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लोकसभा चुनाव: मतदाता ने दिया फैसला, असमंजस में सियासतदां

उत्तराखंड की पांचों सीटों पर सामने आए वोटर टर्न आउट ने सियासतदां को असमंजस में डाल दिया है।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Fri, 12 Apr 2019 07:18 AM (IST)
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लोकसभा चुनाव: मतदाता ने दिया फैसला, असमंजस में सियासतदां
देहरादून, विकास धूलिया। उत्तराखंड की पांचों सीटों पर सामने आए वोटर टर्न आउट ने सियासतदां को असमंजस में डाल दिया है। पिछले लोकसभा चुनाव की अपेक्षा इस बार लगभग चार प्रतिशत कम मतदान हुआ। प्रारंभिक आंकड़ों के मुताबिक 57.85 प्रतिशत मतदान हुआ और इस स्थिति में यह सवाल महत्वपूर्ण हो जाता है कि चार प्रतिशत का यह रिवर्स स्विंग किसे रास आएगा, भाजपा या कांग्रेस। यह बात दीगर है कि दोनों ही पार्टियों के इसे लेकर अपने-अपने दावे हैं लेकिन इन दावों में  दम कितना है, यह 23 मई को चुनाव नतीजे सामने आने पर पता चल पाएगा।

राज्य में औसत रहा मतदान प्रतिशत

सत्रहवीं लोकसभा के लिए हुए पहले चरण के मतदान में उत्तराखंड की पांचों सीटों पर औसत मतदान हुआ। हालांकि यह वर्ष 2004 व 2009 के मतदान से ज्यादा है। राज्य निर्वाचन कार्यालय ने शाम पांच बजे तक कुल मतदान प्रतिशत का जो प्रारंभिक आंकड़ा जारी किया, वह रहा 57.85, यानी वर्ष 2014 से लगभग 4.30 प्रतिशत कम। राज्य गठन के बाद उत्तराखंड में यह चौथे लोकसभा चुनाव हैं लेकिन ऐसा पहली बार हुआ कि पिछली बार की अपेक्षा कुछ कम मतदाता पोलिंग बूथ तक पहुंचे। अब मतदाता ने अपना फैसला तो दे दिया मगर उसकी चुप्पी ने सियासी पार्टियों और उनके दिग्गजों को परेशानी में डाल दिया है।

वोटर टर्नआउट ने बढ़ाई उलझन 

वोटर टर्नआउट में कमी ने सियासी पार्टियों के साथ ही राजनैतिक विश्लेषकों को भी उलझन में डाल दिया है। मत प्रतिशत में कमी राज्य गठन के बाद पहली बार दर्ज हुई है तो कोई भी इसे लेकर किसी तरह का अनुमान लगाने की स्थिति में नहीं है। हालांकि उम्मीदों का दामन थामे हर पार्टी और हर प्रत्याशी कम मतदान को अपने पक्ष में बता रहा है लेकिन सच तो यह है कि उन्हें बिल्कुल भी अनुमान नहीं कि यह आगामी 23 मई को क्या गुल खिलाएगा।

पहले लोस चुनाव में भाजपा पड़ी भारी

 राज्य गठन के बाद वर्ष 2004 के पहले लोकसभा चुनाव में कुल 48.07 प्रतिशत मत पड़े। भाजपा को मिले 40.98 प्रतिशत और कांग्रेस के हिस्से आए 38.31 प्रतिशत। सपा का हिस्सा रहा 7.93 और बसपा का 6.77 प्रतिशत। यानी भाजपा को कांग्रेस के मुकाबले मिले केवल 2.67 प्रतिशत ज्यादा मत लेकिन उसने राज्य की पांच में से तीन सीटों टिहरी, पौड़ी गढ़वाल और अल्मोड़ा पर कब्जा जमा लिया। कांग्रेस को नैनीताल और सपा को हरिद्वार सीट पर जीत मिली।

2009 में कांग्रेस का क्लीन स्वीप

वर्ष 2009 के दूसरे लोकसभा चुनाव में राज्य में कुल 53.43 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया। कांग्रेस को मिले 43.13 प्रतिशत और भाजपा को 33.82 प्रतिशत। मतलब, कांग्रेस को भाजपा के मुकाबले 9.31 प्रतिशत ज्यादा मत हासिल हुए और उसने भाजपा समेत सभी पार्टियों का सूपड़ा साफ कर करते हुए पांचों सीटें जीत लीं। साफ है कि अधिक वोटर टर्न आउट का फायदा कांग्रेस को मिला। दिलचस्प बात यह रही कि इस चुनाव में बसपा को कुल 15.24 प्रतिशत मत मिले लेकिन वह कोई सीट नहीं जीत पाई, जबकि इससे पिछली बार सपा केवल 7.93 प्रतिशत मत लेकर एक सीट हासिल करने में कामयाब रही थी।

2014 में उलट गई पूरी तस्वीर

अब बात करें पिछले, यानी वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव की। तब राज्य में कुल मतदान प्रतिशत रहा 61.67, यानी पिछली बार की अपेक्षा 8.24 प्रतिशत की बढ़ोतरी। भाजपा पहली बार 55.30 प्रतिशत मत लेकर पांचों सीटों पर परचम फहरा गई, जबकि कांग्रेस को मिले 34.00 प्रतिशत मत। कांग्रेस 21.30 प्रतिशत मतों से पिछड़ कर खाली हाथ रह गई। पिछले तीन लोकसभा चुनावों के विश्लेषण से साफ है कि वर्ष 2004 में केवल 2.67 प्रतिशत मतों के अंतर ने भाजपा को कांग्रेस पर दो सीटों की बढ़त दिला दी। वर्ष 2009 में कुल मतदान प्रतिशत में 4.36 प्रतिशत का इजाफा क्या हुआ कि पूरी तस्वीर ही उलट गई। कांग्रेस अपनी प्रतिद्वंद्वी भाजपा से 9.31 प्रतिशत ज्यादा मत लेकर पांचों सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल रही।

सवाल के जवाब को 42 दिन इंतजार

वर्ष 2014 में कुल मतदान प्रतिशत में 8.24 प्रतिशत की वृद्धि हुई और इस बार यह रास आई भाजपा को, जिसने पांचों सीटें रिकार्ड अंतर से जीत लीं। अब इस दफा कुल मतदान प्रतिशत में 4.30 की गिरवट आई है। अब यह किसके पक्ष में जाएगा, अगले 42 दिन सियासत में रुचि लेने वाले इसी गणित में उलझे दिखाई देंगे।

लोकसभा चुनावों में मतदान प्रतिशत

2004   48.07

2009   53.43 

2014   61.67 

2019   57.85 

 चुनाव की विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें

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