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Lok Sabha Election 2024: 'कच्छतीवु' चुनाव में कितना बड़ा मुद्दा? क्या तमिलनाडु में भाजपा के लिए बनेगा संजीवनी? जानिए लोगों की राय

Lok Sabha Election 2024 तमिलनाडु में पीएम मोदी की चुनावी रैलियों से लेकर प्रदेश भाजपा के युवा फायर ब्रांड अध्यक्ष के अन्नामलाई की सभाओं में कच्छत्तीवु अभी भी विमर्श का हिस्सा बना हुआ है। लेकिन क्या यह चुनावी मुद्दे में तब्दील हो पाएगा और वोटर इससे प्रभावित होंगे? जानिए क्या है इस पर लोगों की राय। पढ़ें रिपोर्ट. . .

By Jagran News Edited By: Sachin Pandey Updated: Sun, 14 Apr 2024 04:00 AM (IST)
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भाजपा लोकसभा चुनाव में कच्छतीवु के मुद्दे पर मुखर है।
संजय मिश्र, रामेश्वरम-रामनाथपुरम। कच्छतीवु द्वीप श्रीलंका को सौंपने के भाजपा के उठाए मुद्दे को लेकर राष्ट्रीय राजनीति के विमर्श में भले ही तीखी गरमागरमी चल रही हो मगर इससे सीधे प्रभावित तमिलनाडु के रामनाथपुरम संसदीय क्षेत्र में ही यह चुनाव का रुख पलट देने वाला मुद्दा नहीं बन पाया है।

तमिलनाडु में चुनाव प्रचार आखिरी हफ्ते में शिखर पर पहुंच चुका है, पर कच्छतीवु की हलचल रामनाथपुरम-रामेश्वरम में एनडीए समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार पूर्व मुख्यमंत्री ओ पनीरसेल्वम यानि ओपीएस की सभाओं और कुछ हद तक मछुआरा समुदाय की सीमाएं पार करती नहीं दिख रही है।

अभी भी विमर्श का हिस्सा

हालांकि तमिलनाडु में पीएम मोदी की चुनावी रैलियों से लेकर प्रदेश भाजपा के युवा फायर ब्रांड अध्यक्ष के अन्नामलाई की सभाओं में कच्छतीवु अभी भी विमर्श का हिस्सा बना हुआ है। पीएम मोदी ने तीन दिन पहले तमिलनाडु की अपनी सभाओं में कांग्रेस और द्रमुक पर कच्छतीवु को लेकर तगड़ा प्रहार करने से गुरेज नहीं किया।

शायद यही वजह है कि रामनाथपुरम से एनडीए समर्थित निर्दलीय पनीरसेल्वम भी सभाओं में इसका जिक्र कर मछुआरा समुदाय को साधने की कोशिश कर रहे हैं। कच्छतीवु विवाद में रामनाथपुरम-रामेश्वरम का मछुआरा वर्ग ही है जो इससे प्रभावित होता है क्योंकि समुद्री इलाके में श्रीलंकाई नौसेना उन्हें परेशान करती है।

वापस लाने का वादा

रामनाथपुरम के अपने चुनाव कार्यालय से प्रचार के लिए जाते पनीरसेल्वम इसे अहम बताते हुए यह कहना नहीं भूलते कि पीएम मोदी तीसरी पारी में आए तो कच्छतीवु को वापस लाएंगे। ओपीएस के इस दावे के विपरीत चेन्नई से मदुरै के बीच कई जगह लोगों से हुई बातचीत का सार यही था कि कच्छतीवु सिर्फ चुनाव तक चर्चा में रहेगा मगर परिणाम पर इसका कुछ असर होगा इसमें संदेह है।

दक्षिण चेन्नई के युवा बैंकर प्रेम, मदुरै के व्यवसायी पेरूवलन, रामनाथपुरम के युवा छात्र मुकंदन और रामेश्वरम मंदिर के मुख्य मार्ग पर समुद्र से निकले पत्थरों से बनी वस्तुएं बेचते एन राजकुमार जैसे कई लोगों की कच्छतीवु को लेकर जाहिर की गई राय का सार यह है कि आम लोगों में इसको लेकर भावनात्मक उबाल या सरगर्मी-बेचैनी जैसी कोई बात नहीं है और ऐसे में यह चुनाव से इतर आगे बढ़ेगा, इसकी गुंजाइश नहीं। हालांकि ओपीएस के रामनाथपुरम मुख्य चुनाव कार्यालय की कमान संभाल रहे उनके राजनीतिक सचिव मुरगानंदम मुकंदन दावा करते हैं कि भाजपा-ओपीएस का गठबंधन है और मोदी कच्छतीवु को वापस लाएंगे।

क्यों है मुद्दा?

कच्छतीवु को मुद्दा बनाने के सियासी दांव की वजह यह है कि यहां मुछआरों की आबादी अच्छी है और यह छोटा सा द्वीप रामनाथपुरम में भारत के समुद्री तट से महज 33 किमी दूर है। इसे 1974 में हुए समझौते के तहत श्रीलंका को सौंपा गया था। रामनाथपुरम सीट का हिस्सा रामेश्वरम है जहां भगवान राम की वानर सेना ने लंका पर चढ़ाई के लिए सेतु का निर्माण किया था। यूपीए सरकार के समय सेतु समुद्रम परियोजना को लेकर हुआ विवाद भी यहीं से जुड़ा था।

रामनाथपुरम सीट की चर्चा केवल कच्छतीवु की वजह से ही नहीं है बल्कि तमिलनाडु में भाजपा के लगातार बढ़ते फोकस को देखते हुए चुनाव की घोषणा से पहले इस तरह की चर्चाएं सामने आईं कि पीएम मोदी वाराणसी के अलावा यहां से भी चुनाव लड़ सकते हैं। मगर यह अटकलों से आगे नहीं बढ़ पाई और अन्नाद्रमुक पर कब्जे की लड़ाई में बाहर हुए अकेले पड़े ओपीएस को भाजपा ने समर्थन किया है।

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गठबंधन की स्थिति मजबूत

तभी ओपीएस के चुनाव कार्यालय से लेकर पोस्टरों में पीएम मोदी की तस्वीरें लगी हैं। फिर भी मुकाबला आसान नहीं दिख रहा क्योंकि स्टालिन के मजबूत नेतृत्व में द्रमुक-कांग्रेस-वामपंथी दलों के गठबंधन का हिस्सा आईयूएमएल ने अपने सांसद नवास कनी को ही मैदान में उतारा है तो अन्नाद्रमुक ने भी जयापेरूमल को उम्मीदवार बनाया है।

नवास कनी कच्छत्तीवु को लेकर रक्षात्मक नहीं हैं और कहते हैं कि केवल चुनाव के लिए इसे उठाया जा रहा मगर हमने तो केंद्र से पहले ही आग्रह कर रखा है कि भारत-श्रीलंका संयुक्त मत्स्य निगम बनाकर मछुआरों की समस्याओं का स्थाई समाधान निकाला जाए।

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रामनाथपुरम में मुस्लिम आबादी भी करीब 30 फीसद है जिस पर नवास की पकड़ है जो ओपीएस के लिए चुनौती है। ओपीएस को अपने समुदाय से जुड़े ओबीसी वर्ग के अतिरिक्त दलित जातियों के समूह मुकुलतो में शामिल पल्लर, परायर और अरुणथातियार से उम्मीदें है और मुस्लिम वर्ग का वोट भी मिलने को लेकर आशान्वित हैं।

ओपीएस समर्थकों के दावे के अनुसार पीएम मोदी के चुनाव लड़ने के लिए भाजपा ने जो कुछ शुरुआती संगठनात्मक तैयारी की थी उसका फायदा भी उन्हें मिलेगा। सियासी समीकरणों के साथ जातियों-समुदायों को साधने के ओपीएस की कोशिशें संकेत दे रही कि कच्छत्तीवु मुद्दे में वैसा भावनात्मक आवेग नहीं है जिससे सिर्फ उसके सहारे चुनावी नैया पार लग पाए।

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