Move to Jagran APP

क्‍या पश्चिम बंगाल में इस बार होगा अलग 'खेला'! आखिर क्‍यों महुआ की सीट ममता के लिए बनी साख की लड़ाई?

Lok Sabha Election 2024 पश्चिम बंगाल की कृष्णानगर लोकसभा सीट लोकसभा चुनाव 2024 में खासा चर्चा में है। सियासी विश्लेषकों का कहना है कि कृष्णानगर सीट तृणमूल के लिए नाक की लड़ाई बन चुकी है। मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी ने महुआ मोइत्रा को यहां दोबारा प्रत्याशी बनाकर बड़ा दांव खेला है। ममता की पार्टी हर हाल में इस सीट से जीत दर्ज करना चाहती है।

By Jagran News Edited By: Deepti Mishra Updated: Tue, 09 Apr 2024 07:00 AM (IST)
Hero Image
Lok Sabha Chunav 2024: कृष्णानगर लोकसभा सीट से ममता ने महुआ को दोबारा प्रत्‍याशी बनाया है। फाइल फोटो
 विशाल श्रेष्ठ, कोलकाता। पिछले डेढ़ दशक से तृणमूल कांग्रेस के कब्जे वाली बंगाल की कृष्णानगर लोकसभा सीट इस बार उसके लिए कड़ी चुनौती बन गई है। यहां राज्य की मुख्यमंत्री और पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी की साख की लड़ाई बताई जा रही है। ममता ने महुआ मोइत्रा को यहां दोबारा प्रत्याशी बनाकर बड़ा दांव खेला है।

पैसे और उपहार लेकर संसद में सवाल पूछने व विदेश में बैठे उद्योगपति को संसद का अपना लाग-इन आईडी व पासवर्ड देने के मामले में दोषी करार देते हुए लोस की आचार समिति महुआ की सदस्यता रद्द कर चुकी है। दूसरी ओर ममता ने महुआ को निर्दोष करार दिया है। सियासी विश्लेषकों का कहना है कि कृष्णा नगर सीट तृणमूल के लिए नाक की लड़ाई बन चुकी है।

ममता की पार्टी हर हाल में जीत दर्ज कर यह साबित करना चाहती है कि जनता ने महुआ पर लगे आरोपों को नकार दिया है। यही कारण है कि ममता ने पहले चरण में मतदान वाले संसदीय क्षेत्रों के बदले कृष्णानगर से चुनाव प्रचार अभियान शुरू किया, जहां चौथे चरण में वोट पड़ने हैं।

कुछ का मानना है कि महुआ को टिकट देना ममता के लिए मजबूरी बन गई थी, क्योंकि लोस प्रकरण पर पुरजोर समर्थन के बाद उन्हें टिकट नहीं देने से गलत संदेश जाता और यह महुआ पर लगे आरोपों की परोक्ष तौर पर स्वीकारोक्ति प्रतीत होती। हालांकि, महुआ को फिर से प्रत्याशी बनाना तृणमूल के लिए जोखिमपूर्ण भी है, क्योंकि नतीजे पक्ष में नहीं आए तो भी गलत संदेश जाएगा।

यह भी पढ़ें -उत्तर प्रदेश के वे पांच गैर भाजपाई CM जिनके बेटा-बेटी व बहू ने ली BJP में शरण, कांग्रेस से आए कई चौंकाने वाले नाम

कांटे की टक्कर के आसार

कृष्णानगर में इस बार जबरदस्त लड़ाई देखने को मिल सकती है, क्योंकि तृणमूल के साथ-साथ विरोधी दल भी पूरा दम लगा रहे हैं। भाजपा ने यहां राजा कृष्णचंद्र राय की वंशज अमृता राय को प्रत्याशी बनाया है, जिन्हें क्षेत्र में ‘राजमाता’ का दर्जा प्राप्त है।

वाममोर्चा की अगुआई करने वाली माकपा भी अपना पुराना दुर्ग वापस पाने को बेताब है। उसने पूर्व पार्टी विधायक एसएम सादी को टिकट दिया है। वाम मोर्चा को इस बार यहां कांग्रेस का समर्थन मिलने की भी उम्मीद है, क्योंकि उसने अभी तक अपना प्रत्याशी नहीं उतारा है। साल 2019 के चुनाव में महुआ ने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा के कल्याण चौबे को 63,218 वोटों के अंतर से हराया था।

यह भी पढ़ें -चुनावी जंग में साहित्‍य के योद्धा: वे लेखक जिन्‍होंने सक्रिय राजनीति की और चुनाव भी लड़ा; फिर देश की बागडोर भी संभाली

देशद्रोही बनाम गद्दार की वंशज

भाजपा जहां लोस प्रकरण को लेकर महुआ को देशद्रोही करार दे रही है, वहीं तृणमूल अमृता राय को ‘गद्दार की वंशज’ बताकर निशाना साध रही है। ममता ने कृष्णानगर की अपनी जनसभा में दावा किया कि 1757 में राजा कृष्णचंद्र राय ने मीर जाफर के साथ मिलकर साजिश रची थी और खुद को अंग्रेजों के हाथों बेच दिया था।

अमृता राय उसी परिवार की वंशज हैं। मालूम हो कि अमृता राय का विवाह राजा कृष्णचंद्र राय के 39वें वंशज सौमिश चंद्र राय से हुआ था। दूसरी तरफ अमृता राय की दलील है कि राजा कृष्णचंद्र राय ने प्लासी की लड़ाई में इसलिए अंग्रेजों का साथ दिया था, क्योंकि बंगाल का तत्कालीन नवाब सिराजुद्दौला अत्याचारी था और उसके शासन में सनातन धर्म खतरे में पड़ गया था।

यह भी पढ़ें -मतदाता ही भाग्यविधाता: यहां शहर में कम गांवों में अधिक दौड़ रहे नेताजी, क्या है ग्रामीण समीकरण, जिससे परेशान सभी दल?

डेढ़ दशक से तृणमूल हावी

कृष्णानगर क्षेत्र एक समय माकपा के सबसे मजबूत दुर्ग में से एक था, पर पिछले डेढ़ दशक से इसपर तृणमूल का कब्जा है। 1971 से 1998 तक माकपा ने यहां एकछत्र राज किया, लेकिन 1999 में भाजपा ने सबको चौंकाते हुए यह सीट जीत ली। हालांकि, 2004 में माकपा ने इस पर फिर से कब्जा जमा लिया था, लेकिन उसके बाद से यह सीट तृणमूल के अधीन है। पिछले लोस चुनाव में तृणमूल ने महुआ को यहां से उतारा था।

यह भी पढ़ें - वो नेता जिसे सिक्के से तौलते थे कार्यकर्ता, अटलजी भी उनके घर पर ठहरते; पहली बार खिलाया था कमल