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Lok Sabha Election 2024: उस सीट की सियासत जहां से वाममोर्चा को पटखनी देकर उभरीं ममता बनर्जी; 29 साल की उम्र में किया था 'खेला'

Lok Sabha Election 2024 पश्चिम बंगाल की जादवपुर सीट से ममता बनर्जी बड़े स्तर पर राजनीतिक शख्सियत के रूप में उभरीं और माकपा नीत वाममोर्चा को पहली पटखनी दी। 1984 में युवा कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव 29 वर्षीया ममता बनर्जी तब जादवपुर से माकपा के दिग्गज सोमनाथ चटर्जी को हरा कर सबसे कम उम्र की सांसद में से एक बनी थीं।

By Irfan E Azam Edited By: Sachin Pandey Updated: Tue, 28 May 2024 09:31 AM (IST)
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Lok Sabha Election 2024: ममता बनर्जी जादवपुर लोकसभा सीट से जीत कर पहली बार संसद पहुंची थीं।

इरफान-ए-आजम, सिलीगुड़ी। लोकसभा चुनाव 2024 के सातवें व अंतिम चरण के तहत आगामी शनिवार एक जून को बंगाल के जादवपुर लोकसभा क्षेत्र में मतदान होने जा रहा है। यह वही जादवपुर है, जिसे बंगाल के बुद्धिजीवियों का गढ़ कहा जाता है। यह वही जादवपुर है जिसके दायरे में बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री का क्षेत्र टालीगंज भी आता है।

यह वही जादवपुर है जो आए दिन चर्चा में बना रहता है। यह वही जादवपुर है जहां से ममता बनर्जी बड़े स्तर पर राजनीतिक शख्सियत के रूप में उभरीं और माकपा नीत वाममोर्चा को पहली पटखनी दी। यह वर्ष 1984 की बात है। तब, युवा कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव 29 वर्षीया ममता बनर्जी ने लोकसभा चुनाव में जादवपुर लोकसभा क्षेत्र से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के दिग्गज नेता व लगातार दो बार के सांसद 55 वर्षीय सोमनाथ चटर्जी को हरा कर भारत की सबसे कम उम्र सांसदों में से एक होने का खिताब अपने नाम किया था।

ममता ने रोकी हैट्रिक

माकपा के दिग्गज सोमनाथ चटर्जी 1977 से 1980 और 1980 से 1984 तक, लगातार दो बार जादवपुर लोकसभा क्षेत्र के सांसद थे। मगर, वह वहां से अपनी जीत की हैट्ट्रिक नहीं लगा पाए। युवा ममता बनर्जी ने उन्हें हरा दिया। यह पहली बार था कि, ममता बनर्जी भारत की संसद पहुंचीं वह भी जादवपुर से ही।

तब, ममता के हारे सोमनाथ चटर्जी जादवपुर लोकसभा सीट छोड़ने को मजबूर हो गए। वह बोलपुर लोकसभा क्षेत्र चले गए जहां से वह 1985 से 2009 तक, लगातार सात बार सांसद निर्वाचित हुए। इसके साथ ही 2004 से 2009 तक कांग्रेस नीत यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार में वह लोकसभा के अध्यक्ष भी रहे।

लगातार छह बार रहीं सांसद

ममता बनर्जी की बात करें तो, वह भी अपने राजनीतिक करियर में पहली बार जो जादवपुर से आम चुनाव लड़ीं तो वही यहां उनका आखिरी चुनाव भी रहा। उसके बाद 1991-96, 1996-98, 1998-99, 1999-2004, 2004-09 और 2009-2011 तक, लगातार छह बार कोलकाता दक्षिण लोकसभा क्षेत्र से वह सांसद निर्वाचित होती रहीं।

मगर, 2009 से 2014 की लोकसभा के कार्यकाल के बीच में 2011 में सांसद पद से इस्तीफा देकर वह दिल्ली से वापस कोलकाता लौट आईं। क्योंकि, 2011 में उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने इतिहास रच दिया। वर्ष 1977 से 2011 तक, लगातार 34 वर्षों तक काबिज माकपा नीत वाममोर्चा को पश्चिम बंगाल की सत्ता से बेदखल कर दिया व खुद काबिज हो गई और अब तक काबिज ही है।

कांग्रेस से क्षुब्ध हो कर बनाई TMC

1993 के ‘राइटर्स चलो अभियान’ ने राजनीति जगत में ममता बनर्जी के कद को और बड़ा कर दिया। यह तब प्रदेश कांग्रेस के कई बड़े नेताओं को रास नहीं आया। उन्होंने ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न कर दी की क्षुब्ध हो कर ममता बनर्जी को कांग्रेस से अलग हो जाना पड़ा। ऐसे में बाध्य हो कर ममता बनर्जी ने 1 जनवरी 1998 को अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस की स्थापना कर डाली।

उसके बाद उन्हें काफी राजनीतिक संघर्ष करना पड़ा। अंततः राज्य में टाटा कंपनी की नैनो कार परियोजना के लिए किसानों की जमीन के अधिग्रहण के विरुद्ध 2006 से 2009 तक के सिंगुर व नंदीग्राम आंदोलन से ममता बनर्जी और उनकी तृणमूल कांग्रेस नए सिरे से उभरी और पूरे राज्य में छा गई।

2011 से अब तक हैं मुख्यमंत्री

उस समय यानी 2011 में ममता जब सांसद पद से इस्तीफा देकर यहां बंगाल आईं तो बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लीं। हालांकि, उस समय वह निर्वाचित विधायक नहीं थीं। खैर, नियमानुसार मुख्यमंत्री पद पर छह महीने से अधिक समय के लिए बने रहने के लिए उन्हें अगले छह महीने के अंदर बंगाल भर में कहीं न कहीं से विधायक निर्वाचित होना जरूरी था। तब, भवानीपुर से तृणमूल कांग्रेस के विधायक सुब्रत बख्शी ने इस्तीफा दे दिया।

वह सीट खाली हुई और उसका उपचुनाव हुआ। उसमें ममता बनर्जी भारी मतों से विजयी हुईं। 2011 में, 2016 में और 2021 में, कुल मिला कर लगातार तीन बार वह बंगाल की मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लीं। अभी भी बंगाल की मुख्यमंत्री हैं।

वर्ष 2021 के विधानसभा चुनाव में तो अपनी जीत की हैट्ट्रिक के साथ ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने बंगाल से कांग्रेस और माकपा नीत वाममोर्चा का एकदम सफाया ही कर डाला। मगर, हाल के दशक में तृणमूल के साथ साथ बंगाल में भाजपा भी नई शक्ति के रूप में उभरी जो कि राज्य में अब तृणमूल के लिए चुनौती बन गई है।

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‘राइटर्स चलो अभियान’ ने खोला बुलंदी का रास्ता

इतिहास के झरोखे से देखें तो उपरोक्त 1984 के बाद 1993 और 1998 ममता बनर्जी के राजनीतिक करियर का अहम पड़ाव था। 21 जुलाई 1993 को पश्चिम बंगाल प्रदेश युवा कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी ने अपने नेतृत्व में ‘राइटर्स चलो अभियान’ अंजाम दिया था। उस वक्त पश्चिम बंगाल की माकपा नीत वाममोर्चा सरकार के सचिवालय राइटर्स बिल्डिंग जाने का यह अभियान, सचित्र मतदाता पहचान पत्र बनाए जाने की मांग को लेकर ही अंजाम दिया गया था।

कांग्रेस का आरोप था कि, मतदाता पहचान पत्र सचित्र नहीं रहने के चलते राज्य के सत्तारूढ़ माकपा नीत वाममोर्चा की ओर से चुनाव में खूब धांधली की जाती है। सो, ‘राइटर्स चलो अभियान’ अंजाम दिया गया। मगर, उस अभियान पर पुलिसिया फायरिंग हो गई जिसमें 13 लोग मारे गए। सैकड़ों लोग घायल हुए। यहां तक कि ममता बनर्जी को भी पुलिस की बेरहमी का शिकार होना पड़ा। उनके बाल पकड़ कर उन्हें घसीटा गया।

कहा जाता है कि, उसी समय ममता बनर्जी ने यह शपथ ली कि वह अब तब तक अपने बाल खुले रखेंगी और उसे नहीं बांधेंगी जब तक कि वह माकपा नीत वाममोर्चा को राज्य की सत्ता से बेदखल नहीं कर देती हैं और उन्होंने ऐसा करके दिखा भी दिया।

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