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Lok Sabha Election 2024: अब क्या कारखाना लगाने आएगा कोई टाटा, सिंगुर की जनता में क्यों है भविष्य की निराशा?

Lok Sabha Election 2024 पश्चिम बंगाल के सिंगुर में नैनो कार कारखाने को बनते और ढहते देखने वाले लोग अब निराश हैं। कारखाना न लगने का उन्हें अफसोस है। लोगों का कहना है कि हम नहीं चाहते थे कि टाटा यहां से कारखाना छोड़कर जाएं। 2006 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने टाटा के नैनो कारखाने की स्थापना की घोषणा की थी।

By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Tue, 14 May 2024 08:13 PM (IST)
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लोकसभा चुनाव 2024: टीएमसी प्रत्याशी रचना बनर्जी और भाजपा प्रत्याशी लाकेट चटर्जी।
विनय मिश्र, जागरण, सिंगुर। मैं टाटा की नैनो कार देखता हूं तो दो बातें याद आती हैं। बंगाल के सिंगुर का नाम और वह तथाकथित कहानी, जिसमें रतन टाटा ने मोटरसाइकिल पर पति-पत्नी और दो बच्चों को जाते देखा था।

तब बारिश हो रही थी। इस दृश्य ने उन्हें मध्यम कमाई वाले परिवारों के लिए एकदम छोटी और सस्ती कार बनाने का विचार दिया। पता नहीं यह कितना सच है, लेकिन यह तो है कि लखटकिया कार बनने के पीछे सोच कुछ ऐसा ही रहा होगा।

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यह कार कभी भी एक लाख की नहीं थी, फिर भी लखटकिया कहलाई। नैनौ कार की सर्वाधिक चर्चा हुई थी। इसकी एक वजह ममता बनर्जी और उनका सिंगुर आंदोलन भी रहा। ऐसे ही दो आंदोलनों ने ममता बनर्जी को बंगाल की सत्ता भी दिलाई। 20 मई को हुगली लोकसभा क्षेत्र में मतदान है। सिंगुर इसी क्षेत्र में आता है।

टाटा के जाने के बाद सिंगुर को क्या मिला ?

आलू और धान समेत तीन फसली और चार फसली खेती वाले इस इलाके में लोग खेती-बाड़ी में अपना भविष्य नहीं देखते। नैनो कारखाना अब अतीत है। तो भविष्य क्या है? अधिसंख्य आम लोगों के पास निराशाजनक जवाब हैं।

कारखाना यहां नहीं लगा, इसको लेकर बातों में अफसोस झलकता है, तो फिर विरोध कौन कर रहा था ? फायदा किसे हुआ? इसके जवाब में तल्खी झलकती है, जो लोग आंदोलन में बढ़-चढ़कर शामिल हुए वे भी दो दशक के बाद यही कहते हैं कि जमीन और मुआवजे को लेकर हमने विरोध तो किया, लेकिन हम भी नहीं चाहते थे कि टाटा चले जाएं।

यही वजह है कि अब माकपा के लोग तेज आवाज में यह नारे लगाते सुने जाते हैं कि उद्योगों को लेकर बुद्धदेव भट्टाचार्य की नीति अच्छी थी, लेकिन कुछ लोगों ने राजनीतिक फायदे के लिए उसे खराब बता दिया।

मोटर सिटी बनना था सिंगुर को!

वामो के जमाने में बंगाल के नंदीग्राम को केमिकल हब बनना था और सिंगुर को मोटर सिटी। बंगाल में एक बात कही जाती है कि कृषि हमारा वर्तमान है और उद्योग भविष्य। वामो वाले लाल किले के ढहने और ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री बनने के 13 साल हो गए। सिंगुर में दोनों पर चरम संकट दिखता है।

1000 एकड़ में लगना था प्लांट

वर्षों तक कारखाना बनते देखना, फिर ढहते देखना और इस बीच अपनी जमीन से कटे रहने की वजह से सिंगुर के नौजवानों को खेतों में काम करने का मन नहीं करता। कुल 1000 एकड़ जमीन टाटा के हवाले होनी थी। कंपनी ने जहां निर्माण करा दिया था, वहां से शेड हटा दिए गए हैं। स्क्रैप बिक गया है। एक बड़े क्षेत्रफल में अब भी कंक्रीट के मलबे की वजह से खेती बंद है।

क्यों कतराते हैं औद्योगिक घराने?

खेतों में जो ईंट-पत्थर पड़े हैं, उनसे अधिक ठेस इस बात से लगती है कि बंगाल के औद्योगिक विकास के लिए होने वाली ब्रांडिंग मिट्टी में मिल गई। टाटा के यहां से जाने के बाद अधिसंख्य औद्योगिक घराने अब भी बंगाल की आक्रामक राजनीति के डर से इधर आने से कतराते हैं। यह बड़ा संकट है।

तृणमूल: जीतने पर इस पर काम करूंगी

तृणमूल कांग्रेस ने हुगली से 'दीदी नंबर वन' ख्यात रचना बनर्जी को उम्मीदवार बनाया है। दीदी नंबर वन बांग्ला का एक टीवी शो है, जिसमें कभी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी गेस्ट बनकर जा चुकी हैं। सिंगुर में उद्योगों की वापसी पर रचना कहती हैं कि अभी तो मैं नई हुईं। राजनीति में आते ही बड़ी-बड़ी बात क्या करूं? जीतने पर इस पर काम करूंगी।

हुगली में तृणमूल कांग्रेस के जो बैनर पोस्टर लगे हैं, उनमें प्रमुखता से रचना बनर्जी की तस्वीर दिखती हैं। ममता बनर्जी की तस्वीरों की तुलना में रचना की फोटो बड़ी क्यों ? पूछने पर तृणमूल नेता सफाई देते हैं कि रचना घर-घर में पहचानी जाने वाली चेहरा हैं इसीलिए।

भाजपा: टाटा को फिर यहां लाने की कोशिश करूंगी

पिछली बार भाजपा ने हुगली सीट जीती थी। कभी अभिनेत्री रहीं लाकेट चटर्जी भाजपा सांसद बनने के बाद अब फुल टाइम नेता हैं। वह साफ कहती हैं कि टाटा को फिर यहां लाने की कोशिश करूंगी। लाकेट के समर्थन में भी इस इलाके में कई बैनर लगे हैं। उन बैनरों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बड़ी सी तस्वीर दिखती है।

टाटा को मोदी के गुजरात पर भरोसा: लाकेट चटर्जी

लाकेट कहती हैं कि सिंगुर में अपमान सहने के बाद टाटा ने मोदी जी के गुजरात पर भरोसा किया। उसी तरह सिंगुर के लोगों को मोदीजी पर विश्वास है। यही विश्वास लाकेट का सबसे बड़ा संबल है। पिछले चुनाव में वह लगभग 73 हजार के अंतर से जीती थीं। इस बार वह इसे बढ़ाने की कोशिश में लगी हैं। तृणमूल कांग्रेस के नेता सिंगुर में कृषि आधारित उद्योगों का भरोसा दिलाते हैं।

ठोस वादे की तलाश में

बंगाल के अन्य हिस्सों की तरह हुगली में भी चाय के अड्डों पर रामनवमी, राममंदिर, बंगाल में हिंदुओं की स्थिति पर भी बहस चल रही है। बात चलते-चलते नौकरी तक पहुंच जाती है और फिर यह अफसोस हवा में घुल जाता है कि नैनो कारखाना लग गया होता तो हमारे युवाओं को सिंगुर स्टेशन से छोटी-मोटी नौकरी के लिए हावड़ा की डेली पैसेंजरी नहीं करनी पड़ती। वे नेताओं के भाषणों में सिंगुर के भविष्य को लेकर ठोस वादे की तलाश में हैं।

देश में कभी बहुत चर्चित था सिंगुर

कोलकाता से लगभग 45 किलोमीटर दूर हुगली जिले में सिंगुर है। मई 2006 में वाममोर्चा सरकार के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने एनएच-1 और दुर्गापुर एक्सप्रेस-वे के रतनपुर क्रासिंग के पास टाटा के नैनो कारखाने की स्थापना की घोषणा की। यूनियनों की अड़ंगेबाजी और बदहाल उद्योगों से परेशान बंगाल के लिए यह बड़ी घोषणा थी।

हजारों लोगों को मिलता रोजगार

गोपालनगर, बेराबेरी, रतनपुर समेत छह मौजा की जो जमीन ली जा रही थी, वह तीन फसली और चार फसली थी। यानी साल में वहां तीन और चार बार अलग-अलग फसल उगाई जाती थीं। 1000 एकड़ जमीन पर मोटर कारखाना और उसकी अनुषंगी इकाईयां लगतीं, तो हजारों लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार मिलता। इलाका ही बदल जाता।

जमीन अधिग्रहण और मुआवजे देने की प्रक्रिया शुरू होते ही वहां विरोध के स्वर उठे। मुख्यरूप से कृषि श्रमिक और सीमांत किसान विरोध कर रहे थे। लगभग 6,000 परिवारों की भूमि और आजीविका पर सवाल था, लेकिन बड़ी संख्या में लोग इस बात से खुश थे कि युवाओं को नौकरी और रोजगार मिलेगा।

ममता बनर्जी ने किया आंदोलन का नेतृत्व

ममता बनर्जी ने खेती की जमीन और वह भी बिना बातचीत किए ले लेने से नाराज लोगों के इस आंदोलन का नेतृत्व किया। इस बीच टाटा ने तेजी से काम शुरू कर दिया था। वर्कशाप बन गए। कार्यालय बन गए। कार बाजार में आने ही वाली थी कि राजनीतिक विरोध इतना बढ़ गया कि 2008 में टाटा ने ‘आक्रामक राजनीति’ से तंग आकर सिंगुर को अलविदा करने की घोषणा कर दी। नैनों का नया कारखाना गुजरात में लगा।

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