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Lok Sabha Elections 2024: हर चुनाव से पहले 6 अग्निपरीक्षा देती है EVM, 152 Election में कसौटी पर खरी उतरी

Lok Sabha Election 2024 देश में इस साल 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव होने हैं। हर बार चुनाव में हार के बाद समर्थकों के बीच साख बचाने के लिए प्रत्याशी और राजनीतिक दल ईवीएम पर हार का ठीकरा फोड़ते आए हैं। 42 सालों में राज्यों के करीब 148 विधानसभा चुनाव और चार आम चुनाव कराने के बाद भी सवाल उठाए जाते रहते हैं।

By arvind pandey Edited By: Deepti Mishra Updated: Thu, 14 Mar 2024 03:22 PM (IST)
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Lok Sabha Election 2024: ईवीएम को देनी होगी और कितनी अग्निपरीक्षा
 अरविंद पांडेय, नई दिल्ली। लोकतंत्र को मजबूती देने की अपनी 42 साल की यात्रा में ईवीएम ( इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) पर अब तक गड़बड़ियों से जुड़े अनगिनत आरोप लग चुके हैं। हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक लंबी लड़ाइयां भी लड़ी जा चुकी हैं, लेकिन ईवीएम हर अग्नि परीक्षा में खरी उतरी है।

वैसे भी चुनाव में इस्तेमाल होने वाली ईवीएम को लेकर चुनाव आयोग के सख्त नियम हैं। असेंबलिंग से लेकर वोटिंग तक ईवीएम को करीब पांच सौ ट्रायल और आधा दर्जन मॉक पोल से गुजरना पड़ता है। हर स्तर पर खरा उतरने पर ही इस्तेमाल में लाया जाता है।

खास बात यह है कि सभी ट्रायल और मॉक पोल राजनीतिक दलों की मौजूदगी में होते हैं, लेकिन चुनाव परिणाम के बाद ज्यादातर दलों के सुर बदल जाते हैं। समर्थकों में साख बनाए रखने के लिए हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ देते हैं।

EVM के प्रति भरोसा मजबूत करने को आयोग ने उठाया यह कदम

ऐसी स्थिति में ईवीएम के प्रति लोगों के भरोसे को मजबूती देने और आरोपों से बचने के लिए चुनाव आयोग ने कई अहम कदम उठाए हैं। इनमें ईवीएम को वीवीपैट (वोटर वेरीफाइट पेपर ऑडिट ट्रेल) से जोड़ने जैसा कदम भी है। इसके जरिए प्रत्येक मतदाता देख सकता है कि उसने जिसे वोट दिया है, वह उसे ही मिला है। बावजूद इसके ईवीएम को ही कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है।

आयोग ने राजनीतिक दलों को चुनौती भी दी

यह स्थिति तब है, जब चुनाव आयोग ने ईवीएम के मूवमेंट सहित उसके रखरखाव और जांच-पड़ताल की हर प्रक्रिया से पार्टियों को जोड़ रखा है। ईवीएम से जुड़ी गतिविधियों पर तुरंत उन्हें सूचित किया जाता है। इतना ही नहीं, छेड़छाड़ जैसे आरोपों पर आयोग सभी राजनीतिक दलों को चैलेंज कर चुका है।

साथ ही यह साफ कर चुका है कि इसे ब्लूटूथ, इंटरनेट या फिर दूसरे किसी माध्यम से नहीं जोड़ा जा सकता है, क्योंकि यह अपने आप में एक एकल मशीन है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक ईवीएम में एक ऐसी प्रोग्रामिंग चिप लगी होती है, जिसे सिर्फ एक बार ही इस्तेमाल में लाया जा सकता है।

चुनाव आयोग के स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल के तहत प्रत्येक ईवीएम के तैयार होने पर उसे 480 से अधिक मापदंडों पर परखा जाता है। कंट्रोल यूनिट (सीयू) की परख 403 बार, बैलेट यूनिट (बीयू) की 45 बार और वीवीपैट की परख 32 बार की जाती है। एक भी मापदंड में कमी पर उसे तुरंत रिजेक्ट कर दिया जाता है।

 ईवीएम का निर्माण सिर्फ रक्षा मंत्रालय से जुड़ी इकाई भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड करती है, जिसके मौजूदा समय में बेंगलुरु, हैदराबाद और पंचकूला में प्लांट लगे हैं। किसी भी चुनाव में इस्तेमाल में लाए जाने से पहले ईवीएम को करीब आधा दर्जन बार मॉक पोल होता है। सभी में राजनीतिक दलों की भागीदारी होती है। नतीजे सबके सामने घोषित किए जाते हैं। इनमें वीवीपैट का मिलान भी शामिल है।

चुनाव से पहले कब-कब ईवीएम की होती है परख?

  1. चुनाव में इस्तेमाल होने से पहले ईवीएम और वीवीपैट की करीब छह बार जांच परख होती है। शुरुआत तो असेंबलिंग के दौरान हो जाती है, लेकिन चुनाव में इस्तेमाल से पहले वेयरहाउस से निकालकर एक-एक मशीन को ठीक से जांचा जाता है। सही मशीनों को अलग किया जाता है। खराब मशीनों की भी सूची तैयार होती है, जिसे राजनीतिक दलों से साझा किया जाता है।
  2. दूसरे चरण की जांच डमी सिंबल को लोड कर की जाती है। इस दौरान प्रत्येक डमी प्रत्याशियों के नाम की बटन को छह-छह बार दबाया जाता है। बाद में वोटों और वीवीपैट पर्चियों का मिलान किया जाता है। खरा उतरने पर उन्हें अगले चरण की जांच के लिए रखा जाता है।
  3. तीसरी जांच बड़े स्तर पर होती है। इसमें पहले पास हो चुकी ईवीएम में पांच प्रतिशत को बीच-बीच से निकाल उनमें से एक प्रतिशत ईवीएम में 12 सौ वोट, दो प्रतिशत में एक हजार और बाकी दो प्रतिशत में पांच सौ वोट डालकर जांचा जाता है। बाद में वीवीपैट से मिलाया जाता है। सही पाए जाने पर अगले चरण की जांच होती है। इसे बड़े  स्तर का मॉक पोल कहा जाता है।
  4. चौथी जांच चुनाव में प्रत्याशियों के नाम अंतिम होने पर उन्हें ईवीएम में अपलोड करने के बाद की जाती है। नोटा सहित प्रत्याशियों के नाम की बटन को एक-एक बार दबाकर जांचा जाता है।
  5. पांचवी जांच- सिंबल अपलोड होने के बाद चुनाव के तैयार ईवीएम में पांच फीसद ईवीएम को बीच-बीच से निकालकर सभी में एक-एक हजार वोट डाले जाते हैं। इनका वीवीपैट पर्चियों के साथ मिलान किया जाता है। इस दौरान प्रत्याशियों या उनके प्रतिनिधियों से कहा जाता है कि वह भी किसी ईवीएम को जांच के लिए रख सकते हैं।
  6. छठवीं जांच- यह बूथ पर वोटिंग शुरू होने से पहले की प्रक्रिया है। प्रत्याशी या उसके एजेंट को एक-एक वोट डालने का मौका दिया जाता है। फिर उनके सामने ही मिलाया जाता है। सही पाए जाने पर ईवीएम से उन मतों को सबके सामने ही डिलीट कर दिया जाता है। सभी छह जांचों के दौरान राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि मौजूद रहते हैं।

अब तक EVM से कितने चुनाव हुए?

ईवीएम पर ऐसे आरोप तब लगाए जा रहे हैं, जब उसके जरिए अब तक देश में विधानसभाओं के 148 और लोकसभा के चार चुनाव हो चुके हैं। साल 2024 के लोकसभा चुनाव भी ईवीएम के जरिए ही कराने की तैयारी है। इनमें 44 से अधिक बार सत्ता में भी बदलाव हुआ है।

ईवीएम के जरिए अब तक हुए चार लोकसभा चुनावों में दो बार कांग्रेस नेतृत्व वाला यूपीए केंद्र की सत्ता में आ चुका है। साल 2014 और साल 2019 में भाजपा की अगुवाई में एनडीए ने सबसे अधिक सीटें जीत कर सरकार बनाई है। ईवीएम के जरिए छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक छह बार 2000, 2003, 2008, 2013, 2018 और 2023 में चुनाव हो चुके हैं।

20 हजार बूथों की मिलाई गई थी पर्चियां, एक भी मिसमैच नहीं

ईवीएम के भरोसे को इससे भी जांचा जा सकता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में पहली बार सभी 543 लोकसभा सीटों के सभी 10.37 लाख बूथों पर ईवीएम के साथ वीवीपैट का इस्तेमाल किया गया था। जिसमें सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के तहत प्रत्येक विधानसभा के पांच बूथों की पर्चियों का रेंडम मिलान किया जाना था। ऐसे में देश भर के 20,600 बूथों पर वीवीपैट पर्चियां का मिलान पड़े वोटों से की गई, जो शत-प्रतिशत सही पाया गया है। एक भी वोट मिसमैच नहीं हुआ।

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ईवीएम का पहली बार कब इस्तेमाल हुआ?

ईवीएम का चुनाव में पहली बार इस्तेमाल 1982 में केरल के एर्नाकुलम जिले में किया गया। जहां 50 बूथों पर ट्रायल के रूप में इस्तेमाल किया गया था। शुरुआत में ईवीएम में सिर्फ आठ प्रत्याशियों के शामिल होने का विकल्प था, लेकिन अब इनमें 16 प्रत्याशियों को शामिल किया जा सकता है। इनमें नोटा भी शामिल है।

ईवीएम के जरिए वर्तमान में एक सीट से 384 प्रत्याशियों तक के चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं। चुनाव में वीवीपैट का पहली बार इस्तेमाल 2013 में नगालैंड में किया गया था।

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