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Election 2024: बच के रहना रे बाबा... चुनाव में भारी न पड़ जाए Deepfake, नेताओं के लिए नई मुश्किल के रूप में उभर रहा AI

इंटरनेट मोबाइल और इंटरनेट मीडिया ने नेताओं को चुनावी दौड़-धूप से बचाते हुए प्रचार-प्रसार के माध्यम को गति दी है। वहीं इसके अपने नुकसान भी हैं। फोटो या वीडियो से छेड़छाड़ के ऐसे मामले ही सामने आते रहे जिनका फर्जीवाड़ा पैनी निगाह से पकड़ लिया जाता था लेकिन आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस ने इस फर्जीवाड़े को भी इतना महीन रूप दे दिया है कि यह बिल्कुल वास्तविक जैसा ही लगता है ।

By Jagran News Edited By: Amit Singh Updated: Wed, 13 Mar 2024 07:44 AM (IST)
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देश-विदेश में कई नेता हो चुके हैं डीपफेक वीडियो-आडियो के शिकार
राजीव कुमार, नई दिल्ली। पिछले वर्ष सितंबर में स्लोवाकिया के आम चुनाव में प्रोग्रेसिव स्लोवाकिया पार्टी नेता सिमेका इसलिए हार गए, क्योंकि चुनाव से ठीक दो दिन पहले उनका एक वीडियो इंटर मीडिया पर प्रसारित हो गया। उस वीडियो में वह कह रहे थे कि चुनाव जीतने पर बीयर की कीमत दोगुनी कर देंगे। वास्तव में सिमेका ने ऐसी कोई घोषणा नहीं की थी, बल्कि किसी ने डीपफेक का प्रयोग कर फर्जी वीडियो प्रसारित कर दिया।

वीडियो का सच लोगों तक पहुंचता, इससे पहले नुकसान हो चुका था। यह घटना भले ही दूर देश की है, लेकिन डीपफेक का खतरा भारत में भी राजनीतिक दलों और नेताओं को डरा रहा है। ऐसे कई मामले यहां भी सामने आ चुके हैं। ऐसे में जानकारों की सलाह यही हैं कि डीपफेक से बचके रहना... यह चुनाव में कहीं भारी न पड़ जाए!

नई तकनीक के अपने ही नुकसान

दरअसल, तकनीक के इस दौर में इंटरनेट, मोबाइल और इंटरनेट मीडिया ने नेताओं को चुनावी दौड़-धूप से कुछ हद तक बचाते हुए प्रचार-प्रसार के माध्यम को गति दी है। वहीं, इसके अपने नुकसान भी हैं। अब तक तो फोटो या वीडियो से छेड़छाड़ के ऐसे मामले ही सामने आते रहे, जिनका फर्जीवाड़ा पैनी निगाह से पकड़ लिया जाता था, लेकिन आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआइ) ने इस फर्जीवाड़े को भी इतना महीन रूप दे दिया है कि यह बिल्कुल वास्तविक जैसा ही लगता है।

हाल ही में सामने आए कई मामले

स्लोवाकिया की घटना यदि विदेश की बानगी है तो कुछ समय पहले का ही मामला तेलंगाना का भी है। पिछले वर्ष ही नवंबर में तेलंगाना में हुए चुनाव में बीआरएस के मुखिया व राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव का डीपफेक वीडियो बन गया, जिसमें राव कांग्रेस के पक्ष में वोट करने के लिए कह रहे थे। बीआरएस की तरफ से चुनाव के दौरान उनके खिलाफ डीपफेक के इस्तेमाल को लेकर पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई गई थी।

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इसके अलावा गत नवंबर में राजस्थान में चुनाव के दौरान मतदाताओं को रिझाने के लिए एआइ का इस्तेमाल कर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की आवाज में वाट्सअप से मतदाताओं को उनके नाम से काल किया गया। हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन की नकली आवाज में एक वीडियो जारी किया गया।

इन घटनाओं का इशारा यह है कि देश से लेकर विदेश तक चुनाव में अपने विरोधियों को नुकसान पहुंचाने या खुद के पक्ष में वोटरों को रिझाने की मंशा से डीपफेक का इस्तेमाल तेजी से शुरू हो गया है। पिछले दो साल से दुनिया के विभिन्न देशों में होने वाले चुनावों में एआइ आधारित डीपफेक के इस्तेमाल की घटनाएं सामने आ रही हैं।

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के चुनाव को डीपफेक से अछूता रखना संभव नहीं दिख रहा है, क्योंकि चुनाव एक धारणा और उम्मीदवार की छवि पर लड़ा जाता है और डीपफेक दोनों ही चीजों को तहस- नहस करने की क्षमता रखता है। भारत में जहां 90 करोड़ से अधिक मतदाता हैं और लगभग सभी मतदाता इंटरनेट से लैस मोबाइल फोन रखते हैं। ऐसे में किसी उम्मीदवार की छवि को नुकसान पहुंचाने वाला डीपफेक वीडियो चुनाव के दिन या मतदान शुरू होने से कुछ घंटे पहले प्रसारित हो जाए तो निश्चित रूप से उस उम्मीदवार को क्षति हो सकती है।

विशेषज्ञों की राय

जानकार कहते हैं कि इस तरह के वीडियो से अगर एक भी वोट प्रभावित होता है तो निश्चित रूप से यह लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं है। जानकारों के मुताबिक, डीपफेक वीडियो या आडियो के लिए ऐसे लोगों का इस्तेमाल किया जाता है, जिनका कोई पब्लिक प्रोफाइल नहीं होता है। उनके नंबर का इस्तेमाल वाट्सएप या अन्य प्लेटफार्म पर किया जाता है। इस वजह से डीपफेक वीडियो फैलाने वाले के बारे में जल्दी से पता नहीं चल पाता है।

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