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'वोट पड़ेगा.....पर, नहीं तो लाश मिलेगी घाटी पर', कभी बीहड़ के फरमान पर डोलती थी राजनीति, इन क्षेत्रों तक फैला था प्रभाव

Lok Sabha Election 2024 राजनीति का एक दौर वह भी रहा है जब बीहड़ से निकले फरमान पूरे देश की राजनीति पर असर डालते थे। चुनाव से पहले वोट पड़ेगा.....पर नहीं तो लाश मिलेगी घाटी पर जैसे नारे गूंजते थे। हालांकि अब हालात बदल गए हैं और चुनाव में डकैतों का कोई प्रभाव नहीं रह गया है। पढ़िए कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र की सियासत में कुख्यात डकैतों के दखल पर रिपोर्ट...

By jitendra shuklaEdited By: Sachin Pandey Updated: Sun, 17 Mar 2024 07:36 PM (IST)
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Lok Sabha Election 2024: अब चुनाव में इन डकैतों का कोई नामलेवा नहीं है।
जागरण टीम, कानपुर। लोकतंत्र के इतिहास के पन्ने पलटें तो पता चलता है कि एक दौर वह भी था जब बीहड़ से निकले फरमान पर पूरे प्रदेश की सियासत डोल जाती थी। चुनाव से पहले 'वोट पड़ेगा.....पर, नहीं तो लाश मिलेगी घाटी पर' जैसे नारे गूंजते थे। औरैया, इटावा, बांदा, जालौन और चित्रकूट तक दुर्दांत डकैतों का सियासत में पूरा हस्तक्षेप रहा। हालांकि, अब चुनाव में इन डकैतों का कोई नामलेवा नहीं है। या तो इन डकैत गिरोहों का सफाया हो चुका है या फिर इनके सदस्य सलाखों के पीछे हैं।

चित्रकूट का नाम आते ही वह जंगल याद आते हैं, जहां श्रीराम ने वनवास के दौरान विचरण किया था। चुनावी दौर में डकैतों की वजह से इन जंगलों की याद ताजा हो जाती है। डकैत ददुआ की 1982 से 2000 तक 52 गांवों में तूती बोलती थी। वह विधानसभा व लोकसभा चुनाव का रुख तय करता था।

पहले उसका हाथ कम्युनिस्ट पार्टी की पीठ पर था, लेकिन राजनीतिक गुरु के कहने पर बसपा के पक्ष में माहौल तैयार करने लगा। पाठा के जंगलों में हाथी दौड़ा। वर्ष 2004 में उसने दल बदल लिया और पूरे परिवार को सपा की लाल टोपी पहना दी। भाई बाल कुमार पटेल, बेटा वीर सिंह पटेल और भतीजे राम सिंह पटेल साइकिल की सवारी कर सांसद, विधायक बन गए।

बसपा सरकार में शुरू हुई उल्टी गिनती

बुंदेलखंड में मुलायम सिंह की राजनीति की फसल खड़ी हो गई। इससे ददुआ और बसपा के बीच बैर का बीज पनप उठा। फिर दौर आया 2007 के विस चुनाव का। इसमें बसपा की सरकार बनी और ददुआ के खात्मे की उल्टी गिनती शुरू हो गई। 22 जुलाई, 2007 को एसटीएफ से मुठभेड़ में ददुआ का अंत हो गया।

ददुआ के अलावा, साढ़े पांच लाख के इनामी रहे डकैत ठोकिया, रागिया, बलखड़िया, बबली कोल और गौरी यादव का भी फरमान चित्रकूट, बांदा, फतेहपुर, सतना, रीवा, पन्ना और छतरपुर तक चलता था। फरमान आते ही वोट की दिशा बदल जाती थी। लमेहटा के डकैत सूरजभान अयाह-शाह विधानसभा में फरमान जारी करता था।

खत्म हो चुका है प्रभाव

हालांकि, अब पूरा इलाका दस्यु विहीन हो चुका है। 2014 लोकसभा चुनाव डकैतों के दखल के बिना पूरा हुआ था, तब से ग्राम प्रधान से लेकर सांसद और विधायक तक के चुनाव में लोग खुलकर मतदान कर रहे हैं। फर्रुखाबाद, मैनपुरी और एटा के मैदानी क्षेत्र भी डाकुओं से अछूते नहीं रहे। 1970 से 1992 तक एक लाख के इनामी डकैत छविराम यादव की तूती बोलती थी।

चुनाव में सजातीय नेता के पक्ष में छविराम का फरमान आता था। पुलिस छापेमारी में असलहे बरामद किए गए थे। छविराम की फर्रुखाबाद की तत्कालीन मोहम्मदाबाद एवं एटा की अलीगंज क्षेत्र में खासी रुचि थी। उसके मारे जाने के बाद पोथी यादव ने गैंग की कमान संभाली थी। गंगा की कटरी किंग के नाम से मशहूर डकैत कलुआ यादव भी कायमगंज विधानसभा क्षेत्र में दखल रखता था।

कानपुर देहात के भोगनीपुर व सिकंदरा के यमुनापट्टी का कुछ इलाका बीहड़ में आता है। यहां पर चार दशक पहले श्रीराम-लालाराम व फूलन का गिरोह आना-जाना था, लेकिन इन लोगों ने कभी कोई फरमान जारी नहीं किया और न चुनावी प्रक्रिया में खलल डाला।

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डकैतों की मदद लेते थे प्रत्याशी

2009 तक चंबल में दस्युओं की हुकूमत चलती थी। पहले निर्भय गुर्जर, जगजीवन परिहार, रामआसरे फक्कड़, रामवीर सिंह गुर्जर, अरविंद गुर्जर चंदन यादव, मंगली केवट, रघुवीर ढीमर जैसे बड़े गिरोह सक्रिय थे। हर गांव में उनकी तूती बोलती थी। कई बार मतदाताओं को पक्ष में करने के लिए प्रत्याशी डकैतों की मदद लेने से भी नहीं चूकते थे।

निर्भय गुर्जर, जगजीवन परिहार एवं पहलवान गुर्जर जैसे डकैत जिस प्रत्याशी के पक्ष में भी फतवा जारी करते थे, उसी को सबसे ज्यादा वोट मिलते थे। निर्भय गुर्जर तो लेटर पैड पर फतवा लिखता था, जिसके ऊपर दस्यु सम्राट निर्भय वीर गुर्जर लिखा रहता था। वर्ष 1998 के लोकसभा चुनाव में डकैत रामआसरे उर्फ फक्कड़ ने इटावा से भाजपा प्रत्याशी सुखदा मिश्रा के पक्ष में वोट डालने का फरमान घार पट्टी के गांवों में सुनाया था। सुखदा जीत भी गई थीं। हालांकि 2009 के बाद डकैत गिरोहों का पतन शुरू हो गया। अभी कोई दस्यु बीहड़ में सक्रिय नहीं है।

ये गिरोह रहे सक्रिय: ददुआ, निर्भय गुर्जर, ठोकिया, रागिया, बलखड़िया, बबली कोल, लालाराम, श्रीराम, फूलनदेवी, रामआसरे फक्कड़, रामवीर और गौरी यादव आदि।

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