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Lok Sabha Election 2024: 16 घंटे प्रचार, सौ किमी की यात्रा और दो घंटे की नींद, केन्द्रीय मंत्री ने इस सीट पर झोंकी पूरी ताकत

Lok Sabha Election 2024 पिछले दो लोकसभा चुनावों में राजस्थान की अलवर सीट पर भाजपा का कब्जा रहा है। इस बार पार्टी ने यहां से केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को मैदान में उतारा है जिस वजह से यह एक हाई प्रोफाइल सीट बन गई है। भूपेन्द्र यादव ने यहां पर अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। जानिए कैसा रहता है उनका चुनावी प्रचार का एक दिन।

By Jagran News Edited By: Sachin Pandey Updated: Sun, 07 Apr 2024 09:08 AM (IST)
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शुक्रवार को जनसंपर्क के दौरान भूपेंद्र यादव को काजू-बादाम से तौला गया।
मनीष तिवारी, अलवर। दस फीट लंबे साफे को तीस सेकेंड में पगड़ी का रूप देकर केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव यह जता देते हैं कि अलवर में उनके चुनावी मुकाबले को बाहरी बनाम स्थानीय का रूप देना बेमानी है। इस लोकसभा सीट के लिए हो रहे संघर्ष में भूपेंद्र यादव को उनके प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के ललित यादव बाहरी उम्मीदवार बता रहे हैं, लेकिन खुद भूपेंद्र यादव के लिए यह कोई मुद्दा ही नहीं है।

उनके पास यह बताने के लिए बहुत कुछ है कि अलवर उनके लिए नई जगह नहीं है। वह इस संसदीय क्षेत्र के लंबे समय तक प्रभारी भी रहे हैं और उनकी दो बहनें भी यहीं रहती हैं। ललित यादव मौजूदा विधायक हैं और इस भरोसे उन्हें कड़ी चुनौती देने का दावा कर रहे हैं कि इस सीट पर 11 बार उनकी पार्टी का प्रत्याशी चुनाव जीत चुका है।

दो बार से भाजपा का कब्जा 

वैसे पिछले दो बार से यह सीट भाजपा के पास है। 19 अप्रैल को पहले चरण के मतदान से गुजरने वाले अलवर के मुकाबले पर राष्ट्रीय दृष्टि है और इस चुनौती के मुकाबले केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव की तैयारी भी जबरदस्त है। वह इस समय केवल दो घंटे सोते हैं-रात में दो से चार बजे और पहली सूची में ही नाम आ जाने से उन्हें तैयारी का इतना वक्त मिल चुका है कि वह इस बड़े संसदीय क्षेत्र की हर गली में दस्तक दे सकें।

शुक्रवार को भी उनका दिन बीस से अधिक छोटी-बडी सभाओं, सुबह सैर पर चर्चा, चैंबर आफ कामर्स और इंडस्ट्री में प्रबुद्धजन के साथ संवाद के साथ बीता। सिलसिला सुबह छह बजे शुरू हुआ और रात नौ बजे तक चलता रहा। इसके बाद अगले दिन की तैयारी के लिए प्रचार की कमान संभाल रहे लोगों के साथ लंबी बातचीत।

न वोट कम पड़ने चाहिए, न काजू-बादाम

अहम बात यह भी है कि सौ किलोमीटर से अधिक के प्रचार अभियान के दौरान उनके चुनाव प्रबंधकों की ओर से तैयार किया गया कार्यक्रम 15 मिनट से अधिक इधर से उधर नहीं हुआ। सभाएं अगर लंबी खिंची तो भूपेंद्र यादव ने अंतराल घटा दिया। नाश्ता-खाना, सब इसी दौरान और चाय कार्यकर्ताओं के साथ कभी भी।

फल-सब्जी मंडी और आढ़त में उन्हें काजू-बादाम से तौलने की तैयारी थी तो कार्यकर्ताओं ने उत्साह में दो सौ किलो सामग्री मंगा ली। भूपेंद्र यादव पूरे 90 किलो के भी नहीं हैं। आयोजकों से पूछा गया कि दो सौ किलो काजू-बादाम मंगाने की क्या जरूरत थी तो उनका जवाब था-न वोट कम पड़ने चाहिए, न काजू-बादाम। इस बार दो गुने वोट से जीत दिलानी है।

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सभा के दौरान ही एक कार्यकर्ता ने उन्हें ताजा गोभी का फूल भेंट कर दिया तो उन्होंने इसे भी मुस्करा कर स्वीकार कर लिया। पहली बार लोस चुनाव में उतरे भूपेंद्र के प्रचार वाले तरकश में सबसे बड़ा अस्त्र पीएम नरेन्द्र मोदी की गारंटी ही है।

क्या हैं मुद्दे

वह जोर से बोलने वाले राजनेता नहीं रहे। इसके बजाय वह अपनी बात, तर्क और पक्ष पूरी गंभीरता-मधुरता से रखने के लिए जाने जाते हैं-मोहल्ले की सभाओं से लेकर केंद्रीय पर्यावरण मंत्री के रूप में अंतरराष्ट्रीय मंचों तक में। विपक्ष, खासकर कांग्रेस पर हमलों के दौरान भी आवेशित नहीं होते। कहते हैं-कांग्रेस अपने ही पापों से अपना जहाज डुबो रही है। घपले-घोटाले उसकी (कांग्रेस की) गारंटी है और इनकी साफ-सफाई हमारी।

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प्रचार के दौरान अपने पक्ष में मतदान की अपील के लिए भूपेंद्र यादव ज्यादातर राष्ट्रीय मुद्दे उठाते हैं। राम मंदिर, अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद कश्मीर में नया युग, कोरोना के समय हुआ काम, महिला आरक्षण, पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, विकसित भारत का संकल्प आदि-आदि। लोगों को यह याद दिलाना भी नहीं भूलते कि 10 साल पहले अलवर से दिल्ली जाने के लिए एक हाईवे था, आज पांच हैं। 10 साल पहले एक भी मेडिकल कालेज नहीं था, आज दो हैं।

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