श्री आनंदपुर साहिब से पार्टी उपाध्यक्ष डॉ. सुभाष शर्मा व संगरूर से अरविंद खन्ना को टिकट दिया है, जबकि फिरोजपुर से राणा गुरमीत सिंह सोढी को मैदान में उतारा है। राणा चार बार विधायक रहे हैं और वे पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। भाजपा को 13 में से सिर्फ एक सीट फतेहगढ़ साहिब पर उम्मीदवार उतारना बाकी है।
अरविंद खन्ना को उतार भाजपा ने खेला बड़ा दांव!
2004 के संसदीय चुनाव के बाद से ही हिंदू सीट मानी जाने वाली संगरूर संसदीय सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने हिंदू उम्मीदवार अरविंद खन्ना को उतारकर नया दांव खेला है। खन्ना पहले यहां से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं और ढाई लाख से ज्यादा मत हासिल कर चुके हैं। इसके अलावा विजय इंदर सिंगला संगरूर से सांसद भी रह चुके हैं। लिहाजा, अब मुकाबला दिलचस्प होने वाला है।
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35 प्रतिशत है हिंदू आबादी
भाजपा के उम्मीदवार उतारने के बाद पांचकोणीय मुकाबले में बसपा भी पार्टियों का गणित बिगाड़ सकती है। गौर हो कि नौ विधानसभा हलकों वाली संगरूर संसदीय सीट पर 35 प्रतिशत आबादी हिंदू मतदाताओं की है। यही नहीं, संसदीय सीट में पांच बड़े शहर और कई शहरी कस्बे भी आते हैं और शहरी मतदाता को भाजपा अपना वोट बैंक भी मानती है।
विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं खन्ना
संगरूर विधानसभा चुनाव में तीन बार 2002 में कांग्रेस से हिंदू उम्मीदवार अरविंद खन्ना, 2012 में बाबू प्रकाश चंद गर्ग व 2017 में विजयइंदर सिंगला चुनाव जीत चुके हैं, जबकि सुनाम से अरोड़ा परिवार कई बार चुनाव जीत चुका है। लहरागागा से भी वरिंदर गोयल मौजूदा विधायक हैं।संगरूर शहर के अलावा मालेरकोटला, धूरी, भवानीगढ़, बरनाला, धनौला, तपा, शेरपुर, दिड़बा, लहरागागा, खनौरी जैसे बड़े शहर हैं, जबकि छोटे कस्बे भी बहुत है, जिसे भाजपा अपना वोट बैंक मानती है। भाजपा का मुख्य केंद्र यही क्षेत्र रहने वाले हैं।
समीकरण को समझ भाजपा ने उतारा प्रत्याशी
उधर, भाजपा की तरफ से टिकट घोषित करने में देरी का मुख्य कारण संगरूर के राजनीतिक समीकरणों को समझना भी माना जा रहा है। भाजपा को संगरूर सीट से काफी उम्मीदें भी हैं, क्योंकि मौजूदा सांसद व अकाली दल (अमृतसर) के उम्मीदवार सिमरनजीत सिंह मान समय-समय पर खालिस्तान की बात करते हैं।
ग्रामीणों को वोट बैंक मानता है अकाली दल
कांग्रेस से मैदान में उतरे सुखपाल खैहरा एक खास वर्ग को देश में हराने की बात कहकर चुनावी सुर्खियां बटोर चुके हैं और हिंदू संगठनों के निशाने पर हैं। यही नहीं, अकाली दल अपना वोट बैंक जहां ग्रामीणों को मानता है, तो आम आदमी पार्टी बेशक सत्ता में है, लेकिन कॉडर न होने की वजह से उसके लिए भी परेशानी है।
खन्ना को ढींडसा गुट का भी मिल सकता है साथ
1997 में अरविंद खन्ना को संगरूर की सियासत में शामिल करवाने वाले ढींडसा परिवार मौजूदा समय में अकाली दल में हाशिये पर है। ढींडसा व खन्ना बेशक 2004 के चुनाव में आमने-सामने रह चुके हैं, लेकिन परमिंदर ढींडसा के साथ खन्ना के अच्छे रिश्ते हैं। उम्मीद है कि ढींडसा गुट खन्ना की मदद कर सकता है, क्योंकि अकाली दल को वोट डलवाकर उन्हें कुछ नहीं मिलने वाला।
ढींडसा समर्थक साफ कर चुके हैं कि अगर आप (खुद ढींडसा परिवार) चुनाव मैदान में उतरे, तो उनके साथ हैं, लेकिन अगर ढींडसा परिवार चुनाव मैदान में नहीं उतरता, तो वर्कर आजाद रूप से चुनावों में किसी को भी समर्थन करने का अपना निर्णय करेंगे।
संगरूर:अरविंद खन्ना का राजनीतिक परिचय
वर्ष 1997 में अपनी उम्मीद फाउंडेशन के माध्यम से दिल्ली से संगरूर आए अरविंद खन्ना 1998 में अकाली दल शामिल हुए। 2002 में कांग्रेस में शामिल होकर संगरूर से विधानसभा चुनाव लड़ा और भारी बहुमत से जीते। 2004 के संसदीय चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और ढ़ाई लाख से ज्यादा वोट हासिल किए, लेकिन 27 हजार वोट के अंतर से मात खा गए।
घरेलू समस्याओं के चलते 2007 में उन्होंने राजनीति से दूरी बना ली और फिर 2012 के विधानसभा चुनाव में सक्रिय राजनीति में शामिल होकर धूरी से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी को देखते हुए 2014 में विधानसभा से त्यागपत्र दे दिया था। 2022 में किसानों के विरोध के बीच भाजपा में शामिल हुए और संगरूर से चुनाव लड़े। हालांकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
फिरोजपुर: राणा गुरमीत सिंह सोढी का राजनीतिक परिचय
कांग्रेस से गुरु हरसहाय से लगातार चार बार विधायक रहे राणा गुरमीत सिंह सोढ़ी भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में विशेष आमंत्रित सदस्य हैं। राज्य में कोर कमेटी के सदस्य हैं। 21 दिसंबर 2021 को कांग्रेस को अलविदा कह भाजपा में शामिल हुए थे। राणा सोढ़ी वर्ष 2002 से वर्ष 2017 तक लगातार गुरु हरसहाय विधानसभा से कांग्रेस के टिकट से चुनाव जीते।
वह पंजाब कांग्रेस प्रदेश कमेटी के पूर्व उपाध्यक्ष के अलावा 15वीं विधानसभा में प्रश्न व रेफरेंस कमेटी के चैयरमेन भी रह चुके हैं। 1985 में पहली बार गुरु हरसहाय से विधानसभा का चुनाव लड़ा था और 1994 में प्रदेश कांग्रेस ने उन्हें संगठन सचिव नियुक्त किया था। 1999 में उन्हें कांग्रेस ने पंजाब में महासचिव, 2002 से 2004 मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपना राजनीतिक सचिव और साथ ही मुख्य संसदीय सचिव (सीपीएस) बनाया था। वर्ष 2005 से 2011 तक वह पार्टी में चीफ व्हिप रहे।
श्री आनंदपुर साहिब: डॉ. सुभाष शर्मा का राजनीतिक परिचय
खालसा कॉलेज अमृतसर से छात्र राजनीति में प्रवेश करने वाले डॉ. सुभाष शर्मा 1996 से भाजपा की युवा इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े। अमृतसर से लेकर प्रदेश स्तर तक विभिन्न पदों पर अहम जिम्मेदारियां निभाई हैं। वह एबीवीपी में सह मंत्री पंजाब, मंत्री, प्रदेश के सह संगठन मंत्री और प्रदेश संगठन मंत्री भी रहे। दिल्ली में संपूर्णकालिक कार्यकर्ता के नाते विभिन्न सेवाएं प्रदान कर संगठन की सेवा की। वह भाजपा में प्रदेश सचिव और महासचिव भी रहे। वर्तमान में डॉ. सुभाष शर्मा भाजपा के उपाध्यक्ष हैं। डॉ. सुभाष शर्मा स्वदेशी जागरण मंच और आरएसएस से कई वर्षों से जुड़े हुए हैं।
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