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उत्तर प्रदेश के वे पांच गैर भाजपाई CM जिनके बेटा-बेटी व बहू ने ली BJP में शरण, कांग्रेस से आए कई चौंकाने वाले नाम

राजनीति विरासत में मिली। परिवार के ‘बड़े’ तो महारथी थे। छोटों के मन में भी बहुत कुछ करने की आस। चूंकि ‘सियासी खून’ तो उनकी रगों में भी दौड़ रहा था सो अवसर और महत्वाकांक्षा उन्हें बड़े दलों के करीब खींच लाई। बड़ों की खड़ाऊं के सहारे कई चेहरों के लिए बड़े दलों के द्वार खुल गए। विरासत की सियासत को शब्दों में पिरो रहे हैं विशेष संवाददाता राजीव दीक्षित...

By Ajay Kumar Edited By: Ajay Kumar Updated: Mon, 08 Apr 2024 08:38 PM (IST)
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Lok Sabha Election 2024: विरासत की सियासत। (फाइल फोटो)
राजीव दीक्षित, लखनऊ। जनता पार्टी के शासनकाल में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे राम नरेश यादव के पुत्र अजय नरेश यादव ने शनिवार को भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। राम नरेश यादव लंबे समय तक कांग्रेस में भी रहे। किसी गैर भाजपा दल के मुख्यमंत्री के पुत्र, पुत्री या परिवारजन का अपनी राजनीतिक विरासत को बचाने के लिए भाजपा में ठौर तलाशने का यह अकेला उदाहरण नहीं है।

अतीत में कई बार ऐसा हुआ है, जब गैर भाजपा दलों की सरकारों में मुख्यमंत्री के पद पर रहीं राजनीतिक हस्तियों की संतानों या परिवारजन ने भाजपा की शरण ली है।

जब भाजपा में शामिल हुए यूपी के पहले सीएम के बेटे

उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत के पुत्र और पूर्व केंद्रीय मंत्री कृष्ण चंद्र पंत भी अपने पिता की तरह कांग्रेस में रहे, लेकिन 1998 में वह भाजपा में शामिल हो गए। तत्कालीन प्रधानमंत्री ने उन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाया था। उनकी पत्नी इला पंत भी नैनीताल लोकसभा सीट से भाजपा की सांसद रहीं।

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विजय बहुगुणा ने भी भाजपा में ली शरण

हेमवती नंदन बहुगुणा भी कांग्रेस शासनकाल में नवंबर 1973 से नवंबर 1975 तक उप्र के मुख्यमंत्री रहे। उनके पुत्र विजय बहुगुणा भी कांग्रेस शासनकाल में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे। वर्ष 2016 में विजय बहुगुणा कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए।

रीता बहुगुणा ने भी बदला पाला

हेमवती नंदन बहुगुणा की पुत्री डॉ. रीता बहुगुणा जोशी का भी कांग्रेस के साथ लंबा साथ रहा। वह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहीं और अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष भी। अपने भाई की तरह उन्होंने भी 2016 में भाजपा का दामन थाम लिया। योगी सरकार के पहले कार्यकाल में वह कैबिनेट मंत्री थीं और 2019 के लोकसभा चुनाव में इलाहाबाद से जीतकर संसद पहुंचीं।

फतेह बहादुर ने बदले कई दल

प्रदेश के एक और पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह का भी नाता कांग्रेस से रहा। वह सितंबर 1985 से जून 1988 तक मुख्यमंत्री पद पर रहे। उनके पुत्र फतेह बहादुर सिंह भी अपने पिता की तरह मूलत: कांग्रेसी थे। 2002 में उन्होंने भाजपा से नाता जोड़ा, लेकिन 2007 में उन्हें हाथी की सवारी रास आई और वह बसपा में शामिल हो गए। मायावती सरकार में प्रदेश के वन मंत्री रहे। इसके बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के विधायक के रूप में एक पारी खेलने के बाद वह फिर भाजपा की छांव में वापस आ गए। फिलहाल वह गोरखपुर की कैंपियरगंज सीट से भाजपा के विधायक हैं।

मुलायम सिंह की बहू अपर्णा भी बीजेपी में

सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। उनकी छोटी बहू अपर्णा यादव भी भाजपा की सदस्य हैं।

पार्टी की नीतियां देती हैं प्रेरणा

भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी मनीष दीक्षित इसे भाजपा की नीतियों की सर्वस्वीकार्यता के रूप में देखते हैं। वह कहते हैं कि भाजपा की सर्वस्पर्शी और सर्वव्यापी नीतियां पार्टी को समाज के हर वर्ग को अंगीकार करने की प्रेरणा तो देती ही हैं, विलग राजनीतिक विचारधारा के लोगों को आत्मसात कर उन्हें भी ‘राष्ट्र प्रथम’ की भावना को शिरोधार्य करने के लिए प्रेरित करती हैं।

विगत 10 वर्षों के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सबल, सक्षम और प्रेरणादायी नेतृत्व में भाजपा का यह सर्वव्यापी स्वरूप और निखरा है।

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