आइये, जानें देश में हुए लोकतंत्र के पहले जलसे से जुड़ी कुछ दिलचस्प जानकारी
क्या आपको पता है कि आजाद भारत में पहली बार आम चुनाव कैसे हुए थे कितने दिनों में हुए और कितनी पार्टियों ने उसमें किस्मत आजमाई थी।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Wed, 13 Mar 2019 10:14 AM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। 17वें लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। नेताओं के भाषण, रैलियां और चुनावी दौरे शुरू हो गए हैं। साथ-साथ आम जनता भी पूरी तरह चुनावी मोड में आ चुकी है। लेकिन क्या आपको पता है कि आजाद भारत में पहली बार आम चुनाव कैसे हुए थे, कितने दिनों में हुए और कितनी पार्टियों ने उसमें किस्मत आजमाई थी। आइये, जानते हैं देश में हुए लोकतंत्र के पहले जलसे से जुड़ी कुछ दिलचस्प जानकारी के बारे में:
कुल सीटें 489
बहुमत के लिए 245चुनावी तारीख
बहुमत के लिए 245चुनावी तारीख
- 10 फरवरी, 1952 को पहले आम चुनाव की घोषणा हुई थी।
- 27 मार्च 1952 के बीच संपन्न हुआ था चुनाव।
इतने रहे मैदान में
1874 उम्मीदवारों और 53 दलों ने चुनाव लड़ा। इसमें 14 राष्ट्रीय पार्टी, 39 राज्यस्तर की पार्टी शामिल थीं। राष्ट्रीय पार्टियों में मुख्य तौर पर कांग्रेस, सीपीआइ, जनसंघ थी। इसके अलावा अकाली दल, फॉरवर्ड ब्लॉक जैसी पार्टियां भी चुनाव में शामिल हुई थीं। कांग्रेस को मिला प्रचंड बहुमत
489 सीटों में से 364 सीटें जीतकर कांग्रेस ने विजय प्राप्त की और पंडित नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने। चुनाव में 45 फीसद मतदान हुआ था। 16 सीटें जीतकर सीपीआइ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी। पार्टी को 3.29 फीसद मत मिले थे। सोशलिस्ट पार्टी 10.59 फीसद मतों के साथ चुनाव में तीसरे स्थान पर रही। उसने 12 सीटें जीतीं।
1874 उम्मीदवारों और 53 दलों ने चुनाव लड़ा। इसमें 14 राष्ट्रीय पार्टी, 39 राज्यस्तर की पार्टी शामिल थीं। राष्ट्रीय पार्टियों में मुख्य तौर पर कांग्रेस, सीपीआइ, जनसंघ थी। इसके अलावा अकाली दल, फॉरवर्ड ब्लॉक जैसी पार्टियां भी चुनाव में शामिल हुई थीं। कांग्रेस को मिला प्रचंड बहुमत
489 सीटों में से 364 सीटें जीतकर कांग्रेस ने विजय प्राप्त की और पंडित नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने। चुनाव में 45 फीसद मतदान हुआ था। 16 सीटें जीतकर सीपीआइ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी। पार्टी को 3.29 फीसद मत मिले थे। सोशलिस्ट पार्टी 10.59 फीसद मतों के साथ चुनाव में तीसरे स्थान पर रही। उसने 12 सीटें जीतीं।
बड़ा उलटफेर
डॉ.अंबेडकर को हार का सामना करना पड़ा। उनकी आरक्षित सीट बांबे से कांग्रेस के नारायण सदोबा कजरोलकर जीतकर आए। इसके बाद उन्होंने 1954 में भंडारा से उपचुनाव लड़ा और लोकसभा में प्रवेश करने की कोशिश की, लेकिन फिर कांग्रेस के श्री बोरकर से हार गए। उन्होंने तब राज्यसभा सदस्य के रूप में संसद में प्रवेश किया था।किसान मजदूर प्रजा पार्टी की नींव रखने वाले आचार्य कृपलानी यूपी के फैजाबाद से हार गए।मतदान केंद्र
ढाई लाख मतदान केंद्र बने। साढ़े सात लाख बैलेट बॉक्स बनाए गए। तीन लाख से ज्यादा स्याही के पैकटों का इस्तेमाल हुआ। चुनाव आयोग को करीब 16000 लोगों को अनुबंध के तहत 6 महीने काम पर लगाना पड़ा। तब देश की साक्षरता काफी कम थी, इसलिए आयोग ने गांव- गांव में नुक्कड़ नाटक करवा कर लोगों को वोट डालने के लिए कहा था। चुनाव प्रचार
उस वक्त सड़क पर चुनाव प्रचार के लिए गाड़ी के साथ बैलगाड़ी भी मौजूद थी। दीवारों को पोस्टरों और नारों से पाट दिया गया था। कहीं-कहीं तो गायों की पीठ पर लिखकर पार्टी के लिए वोट मांगे गए। नई पार्टियों का उदय
इस चुनाव में पुराने कांग्रेसी नई पार्टी बनाकर कांग्रेस के खिलाफ उतर रहे थे तो वामपंथी सशस्त्र संग्राम छोड़कर लोकतंत्र में मत की ताकत के आगे झुक चले थे। कांग्रेस के दिग्गज नेता लोहिया और जेपी ने कांग्रेस से अलग होकर सोशलिस्ट पार्टी की नींव रखी। वहीं, श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नेहरू मंत्रिमंडल से अलग होकर जनसंघ की स्थापना कर ली थी। वहीं संविधान निर्माता डॉ अंबेडकर ने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया की स्थापना की।निर्वाचन क्षेत्र
उस वक्त एक निर्वाचन क्षेत्र में एक से अधिक सीटों का चलन था। उसके चलते 401 निर्वाचन क्षेत्र में 489 सीटों पर चुनाव हुए, जो 26 राज्यों का प्रतिनिधित्व करते थे। एक सीट वाले 314 निर्वाचन क्षेत्र थे। 86 निर्वाचन क्षेत्र में दो सीटें थीं।
डॉ.अंबेडकर को हार का सामना करना पड़ा। उनकी आरक्षित सीट बांबे से कांग्रेस के नारायण सदोबा कजरोलकर जीतकर आए। इसके बाद उन्होंने 1954 में भंडारा से उपचुनाव लड़ा और लोकसभा में प्रवेश करने की कोशिश की, लेकिन फिर कांग्रेस के श्री बोरकर से हार गए। उन्होंने तब राज्यसभा सदस्य के रूप में संसद में प्रवेश किया था।किसान मजदूर प्रजा पार्टी की नींव रखने वाले आचार्य कृपलानी यूपी के फैजाबाद से हार गए।मतदान केंद्र
ढाई लाख मतदान केंद्र बने। साढ़े सात लाख बैलेट बॉक्स बनाए गए। तीन लाख से ज्यादा स्याही के पैकटों का इस्तेमाल हुआ। चुनाव आयोग को करीब 16000 लोगों को अनुबंध के तहत 6 महीने काम पर लगाना पड़ा। तब देश की साक्षरता काफी कम थी, इसलिए आयोग ने गांव- गांव में नुक्कड़ नाटक करवा कर लोगों को वोट डालने के लिए कहा था। चुनाव प्रचार
उस वक्त सड़क पर चुनाव प्रचार के लिए गाड़ी के साथ बैलगाड़ी भी मौजूद थी। दीवारों को पोस्टरों और नारों से पाट दिया गया था। कहीं-कहीं तो गायों की पीठ पर लिखकर पार्टी के लिए वोट मांगे गए। नई पार्टियों का उदय
इस चुनाव में पुराने कांग्रेसी नई पार्टी बनाकर कांग्रेस के खिलाफ उतर रहे थे तो वामपंथी सशस्त्र संग्राम छोड़कर लोकतंत्र में मत की ताकत के आगे झुक चले थे। कांग्रेस के दिग्गज नेता लोहिया और जेपी ने कांग्रेस से अलग होकर सोशलिस्ट पार्टी की नींव रखी। वहीं, श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नेहरू मंत्रिमंडल से अलग होकर जनसंघ की स्थापना कर ली थी। वहीं संविधान निर्माता डॉ अंबेडकर ने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया की स्थापना की।निर्वाचन क्षेत्र
उस वक्त एक निर्वाचन क्षेत्र में एक से अधिक सीटों का चलन था। उसके चलते 401 निर्वाचन क्षेत्र में 489 सीटों पर चुनाव हुए, जो 26 राज्यों का प्रतिनिधित्व करते थे। एक सीट वाले 314 निर्वाचन क्षेत्र थे। 86 निर्वाचन क्षेत्र में दो सीटें थीं।