Lok Sabha Election 2024: पुरानी डगर पर डगमगाती साइकिल, क्या अखिलेश PDA फॉर्मूला से पकड़ पाएंगे सियासी रफ्तार?
इस साल देश में 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव हैं। भाजपा और कांग्रेस समेत तमाम राजनीतिक पार्टियां अपनी-अपनी जमीन मजबूत करने में जुटी हैं। लोकसभा चुनाव की बात करें तो साल 1992 में पार्टी के गठन के बाद शुरुआत के चार लोकसभा चुनाव में उसका प्रदर्शन का ग्राफ ऊपर उठता गया लेकिन उसके बाद ऐसा बैक गियर लगा कि चुनाव दर चुनाव वोट प्रतिशत गिरता ही चला गया...
शोभित श्रीवास्तव, लखनऊ। कुश्ती के दांव में माहिर मुलायम सिंह यादव राजनीति के दंगल में उतरे तो मजबूत पहलवान बनकर ही उभरे। चंबल के बीहड़ से सटे इटावा से निकली साइकिल में समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह प्रयासों के ऐसे 'पैडल' मारते गए कि प्रदेश में सत्ता का शिखर भी कई बार चूमा।
लोकसभा चुनाव की बात करें तो साल 1992 में पार्टी के गठन के बाद शुरुआत के चार लोकसभा चुनाव में उसका प्रदर्शन का ग्राफ ऊपर उठता गया, लेकिन उसके बाद ऐसा 'बैक गियर' लगा कि चुनाव दर चुनाव वोट प्रतिशत गिरता चला गया और सीटें भी कम होती चली गईं।
दूसरे प्रदेशों में भी सपा ने लोकसभा चुनाव में किस्मत आजमाई, लेकिन उसकी साइकिल कभी भी दौड़ नहीं पाई। उसे इक्का-दुक्का सीटों पर ही सफलता मिली। इस चुनाव में सपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सीटें बढ़ाने की रणनीति बनाई है, लेकिन उसके सामने अपना पुराना जनाधार पाने की चुनौती है।
वोट फीसद कम पर सीटें ज्यादा
सपा ने 1996 में पहले ही लोकसभा चुनाव में 16 सीटों पर जीत दर्ज करते हुए 20.84 प्रतिशत वोटों पर कब्जा जमाया था। पार्टी ने एक सीट बिहार में भी जीती थी। यह वह समय था, जब लड़ाई त्रिकोणीय व चतुष्कोणीय होती थी। कम वोट प्रतिशत में भी अधिक सीटें मिल जाती थीं।
प्रदेश में समय के साथ-साथ सपा ने यादव व मुस्लिम मतों पर अपनी पकड़ मजबूत की। इसी का परिणाम रहा कि 1998 के दूसरे लोकसभा चुनाव में उसे 28.7 से अधिक मतों की प्राप्ति के साथ 20 सीटों पर सफलता मिली।
सपा को सिर्फ यूपी का मिला साथ
वर्ष 1999 में भी सपा ने 13 राज्यों की 151 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन उसे उत्तर प्रदेश की 26 सीटों के अलावा किसी भी प्रदेश में सफलता नहीं मिली। उसे देश में कुल 3.76 प्रतिशत वोट मिला था। पार्टी के लिए सीटों के लिहाज से सबसे अच्छा प्रदर्शन 2004 का लोकसभा चुनाव रहा था। उस समय 26.74 प्रतिशत मत मिले थे, सीटें भी 35 आईं थीं।
पिछले लोकसभा चुनाव यानी 2019 में सपा ने बसपा के साथ गठबंधन में 37 सीटों पर ताल ठोंकी। इस गठबंधन का सपा को कोई खास लाभ नहीं मिल पाया। उसे 2014 के चुनाव की तरह ही मात्र पांच सीटें ही मिल सकीं। वोट प्रतिशत भी उसे महज 18.11 प्रतिशत मिला था। सपा को अपने पहले लोकसभा चुनाव से भी लगभग साढ़े तीन प्रतिशत से अधिक वोट कम मिल सका।
यह भी पढ़ें -Lok Sabha Election: जाति और धर्म के नाम पर बिहार में कितना मिलता है वोट? कौन से प्रत्याशी जनता की पहली पसंद, आ गई रिपोर्ट
यह भी पढ़ें -17वीं लोकसभा के दौरान सदन में खूब पूछे गए सवाल, जनहित में बने कई कानून; जानिए और क्या रहा खास
दावा- पीडीए फॉर्मूला से एनडीए को हराएंगे
साल 2019 के चुनाव परिणाम के बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने घोषणा की थी कि अब वह किसी बड़े दल के साथ गठबंधन नहीं करेंगे, लेकिन साल 2017 के विधानसभा चुनाव की तरह ही फिर से कांग्रेस के साथ गठबंधन कर वह चुनाव मैदान में हैं। कांग्रेस का हाथ साइकिल को कितनी रफ्तार दे पाता है, यह तो चुनाव के परिणाम ही बताएंगे। हालांकि, सपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल का दावा है कि पीडीए फार्मूला (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) इस बार एनडीए को हराएगा।2022 के परिणाम ने बढ़ाया उत्साह
सपा ने 2012 के विधानसभा चुनाव में 29.13 प्रतिशत वोट पाकर 224 सीटों पर सफलता प्राप्त करते हुए सरकार बनाई थी, लेकिन वोट के लिहाज से सपा के लिए वर्ष 2022 का विधानसभा चुनाव सबसे अच्छा रहा है। उसे अब तक का सबसे अधिक 32.06 प्रतिशत वोट मिले थे। बेशक, उसे सीट 111 ही मिली थीं, लेकिन परिणामों ने पार्टी नेतृत्व के साथ ही कार्यकर्ताओं का उत्साह भी बढ़ाया है कि समीकरण दुरुस्त कर लिए जाएं तो भाजपा का मुकाबला मजबूती से किया जा सकता है।चुनाव से जुड़ी और हर छोटी-बड़ी अपडेट के लिए यहां क्लिक करेंपिछले कुछ चुनावों में सपा का प्रदर्शन
साल | चुनाव लड़े | जीते | वोट |
2019 | 37 | 05 | 18.11% |
2014 | 78 | 05 | 22.35% |
2009 | 75 | 23 | 23.25% |
2004 | 68 | 35 | 26.74% |
1999 | 84 | 26 | 24.06% |
1998 | 81 | 20 | 28.70% |
1996 | 64 | 16 | 20.84% |