Jabalpur Lok Sabha Seat: नारों से नजीर, भारत.. भगवा और सनातन को चुना; पढ़िए कांग्रेस से कमल तक सब
Jabalpur Lok Sabha Chunav 2024 updates देश के सभी राजनीतिक दल लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर जनता के बीच अपनी-अपनी जमीन मजबूत करने में जुटे हैं। ऐसे में आपको अपनी लोकसभा सीट और अपने सांसद के बारे में जानना भी जरूरी है ताकि इस बार किसको जिताना है यह तय करने में कोई दुविधा न आए। पढ़िए जबलपुर लोकसभा सीट और जबलपुर के सांसदों के बारे में पूरी जानकारी..
तरुण मिश्र, जबलपुर। Jabalpur Lok Sabha Election 2024 latest news: प्रदेश की संस्कारधानी नाम से मशहूर शहर जबलपुर में पश्चिम-मध्य रेलवे का मुख्यालय है, यहां स्थित रक्षा मंत्रालय की निर्माणी इकाइयां सेना के लिए वर्षों से आयुध सामग्री और वाहनों की खेप उपलब्ध कराती आ रही हैं। विकसित भारत की दिशा में कदम ताल करने वाला जबलपुर 27 सालों से सनातन के संग है और यहां के मतदाता लगातार भारतीय जनता पार्टी को जीत का सेहरा पहनाते आ रहे हैं।
भारत नाम रखने से लेकर...
दूसरे लोकसभा चुनाव में जबलपुर सीट से सांसद बने सेठ गोविंददास ने संविधान सभा की बैठक में देश का नाम भारत रखे जाने पर बेबाकी से विचार रखे तो आगे चलकर बाबूराव परांजपे ने जबलपुर में सनातन विचारधारा के बीजारोपण किए। हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाने का कार्य लोकसभा में सचेतक और जबलपुर सांसद रहे राकेश सिंह ने किया। जबलपुर के मतदाताओं ने ऐसे जनप्रतिनिधियों को विजेता बनाया, जो विजनरी रहे।
पूर्व केंद्रीय मंत्री और जनता दल (यूनाइटेड) के पूर्व प्रमुख शरद यादव ने भी जबलपुर से राजनीति की शुरुआत की। फिर 28 साल की उम्र में जबलपुर से सांसद बने।
कांग्रेस से कमल तक...
पहले आम चुनाव के बाद से 1974 तक इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा था। साल 1982 में पहली बार जबलपुर में कमल का फूल खिला, लेकिन दो साल बाद ही 1984 में कांग्रेस ने सीट पर फिर से कब्जा कर लिया। 1989 के चुनाव में यह सीट फिर भाजपा के खाते में आ गई।
साल 1991 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर इस सीट पर कब्जा जमाया, लेकिन 1996 से जबलपुर भाजपा का गढ़ बन गया। उसके बाद से सनातन के गढ़ में सेंध लगाने के लिए कांग्रेस ने बहुत जतन किए, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। अधिवक्ता विवेक तन्खा, रामेश्वर नीखरा जैसे कई धुरंधरों को जबलपुर के मतदाताओं ने यह एहसास कराया कि वह हिंदुत्व के एजेंडे के समर्थन में हैं।
संविधान सभा में खरे तर्क रखने वाले गोविंद दास
18 सितंबर 1949 को भारत की संविधान सभा की बैठक में संविधान सभा के सदस्य सेठ गोविंद दास ने कहा था, ' "भरत" का उल्लेख विष्णु पुराण में भी मिलता है। ब्रह्म पुराण में भी इस देश का उल्लेख "भारत" के नाम से है। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपनी यात्रा पुस्तिका में इस देश को भारत कहा है।'सभा में वह बोले कि 'इंडिया' शब्द हमारे प्राचीन ग्रंथों में नहीं आता है। इसका प्रयोग तब शुरू हुआ, जब यूनानी भारत आए। उन्होंने हमारी सिंधु नदी का नाम इंडस रखा और इंडस से इंडिया बना।
गोविंद दास आगे चलकर जबलपुर से सांसद बने। इस कांग्रेस नेता ने वर्ष 1957, 1962, 1967 और 1971 के आम चुनाव में जीत हासिल की थी। गोविंद दास के प्रपौत्र विश्वमोहन दास ने बताया कि उनके परदादा गोविंद दास ने संविधान सभा में भारत नाम पर जो बात रखीं, वह इतिहास के पन्नों में दर्ज है।
बाबूराव जी नहीं, हम लड़ रहे चुनाव
भाजपा की मजबूत आधारशिला रखने वाले नेताओं में बाबूराव परांजपे का नाम भी लिया जाता है। वे जबलपुर से तीन बार सांसद बने। साल 1989 में उन्होंने अजय नारायण मुशरान को पराजित कर चुनाव जीता था। उस दौरान उनकी लोकप्रियता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि शहर के प्रमुख बाजारों में लोग खुलेआम कहा करते थे, 'बाबूराव जी नहीं, हम लड़ रहे चुनाव। ' भाजपा नेता और बाबूराव परांजपे के नजदीकी रहे भाजपा के वरिष्ठ नेता विनोद मिश्र बताते हैं कि उस समय भाजपा प्रमुख विपक्षी दल था और आंदोलन बहुत हुआ करते थे। गिरिराज किशोर, मनोहर सहस्त्रबुद्धे और अजय विश्नोई आदि बाबूराव परांजपे के साथ सक्रियता से इन आंदोलनों में भाग लिया करते थे।दो दशक रहे राकेश सिंह सांसद
राकेश सिंह दो दशक तक जबलपुर से सांसद रहे। विधानसभा चुनाव जीतने के बाद वह प्रदेश सरकार में लोक निर्माण विभाग के मंत्री हैं। जबलपुर संसदीय सीट से कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा को भाजपा नेता सांसद राकेश सिंह ने कई बार पराजित किया। राकेश सिंह के प्रदेश सरकार में मंत्री बनने के बाद अब भाजपा संसदीय क्षेत्र के प्रतिनिधित्व के लिए नए चेहरे की तलाश में है।'लल्लू को न जगदर को, मुहर लगेगी हलधर को'
गोविंददास के निधन के बाद खाली हुई लोकसभा सीट के लिए वर्ष 1974 में चुनाव हुए। कांग्रेस ने जगदीश नारायण अवस्थी को अपना उम्मीदवार बनाया था। किसी को उम्मीद नहीं थी कि समाजवादी विचारधारा के शरद यादव जीत हासिल कर सकेंगे।शरद यादव को हलधर किसान चुनाव चिह्न मिला था। प्रचार के दौरान शरद यादव के पक्ष में एक नारे ने पूरा माहौल बदलकर रख दिया। 'लल्लू को न जगदर को, मुहर लगेगी हलधर को'- इस नारे ने ऐसा जोर पकड़ा कि कांग्रेस की उसके गढ़ में ही नींव हिल गई। प्रचार के दौरान एक और नारा खूब लोकप्रिय हुआ था- 'गली-गली और कूचे-कूचे पैदल चलकर देखा है, अपना भैया सबका भैया सचमुच बड़ा अनोखा है'।1957 में अलग हुए जबलपुर और मंडला संसदीय क्षेत्र
पहले लोकसभा चुनाव में जबलपुर में दो सीटें थीं। वर्ष 1951 में हुए चुनाव में जबलपुर उत्तर सीट से कांग्रेस के सुशील कुमार पटेरिया जीते थे। वहीं, मंडला-जबलपुर दक्षिण सीट से मंगरु गुरु उइके पहले सांसद बने। इसके बाद 1957 में जबलपुर और मंडला दो अलग-अलग संसदीय क्षेत्र बन गए। इस साल दूसरी लोकसभा के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस के सेठ गोविंद दास जीते। इसके बाद उनकी जीत का सिलसिला चलता रहा। उन्होंने 1962, 1967 और 1971 के चुनाव जीते।चुनावी साल | जीते | हारे |
1952 | मंगरु गनु उइके (कांग्रेस) | |
1957 | सेठ गोविंददास (कांग्रेस) | महेश दत्ता (पीएसपी) |
1962 | सेठ गोविंददास (कांग्रेस) | जगन्नाथ प्रसाद द्विवेदी (जनसंघ) |
1967 | सेठ गोविंददास (कांग्रेस) | बाबूराव परांजपे (जनसंघ) |
1971 | सेठ गोविंददास (कांग्रेस) | बाबूराव परांजपे (जनसंघ) |
1977 | शरद यादव (लोकदल) | जगदीश नारायण अवस्थी (कांग्रेस) |
1980 | मुंदर शर्मा (कांग्रेस) | राजमोहन गांधी (जेएनपी) |
1984 | अजय नारायण मुशरान (कांग्रेस) | बाबूराव परांजपे (भाजपा) |
1989 | बाबूराव परांजपे (भाजपा) | अजय नारायण मुशरान (कांग्रेस) |
1996 | बाबूराव परांजपे (भाजपा) | श्रवण कुमार पटेल (कांग्रेस) |
1998 | बाबूराव परांजपे (भाजपा) | डॉ. आलोक चंसोरिया (कांग्रेस) |
1991 | श्रवण कुमार पटेल (कांग्रेस) | बाबूराव परांजपे (भाजपा) |
1999 | भाजपा की जयश्री बनर्जी (भाजपा) | चंद्रमोहन (कांग्रेस) |
2004 | राकेश सिंह (भाजपा) | विश्वनाथ दुबे (कांग्रेस) |
2009 | राकेश सिंह (भाजपा) | रामेश्वर नीखरा (कांग्रेस) |
2014 | राकेश सिंह (भाजपा) | विवेक तन्खा (कांग्रेस) |
2019 | राकेश सिंह (भाजपा) | विवेक तन्खा (कांग्रेस) |
जबलपुर संसदीय क्षेत्र
- कुल मतदाता - 17 लाख, 11 हजार 683
- पुरुष- 8 लाख 97 हजार 949
- महिला- 8 लाख 13 हजार 734