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Dewas Lok Sabha seat: जब प्रचार में भाषण की जगह भजन सुनाया जाता; 'ये जज साहब कौन हैं' BJP के नेता को देखकर यह पूछते थे लोग

Dewas Lok Sabha Chunav 2024 updates देश में 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव होने हैं। सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी-अपनी जमीन मजबूत करने में जुटी हैं। ऐसे में आपको भी अपनी लोकसभा सीट और अपने सांसद के बारे में जानना चाहिए ताकि इस बार किसको जिताना है इसे लेकर कोई दुविधा न हो। आज हम आपके लिए लाए हैं देवास लोकसभा सीट और यहां के सांसद के बारे में पूरी जानकारी...

By Deepti Mishra Edited By: Deepti Mishra Updated: Fri, 01 Mar 2024 02:20 PM (IST)
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Lok Sabha Election 2024:देवास लोकसभा सीट और यहां के सांसद के बारे में पूरी जानकारी।
चंद्रप्रकाश शर्मा, देवास।Dewas Lok Sabha Election 2024 latest news: राजनीति में कई जगहों के साथ ऐसे संयोग बन जाते हैं, जो कालांतर में उसकी पहचान बन जाते हैं। देवास के साथ भी कुछ ऐसा ही है। देवास संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व ज्यादातर बाहरी उम्मीदवारों ने ही किया।

जब देवास उज्जैन संसदीय सीट का हिस्सा था, तब उज्जैन के हुकुमचंद कछवाय सांसद रहे। जब यह इंदौर लोकसभा सीट में आता था तो इंदौर के प्रकाश चंद्र सेठी सांसद रहे। उनके कार्यकाल में देवास को बैंक नोट प्रेस सहित अन्य कई उपक्रम मिले थे।

इसके बाद सांसद बने फूलचंद वर्मा, थावरचंद गेहलोत और मनोहर ऊंटवाल भी देवास से नहीं थे। वर्तमान सांसद महेंद्र सिंह सोलंकी देवास विधानसभा क्षेत्र के निवासी जरूर हैं, लेकिन वे भी इंदौर और बाहर ही रहे। अपवाद बापूलाल मालवीय थे। वे देवास के ही थे और सांसद भी चुने गए। देवास संसदीय सीट से मुंबई के बाबूराव पटेल और जगन्नाथ जोशी भी सांसद रहे। दोनों ही जनसंघ से जुड़े हुए थे।

जनसंघ ने बना ली अपनी पैठ

स्वतंत्रता के बाद देवास संसदीय सीट पर शुरू में कांग्रेस का दबदबा रहा, लेकिन वर्ष 1962 के बाद से ही इस सीट की तासीर बदलती गई। जनसंघ की विचारधारा मतदाताओं के दिलों में घर कर गई। ग्वालियर रियासत का हिस्सा होने की वजह से राजमाता विजयाराजे सिंधिया का प्रभाव भी यहां रहा। उनके समय में देवास और शाजापुर संघ का गढ़ हुआ करते था।

पहले ग्वालियर रियासत में आने वाली सुसनेर विधानसभा इस सीट में शामिल थी। वर्ष 1962 के बाद केवल वर्ष 1984 में बापूलाल मालवीय व वर्ष 2009 में सज्जन सिंह वर्मा ही कांग्रेस से जीत पाए।

यहां पहले चुने जाते थे दो एमपी

वर्ष 1947 के बाद देवास लोकसभा क्षेत्र देश के उन 86 क्षेत्रों में शामिल रहा, जहां लोकसभा के लिए दो-दो प्रतिनिधियों का चुनाव होता था। यह व्यवस्था वर्ष 1957 तक रही। देवास संसदीय सीट पहले मध्यभारत क्षेत्र में थी और शाजापुर-राजगढ़ भी इसमें शामिल थे। बाद में इसका नाम शाजापुर-देवास संसदीय क्षेत्र हुआ और 2008 के बाद यह देवास संसदीय सीट हो गई।

मौजूदा वक्‍त में आरक्षित है यह सीट

वर्ष 1951 में जब पहली बार आम चुनाव हुए। तब मध्य भारत के नाम से ही इस क्षेत्र की पहचान थी। पहले चुनाव में लोकसभा सीट को शाजापुर-राजगढ़ संसदीय क्षेत्र नाम दिया गया। शुजालपुर निवासी लीलाधर जोशी और शाजापुर के भागीरथ मालवीय सांसद चुने गए।

वर्ष 1956 में मध्य प्रदेश का गठन होने के बाद 1957 में लोकसभा चुनाव हुए। 1967 से यह शाजापुर-देवास संसदीय सीट रही, जिसमें देवास का आधा हिस्सा जोड़ दिया गया। वर्तमान देवास सीट एससी वर्ग के लिए आरक्षित है।

मध्य भारत के पहले प्रधानमंत्री भी यहीं से चुने गए

शुरू में कांग्रेस ने इस क्षेत्र को जीतने के लिए कई तरह के प्रयोग किए, लेकिन सफलता नहीं मिल सकी। शुजालपुर के रहने वाले लीलाधर जोशी को मध्य भारत के पहले प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया। दरअसल, उस समय मुख्यमंत्री पदनाम चलन में नहीं था। किसी भी स्‍टेट के मुखिया को प्रधानमंत्री के तौर पर ही जाना जाता था।

बनते-बिगड़ते रहे राजनीतिक रिश्ते

वर्ष 1990 के बाद देवास की राजनीति में यहां के पूर्व राजपरिवार का दखल बढ़ा। राजपरिवार के सदस्य पूर्व मंत्री स्वर्गीय तुकोजीराव पवार का राजनीति में पदार्पण भी इसी दौरान हुआ था। वर्ष 1991 में भाजपा के फूलचंद वर्मा चौथी बार सांसद तो बने, लेकिन तुकोजीराव पवार से उनके राजनीतिक रिश्ते कभी मधुर नहीं रहे।

तुकोजीराव के भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष कुशाभाऊ ठाकरे से पारिवारिक संबंध थे। वर्ष 1996 में तुकोजीराव पवार के आग्रह पर थावरचंद गेहलोत को देवास संसदीय सीट से टिकट दिया गया। थावरचंद गेहलोत चुनाव जीत गए। वे 2009 तक सांसद रहे।

थावरचंद गेहलोत को हराने के लिए कांग्रेस ने पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा को लोकसभा चुनाव लड़ाया। दांव कारगर रहा और सज्जन सिंह ने थावरचंद गेहलोत को हरा दिया।

अरे...ये जज साहब कौन हैं

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने न्यायाधीश रहे महेंद्र सिंह सोलंकी को टिकट दिया तो हर कोई पूछने लगा कि अरे...ये जज साहब कौन हैं। कहां से आ गए। न पार्टी में कभी देखा न ही मुलाकात हुई। बाद में यह बात सामने आई कि साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर का समर्थक होने के साथ ही महेंद्र सिंह सोलंकी का टिकट संघ के दखल से तय हुआ।

कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की पसंद से कबीर भजन गायक पद्मश्री प्रहलाद सिंह टिपानिया को टिकट दिया। टिपानिया हार गए और उसके बाद से ही वे राजनीति से दूर होते गए।

भाषण कम भजन ज्यादा सुनाई देता था

वर्ष 2019 का चुनाव इस मायने में बहुत रोचक रहा कि कांग्रेस प्रत्याशी प्रहलाद सिंह टिपानिया भाषण के बजाय भजन गाना ज्यादा पसंद करते थे। क्षेत्र के गांव-गांव में टिपानिया को पहले से सुना जाता रहा है। मतदाताओं के मन में उनकी छवि किसी साधु की तरह थी। वे प्रचार के लिए मंच पर जाते तो उनसे भजन सुनाने की मांग कर दी जाती। वे आग्रह टाल भी नहीं पाते थे।

देवास में नजदीकी मुकाबला भी कम

देवास लोकसभा सीट पर जीतने और हारने वाले प्रत्याशियों के बीच मुकाबला कभी भी नजदीकी नहीं रहा। यहां जीत का अंतर बड़ा ही होता है। वोट प्रतिशत के लिहाज से देखा जाए तो जीत का सबसे कम अंतर 1957 में 1.2 प्रतिशत रहा। इसके बाद जीत का अंतर हमेशा ज्यादा ही रहा।

वर्ष 2014 के चुनाव में तो जीत का अंतर 24.5 प्रतिशत पर पहुंच गया। इसी तरह वर्ष 2019 में भाजपा के महेंद्र सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी प्रहलाद सिंह टिपानिया को 3.7 लाख से अधिक वोटों से हराया।

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