बिहार में बड़े बदलाव की तस्वीर केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायतीराज मंत्रालय के यह आंकड़े दिखाते हैं कि 2014 से पहले राज्य में जीविका दीदियों की संख्या लगभग 17 लाख थी जबकि दस वर्षों में स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी दीदियों की संख्या बढ़कर 1.30 करोड़ के पार पहुंच गई है। यानी कि चुनाव में जीविका दीदी गेंम चेंजर साबित हो सकती हैं।
रमण शुक्ला, पटना। कभी घूंघट के पीछे और घर की देहरी तक सिमटी महिलाएं राजग सरकार की महिला केंद्रित योजनाओं से आत्मनिर्भर बनीं तो धीरे-धीरे राजनीति भी उन पर निर्भर होती चली जा रही है।
बिहार में बड़े बदलाव की तस्वीर केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्रालय के यह आंकड़े दिखाते हैं कि 2014 से पहले राज्य में जीविका दीदियों की संख्या लगभग 17 लाख थी, जबकि दस वर्षों में स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी दीदियों की संख्या बढ़कर 1.30 करोड़ के पार पहुंच गई है।
मोदी राज में सक्षम हुईं इन महिलाओं का असर ही माना जा सकता है कि 2015 के बाद से मतदान में महिलाओं की हिस्सेदारी पुरुषों की तुलना में बढ़ती जा रही है।
लोकतंत्र के प्रति जागे विश्वास और महिलाओं की जागरूकता के पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल को अहम माना जा सकता है। पिछले तीन चुनावों में महिलाओं के मतदान संबंधित आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं।
2015 के विधानसभा चुनाव में कुल 56.6 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान किया था। इसमें महिलाओं की हिस्सेदारी 60.48 प्रतिशत रही थी, जबकि 53.32 प्रतिशत पुरुषों ने मतदान किया था।
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में 57.3 प्रतिशत मतदाताओं ने वोट डाले थे। इसमें आधी आबादी की भागीदारी 59.58 प्रतिशत रही थी। उसकी तुलना में पुरुषों ने 54.9 प्रतिशत ही मतदान किया था। वहीं, 2020 में 57.3 प्रतिशत मतदाताओं ने वोट डाला था। इसमें आधी आबादी की भागीदारी 59.7 प्रतिशत रही थी। पुरुष मतदाताओं की भागीदारी मात्र 54.7 प्रतिशत रही।
मोदी बना रहे लखपति दीदी
मोदी सरकार स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं की आजीविका बढ़ाते हुए उन्हें लखपति दीदी बनाने के अभियान में जुटी है। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशभर में तीन करोड़ महिलाओं को लखपति दीदी बनाने का लक्ष्य तय किया है तो इसमें बिहार की महिलाओं की संख्या भी अच्छी होना स्वाभाविक है। इसका असर भी इस बार महिलाओं के मतदान पर दिखाई दे सकता है।
महिलाओं को लुभाने वाले विकास कार्यक्रम
साल 2005 से नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली राजग सरकार द्वारा शुरू की गई विकासात्मक नीतियों और कार्यक्रमों के परिणामस्वरूप भी महिला मतदाताओं की संख्या बढ़ी है। बिहार आजीविका परियोजना के दायरे में जीविका कार्यक्रम, साइकिल एवं पोशाक योजना और महिलाओं के लिए पंचायत एवं नगर निकायों के चुनाव में 50 प्रतिशत आरक्षण राजग सरकार की अहम रणनीति का हिस्सा रही है।
इस पहल से लड़कियों के नामांकन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। साथ ही माध्यमिक विद्यालयों में लिंगानुपात में कमी आई है। 2014 में प्रति हजार पुरुषों की तुलना में 877 महिलाएं थीं। वह 2019 में बढ़कर 892 एवं 2024 में 909 हो गई है। अब असर यह है कि विकास प्रक्रिया एवं निर्णय लेने में इनकी भागीदारी ने न केवल महिलाओं को चारदीवारी से बाहर आने में सक्षम बनाया, बल्कि उन्हें सामाजिक एवं आर्थिक रूप से सशक्त भी बनाया है।
विश्व बैंक से ऋण की पहल
ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने की पहल बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने 2006-07 में विश्व बैंक से ऋण लेकर की थी। इसमें महिलाओं के स्वयं सहायता समूह बनाकर उनके बैंक खाते खुलवाए गए और फिर उन्हें रोजगार के लिए सरकार से आर्थिक सहायता अब भी दी जा रही है।बिहार में जीविका की महत्ता इस बात से साबित होती है कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हर मंच से जीविका दीदियों के कामों की खूब प्रशंसा करते हैं।
40 हजार करोड़ रुपये का ऋण
बिहार में जीविका के किसान उत्पादक संघों के उत्पादों की ब्रांडिंग बड़ी कंपनियां कर रही हैं। गांव में स्वरोजगार के सृजन से लेकर कंपनी तक बनाकर काम हो रहा है। आधी आबादी डेयरी, फिशरीज से लेकर सेवा क्षेत्र समेत खेती-किसानी तक में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं।जीविका के तहत बिहार में अब तक महिलाओं के 10.50 लाख स्वयं सहायता समूहों को लगभग 40 हजार करोड़ रुपये का ऋण बैंकों द्वारा दिया गया है।