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Gwalior Lok sabha seat: राजमाता और 'अटल विरासत', फिल्मी पटकथा-सी बदलती रही यहां की राजनीति; फिर एक नेता की गलती और...

Gwalior Lok Sabha Chunav 2024 updates देश के सभी राजनीतिक दल लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारी में जुटे हैं। ऐसे में आपको अपनी लोकसभा सीट और अपने सांसद के बारे में जानना भी जरूरी है ताकि इस बार किसको जिताना है यह तय करने में कोई दुविधा न आए। पढ़िए आज हम आपके लिए लाए हैं ग्‍वालियर लोकसभा सीट और ग्‍वालियर के सांसदों के बारे में पूरी जानकारी...

By Virendra Tiwari Edited By: Deepti Mishra Updated: Fri, 09 Feb 2024 02:07 PM (IST)
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Gwalior Chunav 2024: ग्वालियर लोकसभा सीट का राजनीतिक गणित
वीरेंद्र तिवारी, ग्वालियर। Gwalior Lok Sabha Election 2024 latest news: ग्वालियर लोकसभा सीट खुद में समृद्ध ऐतिहासिक विरासत तो समेटे ही है। यहां की राजनीति भी फिल्मी कहानियों जैसे रंग दिखाती रही है। पहले लोकसभा चुनाव से लेकर अभी तक की राजनीति ड्रामा (नाटकीयता), ट्रैजडी (दुख भरी घटनाएं) और उठापटक से होते हुए आगे बढ़ रही है। यहां की राजनीति की पुस्तक में राजा-महाराजाओं का राजपाट छिनने के बाद शक्ति केंद्र बने रहने की जद्दोजहद है, तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या का अध्याय भी मिलता है।

ग्‍वालियर ही वह शहर है, जहां देश के सबसे सशक्त दल की नींव पड़ने से लेकर राजघराने की राजमाता का इकलौते बेटे से विरक्ति का दुखद प्रसंग का कहानियों में जिक्र होता है। इस धरती पर जन्मे हिंदी प्रेमी, कवि हृदय स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री बन शहर को गौरवान्वित किया, तो पैसे लेकर सवाल पूछने के मामले में सांसद ने इस लोकसभा क्षेत्र को कलंकित भी किया।

ग्वालियर से सबसे ज्यादा बार कौन-सी पार्टी जीती?

अभी तक इस सीट पर उपचुनाव मिलाकर कुल 19 बार चुनाव हुए, जिनमें से नौ बार भाजपा या उसकी पूर्ववर्ती जनता पार्टी और जनसंघ जीती है, तो वहीं आठ बार कांग्रेस। दो बार अन्य दल भी जीते।

राजमहल का प्रत्याशी मतलब... जीत तय

इस सीट पर महल की राजनीति का प्रभाव कितना है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आठ बार तो सिंधिया उपनाम (विजयाराजे, माधवराव और यशोधरा राजे) वाला प्रत्याशी ही मैदान में उतरा और आसानी से जीता। पांच चुनाव ऐसे रहे, जहां महल समर्थित प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा। दोनों प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस में सिंधिया परिवार का दखल साफ नजर आता है। एक समय तो कहा जाने लगा था कि महल से जो नाम जारी हो जाए, उसकी जीत तय मानिए।

नाटकीयता: अटल के सामने अचानक मैदान में आ गए माधवराव

साल 1984 की बात है। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद लोकसभा चुनाव हो रहे थे। अटल बिहारी वाजपेयी के ग्वालियर से चुनाव मैदान में उतरने से यहां भाजपा की जीत तय मानी जा रही थी। इसके दो कारण थे, एक तो वह खुद ग्वालियर के थे, दूसरा उन्हें पार्टी की दिग्गज नेता राजमाता विजयाराजे सिंधिया का समर्थन हासिल था। उस वक्‍त माधवराव सिंधिया गुना संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे थे।

नामांकन भरने के अंतिम दिन माधवराव से तत्कालीन पीएम राजीव गांधी ने कहा कि आप ग्वालियर से अटल के खिलाफ लड़ेंगे। माधवराव अंतिम क्षणों में ग्वालियर पहुंचे और पर्चा दाखिल कर दिया।

अटल बिहारी वाजपेयी के पास कोई रास्ता नहीं बचा था कि वह किसी अन्य सीट से नामांकन भरें। इस चुनाव में राजमाता धर्मसंकट में रहीं। एक ओर पुत्र था तो दूसरी ओर पार्टी। जब चुनाव परिणाम आए तो अटल बिहारी वाजपेयी पराजित हुए।

ट्रैजडी - सवाल पूछने के बदले रिश्वत

साल 2005 में भारतीय राजनीति में उस वक्त भूचाल आ गया था, जब एक टीवी चैनल ने 11 सांसदों का स्टिंग ऑपरेशन कर रुपये देकर संसद में सवाल पूछने के लिए राजी कर लिया। इनमें ग्वालियर से उस वक्त के कांग्रेसी सांसद रामसेवक बाबूजी भी शामिल थे। बाबूजी ने पचास हजार रुपये लिए थे। उनकी सदस्यता रद्द हो गई। इसके बाद इस सीट पर कांग्रेस कभी नहीं जीती।

उठापटक जब छोड़नी पड़ी थी माधवराव को सीट

लगातार चुनाव जीत रहे माधवराव को उस वक्त तगड़ी चुनौती मिलनी शुरू हुई, जब भाजपा के जयभान सिंह पवैया एक के बाद एक चुनाव में उनकी जीत का अंतर कम करते जा रहे थे। वर्ष 1984 में जहां माधवराव सिंधिया ने अटल बिहारी वाजपेयी को पौने दो लाख मतों से हराया था। वहीं वर्ष 1998 में पवैया के सामने यह जीत का अंतर महज 26 हजार पर पहुंच गया। हार से आशंकित माधवराव सिंधिया ने वर्ष 1999 का चुनाव ग्वालियर के बजाय गुना से लड़ना पसंद किया।

राजनीति बनी मां-बेटे के बीच दीवार

सिंधिया राजघराने की राजनीति में एंट्री कराने का श्रेय राजमाता विजयाराजे सिंधिया को है। वे सबसे पहले कांग्रेस के टिकट पर 1962 ही यहां से जीतीं। उसके बाद वह भाजपा के संस्थापक सदस्यों में एक रहीं। सिंधिया परिवार पर प्रकाशित रशीद किदवई और वीर सांघवी की किताबों में जिक्र मिलता है कि राजनीतिक मतभिन्नता ने इकलौते बेटे को मां से दूर कर दिया।

दरअसल, लंदन से पढ़कर जब माधवराव लौटे तो राजमाता चाहती थीं कि वह जनसंघ की सदस्यता लें। माधवराव ने ऐसा किया भी, लेकिन बहुत जल्दी उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया। यह बात राजमाता को नागवार गुजरी। राजनीतिक विरोध उस वक्त चरम पर पहुंच गया, जब माधवराव ने ग्वालियर से अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ पर्चा भर दिया। राजमाता ने इसको बहुत बुरा माना और खुद को अपमानित महसूस किया।

महात्मा गांधी की हत्या के आरोपित बने पहले सांसद

साल 1952 में यहां से पहला चुनाव जीतने वाले वीजी देशपांडे उसी हिंदू महासभा के प्रत्याशी थे, जिससे महात्मा गांधी का हत्यारा नाथूराम गोडसे जुड़ा था। गांधी की हत्या के तीन दिन पहले भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के लिए गांधी को जिम्मेदार ठहराने वाले वीजी देशपांडे ने उनकी जमकर आलोचना की थी। हत्या की साजिश रचने के शक में देशपांडे को भी गिरफ्तार किया गया था।

ग्वालियर लोकसभा सीट के अंदर कितनी विधानसभा सीट है?

ग्वालियर जिले की सभी छह विधानसभा सीटों के अलावा शिवपुरी जिले की दो विधानसभा सीट पोहरी और करैरा भी इस लोकसभा सीट में शामिल हैं।

चुनाव वर्ष जीते हारे
1952 वीजी देशपांडे हिंदू महासभा वैदेही चरण पाराशर (कांग्रेस)
1952* नारायण भास्‍कर खरे हिंदू महासभा
1957 सूरज प्रसाद एवं राधाचरण (दो सीट) कांग्रेस मुरलीधर सिंह (प्रजा सोशलिस्‍ट पार्टी)
1962 विजया राजे सिंधिया (कांग्रेस) मानिकचंद (जनसंघ)
1967 राम अवतार शर्मा (भारतीय जनसंघ) वैदेही चरण पाराशर (कांग्रेस)
1971 अटल बिहारी वाजपेयी (भारतीय जनसंघ) गौतम शर्मा (कांग्रेस)
1977  नारायण शेजवलकर (भारतीय लोकदल) सुमेर सिंह (कांग्रेस)
1980  नारायण शेजवलकर (जनता पार्टी) राजेंद्र सिंह कांग्रेस (आई)
1984  माधवराव सिंधिया (कांग्रेस) अटलबिहारी बाजपेयी (भाजपा)
1989  माधवराव सिंधिया (कांग्रेस) शीतला सहाय (भाजपा)
1991  माधवराव सिंधिया (कांग्रेस) नारायण शेजवलकर (भाजपा)
1996  माधवराव सिंधिया (कांग्रेस) फूलसिंह बरैया (बीएसपी)
1998  माधवराव सिंधिया (कांग्रेस) जयभान सिंह पवैया (भाजपा)
1999  जयभान सिंह पवैया (भाजपा) चंद्रमोहन नागौरी (कांग्रेस)
2004  रामसेवक सिंह (कांग्रेस) जयभान सिंह पवैया (भाजपा)
2007 यशोधरा राजे सिंधिया (भाजपा) अशोक सिंह (कांग्रेस)
2009 यशोधरा राजे सिंधिया (भाजपा) अशोक सिंह (कांग्रेस)
2014  नरेंद्र सिंह तोमर (भाजपा) अशोक सिंह (कांग्रेस)
2019  विवेक शेजवलकर (भाजपा)

अशोक सिंह (कांग्रेस)

ग्‍वालियर में कितने वोटर हैं?

  • कुल मतदाता- 21, 09,989
  • पुरुष मतदाता- 11,19,414
  • महिला मतदाता- 9,90,509
  • थर्ड जेंडर- 66

(स्रोतः निर्वाचन आयोग)

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