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Lok sabha Election 2024:दिग्विजय सिंह की दोहरी चिंता, खुद की सीट बचाएं या सिंधिया को हराएं, दोनों में पुरानी है राजनीतिक अदावत

Lok sabha Election 2024 मध्यप्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी प्रमुख प्रतिद्वंद्वी पार्टियां हैं। इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह राजगढ़ से चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना शिवपुरी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में दिग्वि​जय सिंह दोहरी चिंता में हैं कि वे खुद की सीट बचाएं या सिंधिया को हराएं। चुनाव 7 मई को है।

By Dhananajay Pratap Singh Edited By: Deepak Vyas Updated: Sun, 28 Apr 2024 08:57 PM (IST)
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Lok sabha Election 2024: दिग्वि​जय सिंह दोहरी चिंता में हैं कि वे खुद की सीट बचाएं या सिंधिया को हराएं।
धनंजय प्रताप सिंह, भोपाल। पूर्व मुख्यमंत्री और राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह इन दिनों दोहरी चिंता में हैं। मतदान के लिए चंद दिन बचे हैं और वे केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को हराने के लिए कोई खास जतन नहीं कर पा रहे हैं। सिंधिया से उनकी राजनीतिक अदावत पुरानी है। कांग्रेस में रहते हुए भी दोनों के बीच भितरघात सामान्य शिष्टाचार था। अब ज्योतिरादित्य के कांग्रेस छोड़ने के बाद राजनीतिक दुश्मनी एक नए मुकाम पर पहुंच चुकी है।

लोकसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह राजगढ़ सीट से लड़ रहे हैं। यह सीट जीतना भी उनके लिए चिंता है। दूसरी चिंता यह भी है कि गुना लोकसभा सीट से भाजपा के टिकट पर लड़ रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया को हराने के लिए वह कुछ खास कर नहीं पा रहे हैं। गुना क्षेत्र में दिग्विजय सिंह का भी अच्छा प्रभाव है लेकिन खुद राजगढ़ से लोकसभा का चुनाव लड़ने के कारण वह ज्योतिरादित्य के विरुद्ध प्रचार या फिर कांग्रेस कार्यकर्ताओं को प्रेरित नहीं कर पा रहे हैं। दोनों नेताओं की सीट में सात मई को मतदान होना है।

माधवराव सिंधिया को भी मात दी थी दिग्विजय ने

मध्य प्रदेश में राघौगढ़ रियासत से संबंध रखने वाला दिग्गी राजा की ग्वालियर राजघराने के महाराजा ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच केवल सियासी टकराव नहीं है बल्कि राजशाही से कई पीढ़ियों से दोनों परिवारों के बीच मनमुटाव बना हुआ है। माधवराव सिंधिया से भी दिग्विजय की सियासी खींचतान चलती रही है।

दिग्विजय जब पहली बार अर्जुन सिंह की मदद से मप्र कांग्रेस के अध्यक्ष बने तो असली दावेदार माधवराव ही थे। दूसरी बार भी दिग्गी राजा ने सिंधिया को 1993 में तब मात दी, जब वे फिर अर्जुन सिंह और कमल नाथ की सहायता लेकर मुख्यमंत्री बन गए। उनके निधन के बाद अब ज्योतिरादित्य और दिग्गी के बीच तलवारें खिंची रहती हैं। जब दोनों नेता कांग्रेस में थे तो भी आपस में टकराते रहते थे।

ग्वालियर-चंबल में थी 'राजा' और 'महाराजा' की कांग्रेस

ग्वालियर-चंबल की बात करें तो यहां दो तरह की कांग्रेस हुआ करती थीं, एक राजा यानी दिग्विजय सिंह समर्थकों की कांग्रेस और दूसरी महाराजा यानी सिंधिया की कांग्रेस। वर्ष 2018 के मप्र विधानसभा चुनाव के बाद से दोनों के बीच खाई और भी बढ़ गई। इसकी वजह ये थी कि विधानसभा चुनाव जीतने के बाद दिग्विजय ने सिंधिया को मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया। यहीं से दोनों के बीच निर्णायक लड़ाई शुरू हुई। इसके बाद लोकसभा चुनाव 2019 में दोनों ही कांग्रेस प्रत्याशी थे और दोनों ही हार गए थे। कहते हैं कि सिंधिया को हराने में दिग्गी गुट ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। चुनाव हारने बाद सिंधिया ने 2020 में कांग्रेस की कमल नाथ सरकार गिरा दी और पीढ़ियों से चली आ रही अदावत का बदला ले लिया। इस सरकार में दिग्विजय के बेटे जयवर्धन सिंह भी कैबिनेट मंत्री थे।

दोनों का राजनीतिक भविष्य तय करेगा यह चुनाव

इस समय दोनों दिग्गज राज्य सभा सदस्य हैं। यह लोकसभा चुनाव दोनों का ही राजनीतिक भविष्य तय करेगा। गुना सीट से सिंधिया भाजपा प्रत्याशी हैं। वे पिछला चुनाव इसी सीट से कांग्रेस प्रत्याशी होते हुए हार गए थे। इस बार दिग्विजय भोपाल के बजाए राजगढ़ सीट से 33 वर्ष बाद लड़ रहे हैं। यहां से उनके छोटे भाई लक्ष्मण सिंह पांच बार सांसद रह चुके हैं। दिग्विजय अभी तो राजगढ़ में प्रचार कर रहे हैं, लेकिन उनका पूरा ध्यान गुना सीट पर सिंधिया को हराने में लगा रहता है।

सिंधिया को गुना में फिर मात देने की कोशिश में दिग्गी राजा

कुछ दिन के लिए उन्होंने अपने बेटे जयवर्धन को गुना सीट पर अपने समर्थकों को सक्रिय करने के लिए भेजा था। अभी दिग्गी राजा की पूरी कोशिश है कि सिंधिया को गुना में फिर मात दी जाए। यही वजह है कि उन्होंने कांग्रेस से अरुण यादव को सिंधिया के खिलाफ टिकट नहीं मिलने दी और स्थानीय नेता राव यादवेंद्र सिंह यादव को टिकट दिलाई, जो विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस में आए थे। उन्हें मुंगावली विधानसभा से चुनाव भी लड़ाया गया था पर वे हार गए।

यादवेंद्र के पिता राव देशराज सिंह यादव भाजपा से तीन बार विधायक रहे हैं और सिंधिया के विरुद्ध दो बार पार्टी ने उन्होंने लोकसभा चुनाव भी लड़वाया था। गुना सीट में यादव वोट अधिक हैं। वैसे गुना की आठ में से छह विधानसभा सीट भाजपा और केवल दो सीटें कांग्रेस के पास हैं।