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Lok Sabha Election 2024: क्या जातीय समीकरण में फंसी अनुप्रिया पटेल की सीट? जानिए सपा और बसपा की चुनावी रणनीति

Lok Sabha Election 2024 उत्तर प्रदेश की मीरजापुर लोकसभा सीट से केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल मैदान में हैं। यहां जातीय समीकरण के बीच मुकाबला त्रिकोणीय है। समाजवादी पार्टी ने भाजपा के सांसद रमेश चंद्र बिंद को टिकट दिया है। बसपा ने ब्राह्मण चेहरा मनीष त्रिपाठी को उतारा है। इस बार जातीय समीकरण में फंसे मीरजापुर का चुनावी रण दिलचस्प है।

By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Thu, 30 May 2024 09:04 AM (IST)
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लोकसभा चुनाव 2024: अनुप्रिया पटेल, रमेश चंद्र बिंद और मनीष त्रिपाठी।
अजय जायसवाल, जागरण, मीरजापुर। मां विंध्यवासिनी देवी के प्राचीन मंदिर से देश के धार्मिक पर्यटन में अहमियत रखने वाले विंध्य क्षेत्र के मीरजापुर में कई सवाल हैं और इन्हीं पर चुनावी गणित भी निर्भर करता है।

उदाहरण के लिए बड़ा सवाल तो यही है कि ब्राह्मण किधर जाएगा? भाजपा के प्रति इनका लगाव रहा है, लेकिन बसपा ने ब्राह्मण उम्मीदवार खड़ा किया है। मीरजापुर में मुहकोचवा चौराहे पर मिले लवकुश मालवीय कहते हैं, 'कोई फर्क नहीं पड़ना है, ब्राह्मण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ ही रहेंगे। अलग बात है कि लड़ाई त्रिकोणीय हो सकती है।'

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दूसरा सवाल यह है कि संविधान बदलने का मुद्दा कितना भीतर तक गया है? जवाब देवरी कलां के सुरेन्द्र कोल से मिलता है-पहले हम सब बसपा और फिर भाजपा के साथ थे। इस बार भाजपा को वोट देकर उन्हें संविधान बदलने का मौका ही नहीं देंगे। यानी कि यह मुद्दा बसपा के कोर वोट बैंक तक असर कर रहा है।

लीड घटेगी लेकिन...

मड़िहान के राजगढ़ बाजार में दवा कारोबारी अजय कुमार को लगता है कि लीड घटेगी, लेकिन अनुप्रिया पटेल जीतेंगी। केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल मीरजापुर लोस सीट से हैट्रिक लगाने को चुनावी रण में पसीना बहा रही हैं। एनडीए में भाजपा की सहयोगी अपना दल (एस) से चुनाव लड़ रहीं अनुप्रिया को टक्कर देने के लिए आईएनडीआईए में शामिल सपा ने भदोही से भाजपा सांसद रमेश चंद्र बिंद को टिकट दिया है।

यह है मीरजापुर का जातीय समीकरण

मनीष त्रिपाठी पर दांव लगाकर बसपा भी मैदान में है। तकरीबन 19 लाख मतदाताओं वाली मीरजापुर लोस सीट के जातीय समीकरण देखे जाएं तो यहां लगभग 22 प्रतिशत वंचित समाज के अलावा पिछड़े वर्ग में कुर्मी-पटेल बिरादरी का दबदबा है। बिंद, मल्लाह, मौर्य की आबादी भी ठीकठाक है। राजभर, यादव, कुशवाहा, विश्वकर्मा, चौरसिया, बारी आदि जातियां के लोग भी चुनावी नतीजों पर कुछ हद तक असर डालते हैं। सवर्णों में सर्वाधिक ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों की संख्या है।

किस ओर है ब्राह्मणों का झुकाव?

मुस्लिम आबादी लगभग आठ प्रतिशत है। मीरजापुर की मझवां सीट से तीन बार बसपा से विधायक रहे सपा प्रत्याशी रमेश बिंद के साथ बिंद बिरादरी तो है ही, क्षेत्रवासियों के लिए जाना-पहचाना चेहरा होने से वंचित व अन्य पिछड़ी जातियों में भी उनका प्रभाव है।

सपा से होने से मुस्लिम-यादव भी उन्हीं के साथ दिखाई देते हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी चुनावी सभा कर रहे हैं। ब्राह्मण प्रत्याशी पर दांव लगाने से क्षेत्र के ब्राह्मणों का कुछ हद तक बसपा की ओर झुकाव दिखाई देता है, लेकिन ज्यादातर मोदी-योगी के साथ ही हैं।

पल्लवी ने दौलत सिंह पटेल को उतारा

बसपा के कोर वोट वंचित समाज के साथ ब्राह्मणों के दम पर जीत के लिए बसपा प्रमुख मायावती यहां चुनावी सभा कर चुकी हैं। अनुप्रिया की विधायक बहन पल्लवी पटेल ने अपना दल (कमेरावादी) से दौलत सिंह पटेल को मैदान में उतरा है। दौलत सिंह, पटेल वोटों में कुछ हद तक सेंध लगा सकते हैं। हालांकि, पिछले 10 वर्षों के दौरान मोदी-योगी सरकार के द्वारा क्षेत्र में कराए गए काम के साथ अनुप्रिया की सक्रियता से लोग कम प्रभावित नहीं है।

विकास कार्यों का दिख रहा प्रभाव

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित मुख्यमंत्री, मंत्री व भाजपा के दूसरे नेता अनुप्रिया के लिए खूब प्रचार कर रहे हैं। मां विंध्यवासिनी कॉरिडोर से लेकर मेडिकल कॉलेज, विश्वविद्यालय, गंगा पुल, हाईवे, हर-घर नल, मुफ्त राशन, प्रधानमंत्री आवास आदि का क्षेत्रवासियों पर प्रभाव देखने को मिल रहा है, जो अनुप्रिया से नहीं भी खुश हैं वे भी मोदी के लिए 'कप-प्लेट' का बटन दबाने की बात कह रहे हैं। इस बार ललितेश के यहां से चुनाव न लड़ने से ब्राह्मणों के वोटों का बड़ा हिस्सा भी भाजपा को मिलने की उम्मीदहै।

कहीं दिखी नाराजगी तो कहीं लोग संतुष्ट

कांग्रेस से विधायक रहे ललितेश इस बार टीएमसी के टिकट पर भदोही से चुनाव लड़ रहे हैं। चुनार के डंवक बबुरी के मुन्ना पटेल, गंगा सरन मौर्य व बोदल सिंह कहते हैं कि उनके विधायक नहीं दिखाई देते हैं, लेकिन अनुप्रिया ने काम किया है, इसलिए कोई दिक्कत नहीं है। दरवान के नागेश्वर नाराजगी जताते हुए कहते हैं कि पहले तो जानवरों से धान बचाना मुश्किल है और फिर नहर में पानी न आने से सूख जाता है।

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