Lok Sabha Election 2024: चुनाव में केंद्र और राज्यों के रिश्तों पर भी होगी आर-पार! भेदभाव की दुहाई के सामने डबल इंजन, किसकी होगी जीत?
Lok Sabha Election 2024 इस बार के लोकसभा चुनाव में केन्द्र और राज्यों के बीच चल रहे संघर्ष को लेकर भी आर-पार हो सकता है। जहां गैर बीजेपी शासिक राज्य केन्द्र सरकार पर भेदभाव करने का आरोप लगा रहे हैं वहीं भाजपा का कहना है कि यह संकीर्ण राजनीति के अलावा और कुछ भी नहीं है। जानिए क्या है केन्द्र और राज्यों का तर्क।
मनीष तिवारी, नई दिल्ली। दिल्ली में कर्नाटक और केरल की राज्य सरकारों के अस्वाभाविक धरने इस बात को लेकर थे कि केंद्र सरकार उनके साथ भेदभाव कर रही है। दिल्ली की आप सरकार भी केंद्र के कथित हस्तक्षेप और अधिकारों को लेकर सवाल उठाती रहती है। बंगाल की ममता बनर्जी सरकार की भी यही शिकायत है कि उनके राज्य को केंद्रीय योजनाओं का भी पैसा नहीं मिल रहा है।...लेकिन यह केवल एक पक्ष है।
इस बार के लोकसभा चुनाव में जब इन्हीं आरोपों को निराधार ठहराते हुए भाजपा डबल इंजन की शक्ति के उदाहरण सामने रखेगी तो कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के लिए उसकी आंच को सहना मुश्किल होगा। विकास और जनकल्याण की योजनाओं के सहज क्रियान्वयन के लिए डबल इंजन की जरूरत पर भाजपा का जोर इसलिए भी रहा है, क्योंकि हाल के वर्षों में राज्यों में सस्ती और श्रेय वाली राजनीति ने लोगों को बिजली, पानी और घर जैसी सुविधाओं से तो वंचित किया ही है, उनकी दुविधा भी बढ़ाई है।
सभी राज्यों के लिए हैं योजनाएं
भाजपा ने लगातार यह कहा है कि उसकी योजनाएं सभी राज्यों के लिए हैं, लेकिन राज्यों को सहायता सही क्रियान्वयन की शर्त पर ही मिलेगी। 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों में भी यही आग्रह है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पिछले महीने आंकड़ों और तथ्यों के आधार पर कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, बंगाल की राज्य सरकारों के भेदभाव वाले आरोपों को नकार चुकी हैं।वित्त मंत्रालय ने इन आरोपों की तथ्यात्मक गलतियों, अनुचित दावों, भ्रामक बातों और फायदों की अनदेखी कर चुनिंदा तरीके से आवंटन में कमी दर्शाने की कोशिशों का पूरा सच भी बताया। गैर-भाजपा शासन वाले हर राज्य की केंद्र से अपनी समस्या है। किसी को राज्यपाल की सक्रियता नहीं भा रही है और किसी को केंद्रीय एजेंसियों का कामकाज। फिर भी यह गौर करने लायक है कि इन सभी राज्यों में भाजपा पूरी ताकत से चुनावी मैदान में है-यहां तक कि तमिलनाडु में भी।
आगे नहीं बढ़ीं योजनाएं
राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अभी तीन महीने पहले ही जनता ने विधानसभा चुनावों में कांग्रेस शासन को समाप्त कर डबल इंजन की अपनी जरूरत और इच्छा ही दर्शाई। दोनों राज्यों की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारें भी केंद्र की मोदी सरकार पर असहयोग का आरोप भी लगाती थीं और केंद्रीय योजनाओं के क्रियान्वयन में अगर-मगर भी करती थीं। छत्तीसगढ़ में पीएम आवास योजना आगे नहीं बढ़ी तो राजस्थान में जल जीवन मिशन।बंगाल में भाजपा ही टीएमसी की मुख्य और असली चुनौती है। बिहार में खेमों में बदलाव के साथ राजनीतिक परिस्थितियां भी पलट चुकी हैं। ओडिशा में भी अ-भाजपा शासन है, लेकिन वहां सत्तारूढ़ बीजद का केंद्र पर असहयोग का कोई आरोप नहीं है।भाजपा ने इस बार अपने लिए 370 सीटें जीतने का जो लक्ष्य रखा है, वह इसी भरोसे है कि पार्टी उन राज्यों में भी बेहतर प्रदर्शन करने के लिए तैयार है, जो गैर-भाजपा शासित हैं और संघीय ढांचे का हवाला देकर केंद्र से खराब रिश्तों की दुहाई दे रहे हैं।
तमाम गैर-भाजपा शासन वाले राज्य यह भी नहीं कर पा रहे हैं। तेलंगाना की पूर्ववर्ती बीआरएस सरकार ने जल जीवन मिशन में ग्रामीण पंचायतों से मिशन के क्रियान्वयन का प्रमाणन ही नहीं कराया। छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने पीएम आवास योजना में राज्यों की किस्तें ही जारी नहीं कीं। बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने उपभोग प्रमाणपत्र नहीं दिया। विकास और जनकल्याण की योजनाओं में ये टकराव और अड़ंगेबाजी लोगों का नुकसान कर रही है। इसके विपरीत दो उदाहरण राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन के बाद बनी परिस्थितियों की है। राजस्थान में भाजपा सरकार आने के बाद नदियों को जोड़ने के लिए पार्वती-काली सिंध परियोजना पर मध्य प्रदेश के साथ समझौता हो गया और छत्तीसगढ़ में गरीबों के लिए 17 लाख घरों का रास्ता साफ हो गया।ये भी पढ़ें- 'जब 4 दिन में चुनी गई थी नई सरकार', दो दशक में दोगुनी हुई अवधि; जानिए पहली बार कितने दिन में हुआ था चुनाव ये भी पढ़ें- Lok Sabha Election 2024: देश की राजधानी में क्यों कम हैं महिला मतदाता? जानिए किस सीट पर क्या है स्थिति
इन मुद्दों पर है मतभेद
केंद्र और गैर-भाजपा शासन वाले राज्यों के बीच मौजूदा सियासी खींचतान के मुख्यतः चार आयाम हैं। राजस्व में हिस्सेदारी, जीएसटी क्षतिपूर्ति, राज्यों के खर्च में केंद्र सरकार का सहयोग और योजनाओं के क्रियान्वयन, खासकर बुनियादी ढांचे के निर्माण में हिस्सेदारी। पहला मामला वित्त आयोग के दायरे का है और दूसरा जीएसटी के तय हो चुके नियम-कायदों का। बाकी दो में राज्यों का अपना रवैया भी अहम है। केंद्र पर मनमानी का आरोप लगाते हुए संघीय ढांचे का सवाल खड़ा करने वाली पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार ने इसी कड़ी में बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र पर भी सवाल उठा दिया था। सीमाओं की निगरानी का सवाल भी चुनावी राजनीति के शोर का हिस्सा हो सकता है।केंद्र सरकार ने योजनाओं के लिए धन आवंटन के कुछ नियम तय किए हैं और उन्हें सुधार और बेहतर निगरानी से जोड़ा है। जैसे क्रियान्वयन की रिपोर्ट, स्थानीय सरकारों द्वारा प्रमाणन, राज्यों की ओर से अपने हिस्से का समय पर आवंटन, नागरिक सुविधाओं में सुधार की इच्छाशक्ति आदि। ये वे तौर-तरीके हैं जो दुनिया भर में अमल में लाए जाते हैं और जनता के पैसों को खर्च करने के मामले में अनिवार्य भी हैं। चुनाव से जुड़ी और हर छोटी-बड़ी अपडेट के लिए यहां क्लिक करेंतमाम गैर-भाजपा शासन वाले राज्य यह भी नहीं कर पा रहे हैं। तेलंगाना की पूर्ववर्ती बीआरएस सरकार ने जल जीवन मिशन में ग्रामीण पंचायतों से मिशन के क्रियान्वयन का प्रमाणन ही नहीं कराया। छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने पीएम आवास योजना में राज्यों की किस्तें ही जारी नहीं कीं। बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने उपभोग प्रमाणपत्र नहीं दिया। विकास और जनकल्याण की योजनाओं में ये टकराव और अड़ंगेबाजी लोगों का नुकसान कर रही है। इसके विपरीत दो उदाहरण राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन के बाद बनी परिस्थितियों की है। राजस्थान में भाजपा सरकार आने के बाद नदियों को जोड़ने के लिए पार्वती-काली सिंध परियोजना पर मध्य प्रदेश के साथ समझौता हो गया और छत्तीसगढ़ में गरीबों के लिए 17 लाख घरों का रास्ता साफ हो गया।ये भी पढ़ें- 'जब 4 दिन में चुनी गई थी नई सरकार', दो दशक में दोगुनी हुई अवधि; जानिए पहली बार कितने दिन में हुआ था चुनाव ये भी पढ़ें- Lok Sabha Election 2024: देश की राजधानी में क्यों कम हैं महिला मतदाता? जानिए किस सीट पर क्या है स्थिति