Lok Sabha Election 2019: 'आयुष्मान' ने नहीं बिकने दी हमारी जमीन, पढ़ें-Ground Report
Lok Sabha Election 2019. पलामू में एक साल में 6200 लोगों का हुआ मुफ्त इलाज। हालांकि सरकारी अस्पतालों का अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा है।
By Alok ShahiEdited By: Updated: Tue, 02 Apr 2019 01:26 PM (IST)
पलामू से नवीन कुमार मिश्र। Lok Sabha Election 2019 - विनोद बदहवास सा दौड़ा हुआ अस्पताल पहुंचा था। डॉक्टर साहब किसी तरह बच्ची को बचा लीजिए। 18-20 दिन पहले की ही बात है। पलामू के चैनपुर प्रखंड के कल्याणपुर के विनोद की पत्नी लक्ष्मी ने बेटी को जन्म दिया था। समय से पहले ही। सतमासू बेटी को। बिटिया के जन्म के साथ ही डॉक्टर ने जवाब दे दिया। बड़े अस्पताल के लिए रेफर कर दिया।
दरअसल वहां सतमासू के लिए एनआइसीयू यानी न्यूनेटिक इंसेंटिव केयर यूनिट की व्यवस्था नहीं थी। मजदूरी कर जीवन यापन करने वाले विनोद के लिए मानों पहाड़ टूट पड़ा था। क्या किया जाए। पिताजी शिवनारायण चौधरी रिक्शा चलाकर घर चलाते हैं। निजी डॉक्टर के यहां नौ हजार रुपये खर्च कर चुके थे। जेब खाली थी। हम आशी लाइफ केयर में थे। विनोद की बेटी अभी भी यहां भर्ती है।
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विनोद बताते हैं कि उसने मन कड़ा किया और बेटी को बचाने का फैसला किया। मन ही मन जमीन का सौदा तय करते हुए इस अस्पताल में पहुंच गए। समझ चुके थे कि एक दिन में नौ हजार रुपये खर्च हो गए तो आगे जमीन बेचे बिना बड़े अस्पताल में गुजारा नहीं। यह सिर्फ जमीन बेचने नहीं वजूद की जमीन का सवाल था। अस्पताल पहुंचते ही उसका गोल्डन कार्ड बन गया। और बेटी का इलाज शुरू हो गया। बिना एक पैसा खर्च किए। यह उसके लिए आश्चर्य से कम नहीं था।
वाकया बताते, बताते मुसकुरा उठे। खुशी से उसकी आंखें छलछला आईं। आज बेटी अच्छी है। अभी तक के हिसाब से 50 हजार रुपये के बिल बन गए होते। आगे भी नियिमत अस्पताल आना पड़ेगा। जमीन बेचने की नौबत नहीं आई। बाद में उसे पता चला कि आयुष्मान भारत योजना के तहत उसका इलाज हुआ। योजना ने उसकी जमीन बचा दी और बच्ची भी। डॉक्टर कह रहे हैं अब बेटी की हालत ठीक है।
आयुष्मान की कामना : पांकी के पगार खुर्द के सलोक से भी यहीं मुलाकात हो गई। एक बीघा जमीन के मालिक हैं। कहते हैं मां-बेटी की जान बचाने के लिए डॉक्टर ने बड़े अस्पताल के लिए रेफर कर दिया। पिताजी छठू साव रांची में रिक्शा चलाते हैं। माली हालत ऐसी नहीं थी कि जमा पैसे से इलाज करा पाता। पहले पत्नी हीरावती किसी सूरत में दिल के टुकड़े को खोना नहीं चाहती थी। जमीन बेचकर भी इलाज कराने का फैसला किया और पहुंच गया पलामू। 42 दिनों से एनआइसीयू में बेटी भर्ती है। रोजाना तीन-चार हजार रुपये के हिसाब से अब तक कोई डेढ़ लाख रुपये का बिल बन गया होता। आयुष्मान को जमीन पर उतारने वाले के लिए आयुष्मान की कामना करता है।
65 हजार लोगों का गोल्डन कार्ड बन चुका : गांव-घर में कहावत है जिसे अस्पताल और अदालत का चक्कर लगा वह बर्बाद हो गया। मगर किसी तरह मजदूरी का जीवन यापन करने वाले गरीबों के लिए वास्तव में आयुष्मान योजना किसी वरदान से कम नहीं। पलामू के अस्पतालों में विनोद और सलोक जैसे कोई 6200 लोगों के भांति-भांति के मरीज थे जिनका एक साल के भीतर इलाज हुआ। करीब साढ़े छह करोड़ रुपये खर्च हुए। अनेक गरीबों की जमीन बिकने से बची तो अनेक सूदखोर के चंगुल से बचे। सिर्फ इसी जिले में 65 हजार से अधिक लोगों के गोल्डन कार्ड बन चुके हैं। सूचीबद्ध 37 सरकारी गैर सरकारी अस्पतालों में इलाज करा सकते हैं। पांच लाख तक का मुफ्त इलाज। सेवा का लाभ लेने वालों के दिल से योजना चलाने वाले के लिए आयुष्मान भव: का आशीर्वाद निकलना अस्वाभाविक नहीं है। नहीं मिलता सहयोग : आशी लाइफ केयर की डॉक्टर प्रिया सिन्हा सदर अस्पताल की पर्ची दिखाते हुए कहती हैं कि सरकारी अस्पताल बाधक बने हुए हैं। बिना डॉक्टर के नाम, पदनाम, रिजस्ट्रेशन नंबर के रेफर कर दिया जा रहा है। ऐसे बीस से अधिक केस आए हैं। अधूरे ब्योरे के कारण फिर से अनुशंसा मंगानी पड़ती है, नहीं तो इलाज की राशि की प्रतिपूर्ति नहीं होती। मरीज परेशान होते हैं।
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