इस बार क्या केरल में भाजपा खोल पाएगी खाता? कांग्रेस के सामने दोहरी चुनौती, पढ़ें यहां का सियासी गणित
Lok Sabha Election 2024 केरल में इस बार कांग्रेस के सामने दोहरी चुनौती है। यह चुनौती उसे अपने वोटबैंक को बचाने की है। दरअसल कांग्रेस के वोटबैंक पर अब भाजपा और सीपीएम की नजर हैं। दोनों ही दल इसमें सेंध लगाने की कोशिश में हैं। वहीं कांग्रेस भी संभल-संभलकर अपने कदम रख रही है। 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 19 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
नीलू रंजन, तिरुवनंतपुरम। 2019 के लोकसभा चुनाव में केरल में लगभग क्लीन स्वीप करने वाली कांग्रेस को इस बार सीपीएम और भाजपा दोनों तरफ से चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। दोनों की कांग्रेस के वोटबैंक पर नजर है। सीपीएम जहां कांग्रेस के मुस्लिम वोटबैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है, वहीं भाजपा ईसाई मतदाताओं को साधने में जी-जान लगा रही है।
केरल में खाता नहीं खोल पाई भाजपा
दोतरफा चुनौतियों से निपटने के लिए कांग्रेस संभल-संभल कर कदम बढ़ा रही है। 2019 में केरल में कांग्रेस अपने सहयोगियों के साथ 19 सीटें जीतने में सफल रही थी। सत्तारूढ़ सीपीएम के खाते में सिर्फ एक सीट आई थी। लोकसभा की 20 सीटों वाले केरल में भाजपा अभी तक खाता नहीं खोल पाई है।
केरल में मुस्लिम 28 फीसदी और ईसाई लगभग 18 फीसदी हैं। जाहिर है केरल की राजनीति की दशा और दिशा निर्धारित करने में इनकी अहम भूमिका है। ईसाई वोटबैंक मुख्यरूप से कांग्रेस के पास है और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन में मुस्लिम वोटबैंक भी काफी हद तक जुड़ जाता है।
इस वोटबैंक पर सीपीएम की निगाहें
2019 में कांग्रेस को मिली सफलता इन्हीं दोनों वोटबैंक के एक साथ आने का परिणाम था, लेकिन दो साल बाद ही विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पी विजयन के नेतृत्व में सीपीएम मुस्लिम वोटबैंक में सेंध लगाने में सफल रही। इस बार सीपीएम की कोशिश मुस्लिम मतों का बड़ा हिस्सा हथियाने की है।
यही कारण है कि सीपीएम मुसलमानों से जुड़े मुद्दों को लेकर कांग्रेस से कहीं ज्यादा आक्रामक दिख रही है। सीपीएम सीएए और गाजा पट्टी पर इजरायल के हमले का खुलकर विरोध कर रही है। सीपीएम के सभी बड़े नेता चुनावी सभाओं में इन्हें उठा रहे हैं और इन मुद्दों पर ढुलमुल रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए कांग्रेस पर हमला कर रहे हैं।
इस समुदाय को साधने में जुटी भाजपा
दूसरी तरफ भाजपा ईसाई समुदाय का दिल जीतने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ईसाई धर्मगुरुओं से मुलाकात और ईसाई समुदाय के साथ उनके उत्सवों में शामिल होने से शुरू हुआ सिलसिला अब घर-घर जाकर समुदाय के लोगों से मिलने तक पहुंच गया है।