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अनंतनाग-राजौरी सीट: महबूबा मुफ्ती के सामने अस्तित्व बचाने की चुनौती, नेकां के लिए वर्चस्व साबित करने की जंग

Lok Sabha Election 2024 जम्मू-कश्मीर की अनंतनाग-राजौरी लोकसभा सीट पर लोकसभा चुनाव दिलचस्प हो गया है। यहां पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती के सामने अस्तित्व बचाने की चुनौती है। वहीं नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) के लिए राजनीतिक वर्चस्व की जंग है। इस सीट पर कुल 22 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। यहां 18.70 लाख कुल मतदाता हैं। भाजपा भी नए समीकरण गढ़ रही है।

By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Thu, 02 May 2024 07:25 AM (IST)
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लोकसभा चुनाव 2024: अनंतनाग-राजौरी लोकसभा सीट का चुनावी परिदृश्य।
नवीन नवाज, श्रीनगर। लगातार चर्चा में रही अनंतनाग-राजौरी सीट के माध्यम से पहली बार दो भौगोलिक इकाइयां जम्मू और कश्मीर राजनीतिक तौर से जुड़ती दिख रही हैं। पीर पंजाल की पहाड़ियों के दोनों ओर फैले इस क्षेत्र के नित बदलते राजनीतिक समीकरण किसी फिल्म की पटकथा से दिखाई पड़ते हैं।

नए समीकरण गढ़ रही भाजपा

एक ओर गठबंधन के बनने बिगड़ने की कहानी है तो तीखे आरोप-प्रत्यारोप का मसाला भी भरपूर है। कभी मुगल रोड से आगे बढ़ कश्मीर में कमल खिलाने की रणनीति बुन रही भाजपा अब दो कदम पीछे खींच नए समीकरण गढ़ रही है।

महबूबा के सामने अस्तित्व बचाने की लड़ाई

वहीं अपनों से कई झटके झेल चुकी पीडीपी प्रमुख महबूबा के लिए यह अस्तित्व बचाने की लड़ाई है तो नेकां फिर से दक्षिण कश्मीर में वर्चस्व साबित करने की जुगत में है। इन सबके बीच अपनी पार्टी के अल्ताफ बुखारी नेकां और पीडीपी से मुक्त कश्मीर का नारा देकर नए समीकरण साध रहे हैं।

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2022 में अस्तित्व में आई अनंतनाग-राजौरी सीट

वर्ष 2022 में नए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई अनंतनाग-राजौरी सीट में दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग, कुलगाम और शोपियां के 11 विधानसभा क्षेत्र और जम्मू संभाग के राजौरी व पुंछ के सात विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं।

ऐसे में पीर पंजाल की पहाड़ियों की दीवार टूटती दिख रही है। भले ही मौसम की चुनौतियों और मतदान टलने की अटकलों ने प्रचार अभियान में चुनौतियां बढ़ाई हों पर कोई भी दल कसर नहीं छोड़ना चाह रहा।

जटिल है सामाजिक ताना-बाना

कश्मीरी दल भले ही 370 की वापसी का वादा न कर पाएं पर इस विषय पर लोगों की भावनाओं को हवा देने में कसर नहीं छोड़ रहे। इस पूरे क्षेत्र की विशिष्ट भौगोलिक परिस्थितियों के बीच सामाजिक ताना-बाना भी काफी जटिल है। इस पूरे क्षेत्र कश्मीर में कश्मीरी, गुज्जर-बक्करवाल और पहाड़ी मतदाता हैं।

कुल 18.70 लाख से अधिक मतदाता

पहाड़ी मतदाताओं में हिंदू व सिख समुदाय के मतदाता हैं जबकि कश्मीरी भाषी मतदाताओं में सिख व कश्मीरी हिंदू मतदाताओं की संख्या भी 40-45 हजार है। कुल 18.70 लाख से अधिक मतदाताओं में से 85 प्रतिशत के करीब मुस्लिम मतदाता हैं और उनमें करीब अढ़ाई लाख खानाबदोश गुज्जर-बक्करवाल और अन्य जनजातियां हैं।

त्रिकोणीय दिख रहा है मुकाबला

मुख्य मुकाबला नेकां प्रत्याशी और गुज्जर नेता मियां अल्ताफ अहमद, पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती और अपनी पार्टी के जफर मन्‍हास के बीच है। भाजपा के मैदान से हटने के बाद मन्हास उम्मीद लगा रहे हैं कि नेकां और पीडीपी के विरोध के नाम पर भाजपा का परंपरागत वोट उन्हें मिलेगा।

भाजपा ने नहीं खोले पत्ते

भाजपा ने अभी पत्ते नहीं खोले हैं पर संकेत स्पष्ट है कि वोट परिवारवादी दलों के खिलाफ ही पड़ेगा। पहाड़ियों के लिए आरक्षण के बाद भाजपा ने इस सीट पर वोट बैंक में इजाफा किया है। अब भाजपा के हटने के बाद कुछ पहाड़ी वोट महबूबा की ओर जा सकता है।

आजाद की पार्टी ने मोहम्मद सलीम पर्रे को उतारा

गुलाम नबी आजाद भी अपनी नई राजनीतिक पारी में इस सीट से उतरने के मूड में थे पर अंतिम समय में वह किनारा कर गए। अब उन्होंने एडवोकेट मोहम्मद सलीम पर्रे को उतारा है।

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भाजपा के विरोध को ही बना रहे मुद्दा

दशकों तक इस क्षेत्र पर नेकां का वर्चस्व रहा पर पीडीपी ने दो दशकों में अच्छी खासी सेंध लगाई है। दक्षिण कश्मीर मुफ्ती सईद की कार्यस्थली रहा। उमर व महबूबा की आपसी खींचतान के चलते पीडीपी ने आईएनडीआई गठबंधन से अलग हो कश्मीर में तीनों सीटों पर चुनाव में उतर गई।

नेकां ने मियां अल्ताफ अहमद को दिया टिकट

उमर अब्दुल्ला ने तो पीडीपी को तीसरे नंबर की पार्टी बता दिया। नेकां ने गुज्जर-बक्करवाल समुदाय के एक बड़े वर्ग में धर्मगुरू माने जाने वाले मियां अल्ताफ अहमद को मैदान में उतारा है। महबूबा मुफ्ती भाजपा विरोध और जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन के खिलाफ वोट देने की बात रख रही है। दोनों दल भाजपा पर मुस्लिम विरोध का आक्षेप मढ़ते हैं और इसी के बूते मैदान में हैं।

अपनी पार्टी उठा रही ये मुद्दा

वहीं अपनी पार्टी कश्मीर की हर समस्या के लिए नेकां और पीडीपी को जिम्मेवार बता परिवारवादी पार्टियों से आजादी का नारा दे रही है। कश्मीर मामलों के जानकार राशिद वानी कहते हैं कि हम जैसे लोगों के लिए रोजगार ही सबसे बड़ी समस्या है। हालात में बेहतरी आई है, लेकिन उसका जो असर स्थानीय कारोबारी गतिविधियों में नजर आना चाहिए था, वह नजर नही आ रहा है। सड़कें बेहतर हुई हैं, बिजली की समस्या है।

भाजपा समर्थक निराश

भाजपा समर्थक पार्टी के चुनाव मैदान में हटने से निराश हैं और इस नाराजगी से वरिष्ठ नेता भी अवगत हैं। राजनीतिक विशेषज्ञ सलीम रेशी ने कहा कि भाजपा राजौरी-पुंछ क्षेत्र में मजबूत स्थिति में थी। अनंतनाग में भी अच्छा काम किया। कोकरनाग और दक्सुम जैसे इलाकों में भी भाजपा कार्यकर्ता नजर आएंगे। अपनी पार्टी को उनका समर्थन मिल रहा है।

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