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Indore Lok Sabha Seat: भाजपा को खूब फला अहिल्या की नगरी में राम का आशीष; जब आधी रात चौराहे पर सोए थे अटल

Indore Lok Sabha Chunav 2024 updates देश के सभी राजनीतिक दल लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारी में जुटे हैं। ऐसे में आपको अपनी लोकसभा सीट और अपने सांसद के बारे में जानना भी जरूरी है ताकि इस बार आप किसे जिताना चाहते हैं यह तय करने में कोई दुविधा न हो। पढ़िए आज हम आपके लिए लाए हैं इंदौर लोकसभा सीट और इंदौर के सांसदों की पूरी जानकारी...

By Deepti Mishra Edited By: Deepti Mishra Updated: Mon, 12 Feb 2024 08:24 PM (IST)
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Indore Chunav 2024: पढ़िए, इंदौर लोकसभा सीट के बारे में पूरी जानकारी।
 डॉ. जितेंद्र व्यास, इंदौर। Indore Lok Sabha Election 2024 latest news: यूं तो इंदौर में संसदीय लोकतंत्र का इतिहास 71 वर्ष पुराना है, क्योंकि यहां पहला लोकसभा चुनाव 1952 में हुआ था। देश के सबसे बड़े दल भाजपा को यहां जड़ें जमाने के लिए ‘भगवान राम’ का आशीष खूब फला-फूला।

वह 1989 का दौर था, जब देश में राम जन्म भूमि आंदोलन गति पकड़ चुका था। कांग्रेस ने इंदौर से प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री और कद्दावर नेता प्रकाशचंद सेठी को प्रत्याशी बनाया तो भाजपा ने एकदम नए चेहरे सुमित्रा महाजन को मैदान में उतारा। उस वर्ष राजवाड़ा चौक पर 'एक शाम राम के नाम' नामक विराट कवि सम्मेलन हुआ था।

इंदौर के कवि और वरिष्ठ भाजपा नेता सत्यनारायण सत्तन के नेतृत्व में कवियों ने राम जन्मभूमि आंदोलन और अयोध्या पर जोश भर देने वाली कविताएं सुनाईं। इससे माहौल बना और राम लहर ने कांग्रेस के मजबूत गढ़ को छीनकर भाजपा की झोली में डाल दिया। सुमित्रा महाजन ने इंदौर से चुनाव जीतकर यहां भाजपा की नींव मजबूत कर दी।

साल 1998 में भी जब सुमित्रा महाजन के सामने कांग्रेस ने पंकज संघवी को उतारा, तो भाजपा ने अटल बिहारी वाजपेयी की सभा रखी। सभा बेहद सफल रही और अटल की वाणी के जादू से सम्मोहित इंदौर ने लोकसभा सीट फिर भाजपा के खाते में डाल दी। इसके बाद तो यहां भाजपा की जड़ें इतनी गहरी जम गईं कि इसे भाजपा का गढ़ कहा जाने लगा।

सुमित्रा महाजन को माना ताई

इंदौर ने सुमित्रा महाजन को अपनी ताई मानकर लगातार आठ बार लोकसभा में भेजा। बीते लोकसभा चुनाव (2019) में भले ताई मैदान में नहीं थीं, लेकिन इंदौर ने फिर भी भाजपा को ही आशीर्वाद दिया और शंकर लालवानी को रिकॉर्ड मतों से जिताकर नया इतिहास रचा। अब तो भाजपा मानो इंदौर की रगों में लहू बनकर दौड़ती है। हाल ही में विधानसभा चुनाव में इंदौर ने नौ की नौ सीटें भाजपा को दीं। भाजपा ने भी बीते तीन दशक में इंदौर की तस्वीर ही पलटकर रख दी है।

जब जनता चौक पर सो गए अटल जी

आज की राजनीति भले ही सुविधा-संपन्न है, लेकिन गुजरे जमाने में बड़े-बड़े नेता भी किस सादगी से कर्तव्यों का पालन करते थे, इसकी मिसाल तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इंदौर में पेश की, तो इंदौरी उनके मुरीद हो गए। हुआ यूं था कि साल 1984 के चुनाव में अटल जी इंदौर आए थे। ट्रेन तय समय से काफी देरी से पहुंची।

इसलिए वह देर रात किसी कार्यकर्ता के घर नहीं गए और खजूरी बाजार के पास बने जनता चौक पहुंच गए। अटल बिहारी को वहीं पर सभा को संबोधित करना था। वे वहीं एक चबूतरे पर सो गए। यह जानकारी जब भाजपा के वरिष्ठ नेता नारायण राव धर्म और राजेंद्र धारकर तक पहुचीं, तो वे पहुंचे और अटल से घर चलने का आग्रह किया। अटल ने रात अधिक होने का हवाला दिया, तब उन्हें तत्कालीन भाजपा कार्यालय ले जाया गया, जहां उनके ठहरने की व्यवस्था की गई।

टिकट कटा भी तो संगठन के लिए जुटे रहे

वर्तमान दौर में संगठन, साधन और कार्यकर्ताओं की लंबी फौज वाली भाजपा के लिए एक दौर ऐसा भी था, जब पार्टी के पास केवल एक मोटरसाइकिल थी। वह भी वरिष्ठ नेता राजेंद्र धारकर की। बाद में नारायण राव धर्म और शिव वल्लभ शर्मा ने एक पुरानी जीप का इंतजाम किया और उससे 1984 व 1989 के चुनाव में प्रचार किया।

1989 के चुनाव में जब वरिष्ठ भाजपा नेता धारकर का टिकट काटकर सुमित्रा महाजन का नाम तय किया, तब धारकर एक अखबार के कार्यालय में बैठे थे। वहीं पर फैक्स से सूचना मिली कि उनका टिकट बदल दिया गया है। इस पर धारकर ने वहां मौजूद कार्यकर्ताओं से मुस्कुराकर कहा- ''चलो, अब सुमित्रा का चुनाव प्रचार करना है। खूब मेहनत करनी है, सब लोग जुट जाओ।''

देवी अहिल्‍या के आदर्शों वाला शहर

मां अहिल्या के इंदौर ने 1952 में पहला संसदीय चुनाव देखा। तब लोगों को चुनाव में बूथ तक लाना आसान नहीं था, लेकिन इंदौर ने संवैधानिक व्यवस्था को तेजी से स्वीकारा और नंदलाल सूर्यनारायण जोशी को पहला सांसद चुना। उस वक्त कांग्रेस बेहद मजबूत थी।फिर भी इंदौर ने हमेशा व्यक्ति और उसके कार्यों को देखकर प्रतिनिधि को चुना। यही कारण रहा कि साल 1962 में हुए तीसरे चुनाव में ही भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार और मजदूर नेता होमी दाजी को सांसद चुन लिया।

इस परिवर्तन के कारण इंदौर देशभर में राजनीतिक सुर्खियों में रहा। 1977 में इंदौर ने फिर बड़े दलों को किनारे करते हुए भारतीय लोकदल के कल्याण जैन को चुनकर फिर चौंकाया। इंदौर ने कर्मठ नेताओं को खूब प्यार भी दिया। मध्‍य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे प्रकाशचंद सेठी को चार बार सांसद चुना। फिर सुमित्रा महाजन को भी लगातार आठ बार सांसद बनाया।

एक किस्सा ऐसा भी...

वरिष्ठ भाजपा नेता सत्यनारायण सत्तन बताते हैं कि इंदौर राजनीतिक रूप से सदैव जागरूक रहा। यही वजह है कि शहर ने मजदूर व कम्युनिस्ट नेता होमी दाजी को चुनकर संसद भेजा। दाजी वाकचातुर्य के धनी थे। उनके बोलने के अंदाज की प्रशंसा तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी संसद में करते थे।

बाद में जब प्रकाशचंद सेठी लगातार दो बार सांसद चुने गए, तब कुशाभाऊ ठाकरे ने मुझे (सत्यनारायण सत्तन) और निर्भय सिंह पटेल में से किसी एक को चुनाव लड़ने के लिए तैयार रहने को कहा था।

फिर उसी दौरान नए चेहरे को मैदान में उतारने की बात पर सहमति बनी और ताई को प्रत्याशी बनाया गया। फिर ताई ने मैदान संभाला और इंदौर को मूलभूत सुविधाएं दिलवाईं। तब तक इंदौर देश के अन्य शहरों से सड़क, रेल और हवाई मार्ग से ठीक से जुड़ा भी नहीं था। सबसे पहले इसी पर कार्य शुरू किया। फिर अच्छे स्कूल और कॉलेज खुल सकें, इसकी कोशिश की गई।

होमी दाजी और लालवानी के रिकॉर्ड

इंदौर में सबसे कम मतों से जीत का रिकॉर्ड पूर्व सांसद होमी दाजी के नाम रहा। उन्होंने साल 1962 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में कांग्रेस के रामसिंह भाई वर्मा को छह हजार वोटों से हराया था, जबकि 2019 में भाजपा प्रत्याशी शंकर लालवानी ने कांग्रेस के पंकज संघवी को पांच लाख 47 हजार 754 वोटों से हराकर सबसे अधिक वोटों से जीतने का रिकॉर्ड बनाया।

इंदौर लोकसभा क्षेत्र में कितनी विधानसभाएं?

इंदौर लोकसभा क्षेत्र में क्रमांक एक, दो, तीन, चार, पांच के अलावा राऊ, देपालपुर व सांवेर समेत कुल आठ विधानसभाएं शामिल हैं।

इंदौर की ताकत

  • कुल मतदाता - 2475468
  • पुरुष मतदाता - 1250586
  • महिला मतदाता - 1224782
  • थर्ड जेंडर मतदाता - 100

इंदौर ने इन नेताओं को पहनाया ताज

  • 1952 : कांग्रेस के नंदलाल जोशी जीते।
  • 1957 : कांग्रेस के कन्हैयालाल खादीवाला ने भारतीय जनसंघ के किशोरीलाल को हराया।
  • 1962 : भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के होमी दाजी ने कांग्रेस के रामसिंह भाई को हराया।
  • 1967 : कांग्रेस के प्रकाशचंद सेठी ने होमी दाजी को पराजित किया।
  • 1971 : प्रकाश चंद सेठी (कांग्रेस) ने जनसंघ के सत्यभान सिंघल को हराया।
  • 1975 : उपचुनाव में कांग्रेस के रामसिंह भाई ने सोशलिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के कल्याण जैन को शिकस्त दी।
  • 1977 : भारतीय लोकदल के कल्याण जैन ने कांग्रेस के नंदकिशोर भट्ट को हराया।
  • 1980 : कांग्रेस के प्रकाशचंद सेठी ने शीलकुमार निगम (जेएनपी) को पराजित किया।
  • 1984 : कांग्रेस के प्रकाशचंद सेठी भाजपा के राजेन्द्र धारकर को हराया।
यहां से भाजपा का दौर शुरू

  • 1989 : भाजपा की सुमित्रा महाजन ने पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाशचंद सेठी (कांग्रेस) को हराया।
  • 1991 :दूसरे चुनाव में ललित जैन को शिकस्त दी।
  • 1996 : कांग्रेस के पूर्व महापौर मधुकर वर्मा को पराजित किया।
  • 1998 : कांग्रेस प्रत्याशी पंकज संघवी को हराया।
  • 1999 : पूर्व मंत्री महेश जोशी (कांग्रेस) को पराजित किया।
  • 2004 : पूर्व मंत्री रामेश्वर पटेल (कांग्रेस) को हराया।
  • 2009 : सत्यनारायण पटेल (कांग्रेस) को हराया।
  • 2014 : शंकर लालवानी ने विधायक सत्यनारायण पटेल (कांग्रेस) को हराया।
  • 2019 : शंकर लालवानी ने कांग्रेस के पंकज सांघ्‍वी को हराया। 
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