Lok Sabha Election 2024: शिबू सोरेन अस्वस्थ, हेमंत कानूनी शिकंजे में... क्या झामुमो दिखा पाएगा 1991 जैसा करिश्मा?
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के सामने 1991 जैसी जीत को दोहराने की चुनौती है। झामुमो ने अखंड बिहार में झारखंड क्षेत्र की 14 में से छह सीटों पर जीत दर्ज की थी l 1999 में झामुमो को सबसे अधिक वोट मिले थे लेकिन ये मत सीटों पर तब्दील नहीं हो सके थे। इस बार चुनौती यह है कि शिबू सोरेन अस्वस्थ और हेमंत कानूनी शिंकजे में है।
राजीव, दुमका। तब अखंड बिहार का दौर था और झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन की राजनीति का सिक्का बिहार से लेकर केंद्र में चलता था। इससे पहले जल, जंगल और जमीन के मुद्दे को उभार कर झारखंड अलग राज्य के अगुवा शिबू सोरेन ने महाजनी प्रथा के खिलाफ आंदोलन को धार देकर देखते ही देखते आदिवासियों के दिसोम गुरु बन गए थे।
दुमका से सोरेन को मिली सियासी पहचान
यह दौर वर्ष 1970 का था। वर्ष 1970-80 का दशक शिबू सोरेन के लिए संघर्ष व आंदोलन का था लेकिन जब वह संताल परगना की धरती पर कदम रखे तो उन्हें यहां की धरती उन्हें रास आ गई। दुमका ने उन्हें राजनीतिक पहचान दे दी।
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दुमका से लड़ा पहला चुनाव
पहली बार शिबू सोरेन 1980 में दुमका लोकसभा सीट से चुनाव लड़े और जीतकर दिल्ली पहुंच गए। इसके बाद फिर शिबू सोरेन ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। गुरुजी दुमका को अपनी कर्मभूमि बनाकर सत्ता शीर्ष तक पहुंच गए। यह उनके राजनीतिक कद का ही परिणाम था कि वर्ष 1995 में अलग राज्य का पहला पड़ाव ‘जैक‘(झारखंड स्वायत्तशासी परिषद) के तौर पर बिहार सरकार से हासिल किया था। शिबू सोरने अध्यक्ष व सूरज मंडल उपाध्यक्ष थे।
इस बार चुनाव लड़ने में संशय
वर्ष 2000 में अलग झारखंड राज्य बना। केंद्र में कोयला मंत्री और झारखंड के मुख्यमंत्री बनने वाले शिबू सोरेन वर्तमान में अस्वस्थ हैं। दुमका से वह आठ बार सांसद रह चुके हैं। शिबू सोरेन वर्ष 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ेंगे या नहीं इसको लेकर अभी संशय है।'पहचान ही नहीं... फर्श से अर्श तक पहुंचाया'
दुमका के टीन बाजार में रहने वाले झामुमो कार्यकर्ता अनूप कुमार सिन्हा पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि दुमका ने शिबू सोरेन को सिर्फ राजनीतिक पहचान ही नहीं बल्कि फर्श से अर्श तक पहुंचाया है। गुरुजी जब इस इलाके में झामुमो की राजनीति की शुरुआत किए थे तब संताल परगना में कांग्रेस का दबदबा था।