Election 2024: बिहार की तरह आंध्र प्रदेश में भी जातीय मोर्चेबंदी, भाजपा का कापू और OBC पर फोकस
आंध्र प्रदेश में कम्मा संपन्न एवं प्रभावशाली हैं। संख्या भी सर्वाधिक है। तेलुगु देसद पार्टी (तेदेपा) के अध्यक्ष चंद्र बाबू नायडू इसी समुदाय के हैं। सबसे पहले तेलुगु फिल्मों से राजनीति में आए एनटी रामाराव ने राजनीति में रेड्डी के वर्चस्व के विरुद्ध कम्मा को एकजुट किया। सत्ता की भूख जगाई । रेड्डी के प्रभाव की प्रतिक्रिया में कापू ने भी एनटी रामाराव का साथ दिया था।
अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। आंध्र प्रदेश में बिहार की तरह ही चुनाव में जाति की हवा बहाई जा रही है। बिहार के बाद देश का यह दूसरा राज्य है, जहां जातिवार गणना का काम चल रहा है। आंध्र प्रदेश की राजनीति में तीन बड़ी जातियों की धाक है-कम्मा, कापू और रेड्डी । जिसमें रेड्डी सर्वाधिक संपन्न, शिक्षित और शक्तिशाली हैं।
मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन स्वयं रेड्डी हैं। हालांकि, रेड्डी संख्या में कम्मा और कापू की तुलना में कम हैं। इसकी भरपाई के लिए जगन ने ओबीसी एवं एससी-एसटी वर्ग को लुभाने के लिए पांच वर्षों में कई योजनाएं चला रखी हैं, जो भाजपा- तेदेपा गठबंधन के सामने बड़ी चुनौती हैं। जगन की वाइएसआर कांग्रेस की इस जुगत से निपटने को भाजपा ने भी बड़ा दांव चला है।
कम्मा समुदाय के चंद्र बाबू नायडू और कापू के पवन के दलों से गठबंधन कर भाजपा ने जगन मोहन के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है। राज्य की 25 प्रतिशत आबादी वाली कम्मा और 15 प्रतिशत आबादी वाली कापू जातियों के वोटरों का जमीनी स्तर पर अगर तालमेल हो गया तो 10 प्रतिशत आबादी वाली रेड्डी के लिए यह चुनाव आसान नहीं होगा। सच्चाई यह भी है कि आंध्र प्रदेश की राजनीति में कम्मा एवं कापू एक-दूसरे के विरोधी रहे हैं।
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आंध्र की आबादी का गणित
2011 की जनगणना के अनुसार पांच करोड़ की आबादी वाले आंध्र प्रदेश में हिंदू 90.89 प्रतिशत, मुस्लिम 7.30 प्रतिशत और ईसाई 1.38 प्रतिशत हैं। हिंदुओं में अनुसूचित जाति की आबादी 17 प्रतिशत है। पिछड़ा वर्ग में 143 जातियां शामिल हैं, जिनकी संख्या लगभग 37 प्रतिशत है। इसके अतिरिक्त कापू और विभिन्न अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की आबादी लगभग 15 प्रतिशत है।कम्मा की संख्या सर्वाधिक
आंध्र प्रदेश में कम्मा संपन्न एवं प्रभावशाली हैं। संख्या भी सर्वाधिक है। तेलुगु देसद पार्टी (तेदेपा) के अध्यक्ष चंद्र बाबू नायडू इसी समुदाय के हैं। सबसे पहले तेलुगु फिल्मों से राजनीति में आए एनटी रामाराव ने राजनीति में रेड्डी के वर्चस्व के विरुद्ध कम्मा को एकजुट किया। सत्ता की भूख जगाई । रेड्डी के प्रभाव की प्रतिक्रिया में कापू ने भी एनटी रामाराव का साथ दिया था। लिहाजा 1983 में सत्ता रेड्डी से फिसल कर कम्मा के पास आ गई। तबसे इन्हीं दोनों समुदायों के नेताओं के हाथ में सत्ता आती और जाती रही है।