Guna Lok Sabha seat: 'मैं अभी जिंदा हूं...', जब राजमाता के नाम से फैली थी अफवाह, फिल्मी पटकथा सी है यहां की राजनीति
Guna Lok Sabha Chunav 2024 updates देश में 18वीं लोकसभा के चुनाव होने हैं। सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी जमीन मजबूत करने में जुटी हैं। ऐसे में आपके लिए भी अपनी लोकसभा सीट और अपने सांसद के बारे में जानना भी जरूरी है ताकि इस बार किसको जिताना है इसे लेकर कोई दुविधा न हो। आज हम आपके लिए लाए हैं गुना लोकसभा सीट और यहां के सांसद की पूरी जानकारी...
ध्रुव झा, गुना। मालवा-चंबल का प्रवेश द्वार कहा जाने वाला गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र प्रदेश के उन चुनिंदा इलाकों में शामिल है, जो कई विविधताएं खुद में समेटे हुए है। यह क्षेत्र मालवा का स्वाद महसूस करता है, तो चंबल के तेवर भी दिखाता है। यहां बुंदेलखंडी तहजीब भी देखने को मिलती है, तो राजस्थान के खान-पान और पहनावे की झलक भी नजर आती है।
कुंभराज के धनिया की महक और रेशे-रेशे में अपनी संस्कृति को समेटे चंदेरी अपनी साड़ियों के दम पर यह इलाका देश-दुनिया में अपनी धाक जमाए हुए है। इन तमाम विभिन्नताओं के बीच राजनीति ही ऐसी चीज है जो पूरे क्षेत्र को जोड़ती है।
संसदीय क्षेत्र के इतिहास में लगभग पूरे कालखंड में यहां ग्वालियर राजपरिवार का कब्जा रहा है। दल कोई भी हो, लेकिन यहां से महल का सदस्य या उनका कोई खास समर्थक ही लोकसभा की सीढ़ियां चढ़ सका है। वर्ष 2019 में यहां जो उलटफेर हुआ, वह भी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं, लेकिन इसका भी नाता महल से ही है।
महल का ही दबदबा
गुना लोकसभा सीट पर 1952 से 2019 तक 16 लोकसभा चुनाव हुए, लेकिन सांसद ‘महल’ का ही रहा। ग्वालियर रियासत की राजमाता विजयाराजे सिंधिया पहले कांग्रेस फिर जनसंघ और बाद में भाजपा से चुनाव लड़ीं और सांसद चुनी गईं। बीच में कुछ मौके ऐसे आए, जब उन्होंने सीट छोड़ी तो उनके बेटे माधवराव सिंधिया ने गुना सीट का प्रतिनिधित्व किया।
परिस्थितिवश माधवराव ने गुना से चुनाव नहीं लड़ा तो अपने समर्थक महेंद्रसिंह कालूखेड़ा को चुनाव लड़ाकर सांसद बनाया। इधर, माधवराव सिंधिया की आकस्मिक मृत्यु के बाद उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गुना संसदीय सीट पर कब्जा जमाया और चार बार सांसद चुने गए।
साल 2019 के नतीजे ने बदल दिया इतिहास
साल 2019 की मोदी लहर ने पहली बार सिंधिया घराने से बाहर के व्यक्ति भाजपा के डॉ. केपी यादव को सांसद बनाया। यह भी एक गजब संयोग है कि जिस मोदी लहर ने महल की जीत की राह मोड़ दी, आज वहां के वारिस ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में शामिल होकर उसी मोदी लहर पर सवार हैं। ऐसे में मोदी और महल की दोहरी ताकत का सामना करने के लिए कांग्रेस क्या रणनीति अपनाएगी, यह देखना रोचक होगा।
सिंधिया राजघराने की तीन पीढ़ियों ने किया प्रतिनिधित्व
साल 2019 के एक चुनाव को छोड़ दें तो गुना संसदीय सीट के 65 सालों के परिणामों का कुल जोड़-घटाव यही है। गुना-शिवपुरी लोकसभा क्षेत्र में 1957 से 2019 तक 16 चुनाव लड़े गए इनमें 14 बार ‘महल’ का ही उम्मीदवार सांसद चुना गया। पहली बार 1957 में राजमाता विजयाराजे सिंधिया कांग्रेस से चुनाव लड़ीं और सांसद बनीं।इसके बाद 1967 में स्वतंत्र पार्टी से चुनाव लड़कर लोकसभा पहुंची, लेकिन 1971 में माधवराव सिंधिया भारतीय जनसंघ से चुनाव मैदान में उतरे, तो 1977 में निर्दलीय और 1980 में कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुने गए। 1984 में परिस्थितिवश माधवराव ने गुना सीट छोड़ी, तो महल समर्थक महेंद्र सिंह कालूखेड़ा को कांग्रेस प्रत्याशी बनाया गया और वे माधवराव के विश्वास पर खरे उतरे, कांग्रेस ने अच्छे मतों से जीत दर्ज की। । इसके बाद 1989 से 1998 तक राजमाता विजयाराजे सिंधिया चार बार भाजपा से सांसद चुनी गईं। उनके देहांत के बाद एक बार फिर माधवराव सिंधिया गुना सीट से लड़े और कांग्रेस को जीत दिलाई। इस बीच माधवराव का विमान दुर्घटना में असमायिक देहांत होने के बाद 2002 में उपचुनाव हुआ, जिसमें उनके पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से चुनाव मैदान में उतरे और सांसद चुने गए।इसके बाद 2004, 2009 और 2014 में भी जीते, लेकिन 2019 की मोदी लहर में उन्हें अपने ही समर्थक रहे डॉ. केपी यादव ने भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव हरा दिया।ज्योतिरादित्य को दिग्विजय ले गए थे दिल्ली
माधवराव सिंधिया की विमान हादसे में असामयिक मृत्यु के बाद उनके बेटे ज्योतिरादित्य को मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह दिल्ली ले गए और सोनिया गांधी के समक्ष कांग्रेस की सदस्यता दिलाई। इतना ही नहीं वर्ष 2002 में हुए उपचुनाव में उन्हें पार्टी ने गुना संसदीय सीट से उम्मीदवार बनाया।ज्योतिरादित्य का यह पहला चुनाव था और उन्हें राजनीति का ज्यादा अनुभव भी नहीं था। यही वजह है कि सोनिया गांधी पहली बार किसी उपचुनाव में प्रचार करने गुना पहुंची थीं। इसमें ज्योतिरादित्य ने अब तक की सबसे बड़ी जीत दर्ज की थी।