष और विपक्ष दोनों के मत विभाजन के बाद संख्या बराबर आ जाए, तो लोकसभा स्पीकर को अधिकार है कि वह अपना वोट दे। ऐसे में वे अपना वोट दे सकते हैं। वही तय भी करते हैं कि विधेयक पास होगा या नहीं।
  • अध्यक्ष की अनुमति के बिना किसी भी सदस्य को सदन के परिसर में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है और न ही फौजदारी या दीवानी कानून के अंतर्गत उन्हें कोई आदेश दिया जा सकता है। इस तरह सदन के मेंबर्स की रक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भी स्पीकर की होती है।

स्पीकर करता है समितियों का गठन

सदन की समितियां अध्यक्ष के निदेशाधीन काम करती हैं। इन सभी समितियों का गठन अध्यक्ष या सभा द्वारा किया जाता है। अध्यक्ष ही सभी संसदीय समितियों के सभापति को नॉमिनेट करता है। समितियों के संचालन की प्रक्रिया में यदि कोई समस्या आती है तो उसे अध्यक्ष के समक्ष रखा जाता है। कार्य-मंत्रणा समिति, सामान्य प्रयोजनों संबंधी समिति और नियम समिति का सभापति स्वयं स्पीकर होता है।

पूर्व स्पीकर सुमित्रा महाजन ने बताया-क्या होते हैं नैतिक दायित्व?

  • एक स्पीकर के रूप में हमें विपक्ष का भी बहुत ध्यान रखना पड़ता है। उन्हें भी सदन में बोलने के लिए पर्याप्त समय देना पड़ता है, जिससे सामंजस्य और संतुलन बना रहे।
  • पूर्व लोकसभा स्पीकर ने बताया कि जो सांसद पहली बार चुनकर आते हैं, उन्हें नियमों की किताब दी जाती है। लेकिन इसके अलावा भी स्पीकर इन्हें पार्लियामेंट्री कार्यों से परिचित कराता है। इसके लिए प्रशिक्षण देने की व्यवस्था भी की जाती है।
  • सुमित्रा महाजन ने बताया कि जब को बिल सदन में रखा जाता है तो उसका स्वरूप क्या है, इसकी जानकारी भी सांसदों को दी जाती है।
  • लोकसभा अध्यक्ष का कार्यालय काफी बड़ा होता है। इनमें 2-3 हजार कर्मचारी काम करते हैं। कार्यालय के विभागों में समन्वय का काम स्पीकर का होता है।
  • जो ​विदेशी प्रतिनिधिमंडल संसद में आते हैं, उन्हें भारतीय संसदीय कार्यप्रणाली से रूबरू कराना भी लोकसभा स्पीकर का दायित्व होता है।

लोकसभा स्पीकर का एक और काम होता है कि चुनकर आए नए सदस्यों को जीरो अवर में ज्यादा से ज्यादा बोलने का मौका देना। मैं जब स्पीकर थी, तो मैंने 'Speaker Research Initiative' के तहत विभिन्न विषयों पर सेशन आयोजित कराए।

सुमित्रा महाजन, पूर्व लोकसभा स्पीकर

लोकसभा अध्यक्ष की क्या होती हैं प्रशासकीय भूमिकाएं?

  • अध्यक्ष लोकसभा सचिवालय का प्रमुख भी होता है। सदन के सचिवालय कर्मचारियों और इसकी सुरक्षा व्यवस्था का जिम्मा भी स्पीकर के अधिकार क्षेत्र में होता है।
  • अध्यक्ष की अनुमति के बिना संसद भवन में कोई परिवर्तन या परिवर्धन नहीं किया जा सकता है। संसद भवन में कोई नई संरचना नहीं बनाई जा सकती है।
  • अध्यक्ष के माध्यम से ही सदन के निर्णयों को संसद के बाहर के व्यक्तियों और प्राधिकारियों तक पहुंचाया जाता है। अध्यक्ष सदन की कार्यवाही को प्रकाशित करने के स्वरूप और तरीके को तय करता है।

अन्य भूमिकाएं और जिम्मेदारियां

  • लोकसभा अध्यक्ष यह तय करता है कि राष्ट्रपति के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव में किस प्रकार संशोधन लाया जा सकता है।
  • किसी विधेयक में संशोधन पेश करने के संबंध में अध्यक्ष की अनुमति आवश्यक है। यह पूरी तरह से अध्यक्ष पर निर्भर करता है कि वह विशेषाधिकार के किसी भी प्रश्न को जांच, जांच और रिपोर्ट के लिए विशेषाधिकार समिति को भेजे।
  • जब किसी सदस्य द्वारा दिए गए प्रस्ताव पर सदन का फैसला सुनिश्चित करना होता है, तो निर्णय प्राप्त करने के लिए अध्यक्ष द्वारा प्रश्न सदन के समक्ष रखा जाता है।
  • लोकसभा स्पीकर किसी सदस्य के श्रद्धांजलि संदर्भ, महत्वपूर्ण राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय घटनाओं के औपचारिक संदर्भ में लोकसभा के हर सेशन के समापन और सदन का कार्यकाल समाप्त होने पर समापन भाषण देता है।
  • पूर्व स्पीकर सुमित्रा महाजन ने जागरण को बताया-क्या होते हैं नैतिक दायित्व?
  • एक स्पीकर के रूप में हमें विपक्ष का भी बहुत ध्यान रखना पड़ता है। उन्हें भी सदन में बोलने के लिए पर्याप्त समय देना पड़ता है, जिससे सामंजस्य और संतुलन बना रहे।
  • पूर्व लोकसभा स्पीकर ने बताया कि जो सांसद पहली बार चुनकर आते हैं, उन्हें नियमों की किताब दी जाती है। लेकिन इसके अलावा भी स्पीकर इन्हें पार्लियामेंट्री कार्यों से परिचित कराता है। इसके लिए प्रशिक्षण देने की व्यवस्था भी की जाती है।
  • सुमित्रा महाजन ने बताया कि जब को बिल सदन में रखा जाता है तो उसका स्वरूप क्या है, इसकी जानकारी भी सांसदों को दी जाती है।
  • लोकसभा अध्यक्ष का कार्यालय काफी बड़ा होता है। इनमें 2-3 हजार कर्मचारी काम करते हैं। कार्यालय के विभागों में समन्वय का काम स्पीकर का होता है।
  • जो ​विदेशी प्रतिनिधिमंडल संसद में आते हैं, उन्हें भारतीय संसदीय कार्यप्रणाली से रूबरू कराना भी लोकसभा स्पीकर का दायित्व होता है।

लोकसभा स्पीकर का एक और काम होता है कि चुनकर आए नए सदस्यों को जीरो अवर में ज्यादा से ज्यादा बोलने का मौका देना। मैं जब स्पीकर थी, तो मैंने 'Speaker Research Initiative' के तहत विभिन्न विषयों पर सेशन आयोजित कराए।

 सुमित्रा महाजन, पूर्व लोकसभा स्पीकर

किन स्थितियों में लोकसभा स्पीकर को हटाने का अधिकार?

लोकसभा के अध्यक्ष पद का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है। हालांकि ऐसी जरूरत पड़ जाए कि अध्यक्ष को हटाना जरूरी हो गया हो,तो संविधान में यह अधिकार निचले सदन को दिया गया है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 94 और 96 के अनुसार सदन प्रभावी बहुमत (सदन की उपस्थित और मतदान करने वाली कुल संख्या का 50% से अधिक) द्वारा पारित प्रस्ताव के माध्यम से अध्यक्ष को हटाया सकता है।

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 7 और 8 के तहत लोकसभा सदस्य होने से अयोग्य घोषित होने पर अध्यक्ष को हटाया भी जा सकता है। एक स्पीकर अपना इस्तीफा डिप्टी स्पीकर को भी दे सकता है। डॉ. नीलम संजीव रेड्डी एकमात्र अध्यक्ष रहे, जिन्होंने कार्यालय से इस्तीफा दे दिया। वे एकमात्र अध्यक्ष रहे, जिन्हें भारत के राष्ट्रपति बनने का गौरव मिला।

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