Lok Sabha Election 2024: मोदी की मेरठ रैली ने चढ़ाया सियासी पारा, पश्चिमी यूपी में नए मुद्दों की तपिश; पूर्वांचल तक चुनावी धमक
Lok Sabha Election 2024 15 साल बाद यूपी में भाजपा ने रालोद के साथ हाथ मिलाया है। इस बार पश्चिम यूपी में नए मुद्दों की तपिश है। पीएम मोदी ने रविवार को मेरठ में पहली चुनावी रैली की। 2019 लोकसभा चुनाव में हारी सीटों पर इस बार भाजपा की नजर है। इस बीच पश्चिमी यूपी में चुनावी वोल्टेज जैसे-जैसे बढ़ रहा है वैसे-वैसे इसकी धमक पूर्वांचल तक पहुंचने लगी है।
संतोष शुक्ल, मेरठ। चुनावी महापर्व का सूरज एक बार फिर पश्चिम उत्तर प्रदेश के क्षितिज पर चढ़ रहा है। लोकसभा की सीट नंबर-एक सहारनपुर का मुहूर्त निकल चुका है। रणक्षेत्र में मुद्दों और दावों की तपिश है। भगवा रथ के सबसे बड़े सारथी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मेरठ में 31 मार्च को पहली चुनावी जनसभा कर तरकश के बड़े तीर छोड़ चुके हैं।
कहीं ध्रुवीकरण की धार पर हिंदुत्व की लहर आगे बढ़ रही है तो कहीं मुद्दों की हांड़ी पर खेतीबाड़ी, रोजगार, उद्योग, कानून व्यवस्था और इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे विषय उबल रहे हैं। पहले चरण में 19 अप्रैल को सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फनगर, बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद, रामपुर और पीलीभीत जैसी सीटों पर चुनावी लू चल रही है। पश्चिम उप्र में चुनावी वोल्टेज बढ़ने से इसका करंट पूर्वांचल तक पहुंचने लगा है।
...चुनावी इंजन का बदलता गियर
चौधरी चरण सिंह विश्विवद्यालय के पत्रकारिता विभाग के प्रभारी प्रशांत कुमार कहते हैं 'नरेन्द्र मोदी पश्चिम उप्र में संबोधन करते हैं तो हर किसान चौधरी साहब से स्वाभाविक जुड़ाव महसूस करता है। मेरठ का हर व्यक्ति क्रांति का भागीदार महसूस करता है। उनकी अगुआई में पश्चिम उत्तर प्रदेश ने फिर भाजपा के चुनावी इंजन में नया गियर लगा दिया है।'पश्चिम यूपी से 19 और 26 अप्रैल को उठने वाली चुनावी बयार पूर्वांचल से लेकर बुंदेलखंड तक के समीकरणों की दिशा तय करेगी। एडवोकेट केके चौबे कहते हैं कि 'भाजपा पश्चिम उत्तर प्रदेश में अपराध नियंत्रण, बुलडोजर नीति और दर्जनों नए हाइवे की कनेक्टिविटी का एजेंडा लेकर चुनाव में उतरी है। 2014 से सब कुछ बदल गया। अब खेतीबाड़ी इतना बड़ा मुद्दा नहीं बनता कि परिणाम पलट दे।'
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हवा पश्चिम की, सत्ता पूरब की
राजकीय इंटर कॉलेज के जीव विज्ञान के प्रवक्ता विपिन भारद्वाज पश्चिम उप्र की राजनीति पर कहते हैं कि 'हां, पश्चिम का राजनीतिक नेतृत्व कमजोर पड़ा तो सत्ता पूर्वांचल की धुरी पर आ गई। गौतमबुद्धनगर में बादलपुर गांव की निवासी मायावती कैराना और बिजनौर से चुनावी यात्रा करते हुए चार बार प्रदेश की सीएम तक बन गईं, लेकिन 2012 में अखिलेश यादव के पास सत्ता आने के बाद हाथी हांफने लगा। लखनऊ और दिल्ली की राजनीति में पश्चिम का कद सिमटता गया।'