Balaghat Lok Sabha Seat: किसानों को लेकर BJP के दो बड़े नेताओं के बीच पड़े रार के बीज; एक ने छोड़ दी राजनीति
Balaghat Lok Sabha Election 2024 latest news देश में सभी राजनीतिक दल लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियां में लगे हैं। ऐसे में आपके लिए भी अपनी लोकसभा सीट और अपने सांसद के बारे में जानना भी जरूरी है ताकि इस बार किसको जिताना है इसे लेकर कोई दुविधा न हो। आज हम आपके लिए लाए हैं बालाघाट लोकसभा सीट और यहां के सांसद के बारे में पूरी जानकारी...
योगेश कुमार गौतम, बालाघाट। Balaghat Lok Sabha Chunav 2024 updates : प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण बालाघाट संसदीय क्षेत्र में विश्व प्रसिद्ध कान्हा नेशनल पार्क है,वहीं इस सीट का एक बड़ा हिस्सा वनों से आच्छादित है। यहां लोकसभा चुनाव में कई प्रयोग देखने को मिले हैं। जनता ने अलग-अलग दलों के प्रत्याशियों को सांसद बनने का मौका दिया, लेकिन पिछले पांच लोकसभा चुनाव से बालाघाट लोकसभा सीट पर लगातार भाजपा का कब्जा है।
साल 1952 से लेकर वर्ष 2019 तक के राजनीतिक परिदृश्य में मतदाताओं ने जनसंघ-भाजपा और कांग्रेस जैसे प्रमुख राजनीतिक दलों के अलावा प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के प्रत्याशियों को भी यहां से सांसद चुना।वर्ष 1962 में इस सीट पर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के स्वर्गीय भोलाराम पारधी सांसद चुने गए थे। भोलाराम पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन के नाना थे।
इसके बाद वर्ष 1977 में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (खोब्रागढ़े) से कचरूलाल हेमराज जैन सांसद बने। उस दौर में भारतीय राजनीति में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया की उपस्थिति थी और बालाघाट की जनता ने इनके उम्मीदवारों पर भरोसा जताया। वर्ष 1989 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में कंकर मुंजारे भी सांसद चुने गए। समय के साथ भाजपा मजबूत होती गई।
एक दल भंग तो दूसरे का कम हुआ प्रभाव
समय के साथ कई दलों का महत्व खत्म हो गया। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी वर्ष 1972 में भंग हो गई। रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया आज प्रभावहीन है। बालाघाट लोकसभा सीट से पहली बार कांग्रेस के चिंतामन राव गौतम सांसद चुने गए थे। इस सीट पर कांग्रेस से आखिरी सांसद विश्वेश्वर भगत थे। उन्होंने वर्ष 1991 में चुनाव जीता और वर्ष 1996 तक सांसद रहे।इसके बाद बालाघाट लोकसभा सीट पर भाजपा ने कांग्रेस को कभी बढ़त नहीं लेने दी। इस दौरान भाजपा को मिलने वाले वोटों का प्रतिशत भी बढ़ा। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी केडी देशमुख ने कांग्रेस के विश्वेश्वर भगत को हराया। भाजपा को 39.65 फीसदी वोट मिले थे। वर्ष 2019 में हुए चुनाव में भाजपा के डॉ. ढाल सिंह बिसेन को 50.74 फीसदी वोट मिले थे।
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चिंतामन गौतम ने क्यों छोड़ दी राजनीति?
इस सीट के पहले सांसद कांग्रेस से चिंतामन गौतम थे। वे चार बार सांसद चुने गए। पहले लोकसभा चुनाव वर्ष 1952 में उन्होंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के शेवराम बिसेन को शिकस्त दी थी। इसके बाद चिंतामन वर्ष 1957, 1967 और 1971 में सांसद चुने गए।चिंतामन गौतम को पहली बार वर्ष 1977 में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के कचरूलाल जैन से हार झेलनी पड़ी। इसके साथ ही चिंतामन गौतम ने राजनीति से संन्यास ले लिया।जातिगत समीकरण में पंवार समाज सबसे अहम
बालाघाट-सिवनी क्षेत्र में लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा का, यहां जातिगत समीकरण अहम किरदार निभाता है। क्षेत्र में पंवार समाज (ओबीसी) चुनावी नतीजों को बदलने या पलटने की ताकत रखता है।इस संसदीय क्षेत्र में वर्ष 1952 से वर्ष 2019 तक 11 व्यक्ति सांसद चुने गए। इनमें सात सांसद पंवार समाज से रहे। केवल कचरूलाल जैन, नंदकिशोर शर्मा, प्रहलाद पटेल और कंकर मुंजारे पंवार समाज से नहीं हैं। पंवार समाज को साधने के लिए भाजपा अक्सर इसी के उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतारती है। भाजपा के चार तो कांग्रेस के दो सांसद पंवार समाज से रहे हैं। वर्ष 2009 में परिसीमन के बाद संसदीय क्षेत्र में सिवनी और बरघाट के शामिल होने के बाद पंवार समाज का दबदबा और बढ़ गया। पंवार समाज के बाद दूसरे पायदान पर आदिवासी मतदाता, फिर लोधी, मरार और अन्य समाज के मतदाता हैं।सांसद और मंत्री की तनातनी रही चर्चा का केंद्र
वर्ष 2014 में भाजपा से बोधसिंह भगत सांसद बने थे, तब गौरीशंकर बिसेन प्रदेश के कृषि मंत्री थे। दोनों के बीच कई बार तनातनी हुई। कई बार लोगों ने खुले मंच पर दोनों के बीच जुबानी जंग होते देखी। जून, 2017 में मलाजखंड में आयोजित भाजपा के ‘सबका साथ, सबका विकास’ कार्यक्रम में दोनों के बीच हुए विवाद ने प्रदेश स्तर पर राजनीतिक भूचाल ला दिया था।माना जाता है कि दोनों बड़े नेताओं के बीच झगड़े की जड़ वो बीज कंपनी थी, जिसकी खराब गुणवत्ता को लेकर बोधसिंह भगत ने कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन को उलझा लिया था।वर्ष 2017 में महाराष्ट्र के वर्धा जिले में इस कंपनी के बीजों के कारण कई किसानों की फसल बर्बाद हो गई थी। तब बोधसिंह भगत और गौरीशंकर बिसेन के बीच बालाघाट के उत्कृष्ट विद्यालय मैदान सहित अन्य राजनीतिक मंचों पर जमकर विवाद हुआ था। दोनों नेताओं ने एक-दूसरे पर कई गंभीर आरोप भी लगाए। दोनों के बीच विवाद की आग कभी शांत नहीं हुई। आखिरकार बोधसिंह भगत का वर्ष 2019 में टिकट कट गया और वर्ष 2023 में उन्होंने भाजपा छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया।प्रहलाद सिंह पटेल ने बालाघाट से भी दर्ज की थी जीत
प्रदेश और केंद्र में कई मंत्रालयों का दायित्व संभालने वाले प्रहलाद सिंह पटेल के राजनीतिक जीवन में बालाघाट का खास स्थान है। बालाघाट में लोधी समाज का भी अच्छा प्रभुत्व है और प्रहलाद पटेल के इसी जाति से होने का लाभ लेने के लिए वर्ष 1999 में भाजपा ने बालाघाट-सिवनी संसदीय क्षेत्र से उन्हें मैदान में उतारा। प्रहलाद सिंह पटेल ने लोकसभा का चुनाव लड़ा और खुद का राजनीतिक वजन साबित भी किया।बालाघाट लोकसभा सीट में कितनी विधानसभा?
बैहर, लांजी, परसवाड़ा, बालाघाट, वारासिवनी, कटंगी, बरघाट और सिवनी समेत आठ विधानसभा क्षेत्र हैं।बालाघाट के प्रयोगधर्मी मतदाता
प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया और निर्दलीय प्रत्याशी भी जीते लोकसभा चुनाव, पंवार जाति का क्षेत्र और राजनीति में दबदबा।बालाघाट की ताकत
- कुल मतदाता- 13,14,181
- पुरुष मतदाता- 6,54,385
- महिला मतदाता- 6,59,784
- थर्ड जेंडर- 12
साल | सांसद | पार्टी |
1952 | चिंतामन गौतम | कांग्रेस |
1957 | चिंतामन गौतम | कांग्रेस |
1962 | भोलाराम पारधी | प्रजा सोशलिस्ट पार्टी |
1967 | चिंतामन गौतम | कांग्रेस |
1971 | चिंतामन गौतम | कांग्रेस |
1977 | कचरूलाल जैन | रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया |
1980 | नंदकिशोर शर्मा | कांग्रेस |
1989 | कंकर मुंजारे | निर्दलीय |
1991 | विश्वेश्वर भगत | कांग्रेस |
1998 | गौरीशंकर बिसेन | भाजपा |
1999 | प्रहलाद सिंह पटेल | भाजपा |
2004 | गौरीशंकर बिसेन | भाजपा |
2009 | केडी देशमुख | भाजपा |
2014 | बोधसिंह भगत | भाजपा |
2019 | डॉ. ढाल सिंह बिसेन | भाजपा |