जम्मू-कश्मीर की इस सीट पर बदली बयार, चिनाब नदी में बह चुके आतंक व अलगाव के मुद्दे; अब इनकी होती है चर्चा
जम्मू-कश्मीर की उधमपुर लोकसभा सीट पर अब आतंक और अलगाव के मुद्दे गायब हो चुके हैं। यहां पर स्थानीय मुद्दों की चर्चा होती है। 19 अप्रैल को पहले चरण में यहां मतदान होगा। इस सीट पर 12 प्रत्याशी मैदान में हैं। भाजपा से केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह और कांग्रेस से लाल सिंह चुनाव में उतरे हैं। वहीं गुलाम नबी आजाद की पार्टी से गुलाम मोहम्मद सरूरी चुनावी समर में है।
धुरंधरों की वजह से चर्चा में उधमपुर सीट
12 प्रत्याशी मैदान में
जम्मू-कश्मीर का पावर हाउस है यह क्षेत्र
जम्मू के बड़े भूभाग तक फैले पूरे निर्वाचन क्षेत्र का 90 प्रतिशत हिस्सा पहाड़ी है और यही वजह है कि पिछले सात दशक में इसने विकास के मामले में बहुत अनदेखी झेली है। अब सड़कों के नेटवर्क के विस्तार से दूरदराज के क्षेत्रों तक विकास की झलक पहुंची है। इस क्षेत्र को जम्मू-कश्मीर का पावर हाउस भी कहा जाता है। चुनाव से जुड़ी और हर छोटी-बड़ी अपडेट के लिए यहां क्लिक करेंचिनाब की उफनती लहरों से बिजली बनाने की जिद के कारण इस क्षेत्र का महत्व बढ़ा है और रामबन, डोडा और किश्तवाड़ जिलों में कई पनबिजली परियोजनाओं पर काम चल भी रहा है। ज्यादातर क्षेत्र पहाड़ी होने के कारण प्रत्याशी का प्रत्येक गांव और प्रत्येक मतदाता तक पहुंच पाना भी सुगम नहीं है, ऐसे में प्रत्याशी डिजिटल माध्यम से पहुंचने का प्रयास करते दिख रहे हैं।क्या कहते हैं लोग?
शिक्षक खालिद ने कहा कि आतंकवाद और अलगाववाद का मुद्दा अब प्रासंगिक नहीं है। डोडा, रामबन और किश्तवाड़ आज भी प्रदेश के सबसे पिछड़े जिलों में ही गिने जाते हैं। विकास सिर्फ राष्ट्रीय राजमार्ग और कुछ कस्बों के आस पास सीमित नजर आता है।भद्रवाह में होटल संचालक एजाज ने कहा कि विकास हुआ है, इससे आप इन्कार नहीं कर सकते। लेकिन इसकी गति और तीव्र हो सकती थी। कठुआ के अभिनंदन शर्मा स्वीकारते हैं कि चिकित्सा की स्थिति बदली है, कठुआ में ही नहीं उधमपुर और डोडा में भी मेडिकल कॉलेज खुला है। एक्सप्रेसवे का काम चल रहा है। हालांकि वह भी पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग करते हैं।सीट प्रोफाइल
- कुल मतदाता- 16.20 लाख
- मतदान केंद्रों की संख्या- 2637
- पुरुष मतदाता- 844269
- महिला मतदाता- 776107
उधमपुर-कठुआ क्षेत्र की हालत 2014 तक क्या थी, यह किसी से छिपा नहीं है। आज यह क्षेत्र विकास की दौड़ में आगे है। सबका साथ सबका विकास के नारे को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मेादी ने सही साबित किया है और यही कारण है कि हम विकास के नाम पर ही लोगों से वोट मांग रहे हैं। मतदाता हमारे कामकाज को देख चुके हैं। डॉ. जितेंद्र सिंह, भाजपा प्रत्याशी और केंद्रीय मंत्री।
धुरंधरों का चुनाव
मुख्य मुकाबला भाजपा बनाम कांग्रेस और उससे भी ज्यादा पीएमओ में राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह बनाम लाल सिंह के बीच नजर आता है। लाल सिंह ने 10 वर्ष बाद गत माह ही कांग्रेस में वापसी की है। वह वर्ष 2014 के संसदीय चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़ भाजपा का हिस्सा बने थे और भाजपा उम्मीदवार डॉ. जितेंद्र सिंह की जीत में उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी।डॉ. जितेंद्र सिंह ने उस समय कांग्रेस से गुलाम नबी आजाद को हराया था। अब आजाद अलग पार्टी बना चुके हैं। लाल सिंह ने वर्ष 2004 और 2009 में लगातार दो बार कांग्रेस की टिकट पर जीत दर्ज की थी।यह भी पढ़ें: 'विदिशा से खिलेगा सुंदर कमल.. यहां से आत्मा का रिश्ता', BJP की जीत और कांग्रेस की सीट पर शिवराज का बेबाक जवाब यह भी पढ़ें: मध्य प्रदेश में कांग्रेस नए चेहरों पर लगा रही दांव; पहली बार चुनाव लड़ेंगे ये नौ युवा नेता, क्या है कांग्रेस की रणनीति?विकास तो सिर्फ कुछ खास जगहों तक सीमित है। यहां कई परियोजनाओं के नाम लिए जा सकते हैं तो सिर्फ छलावा साबित हो रही हैं। मौजूदा सांसद का स्थानीय लोगों से कोई जुड़ाव नहीं है। यहां लोग बदलाव चाहते हैं, क्योंकि उन्होंने दो बार भाजपा को मौका देकर देख लिया है। भाजपा को स्थानीय जनता और उनके मुद्दों से सरोकार नहीं है। - लाल सिंह, कांग्रेस प्रत्याशी।