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Lok Sabha Election 2024: शिबू सोरेन अस्वस्थ, हेमंत कानूनी शिकंजे में... क्या झामुमो दिखा पाएगा 1991 जैसा करिश्मा?

झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के सामने 1991 जैसी जीत को दोहराने की चुनौती है। झामुमो ने अखंड बिहार में झारखंड क्षेत्र की 14 में से छह सीटों पर जीत दर्ज की थी l 1999 में झामुमो को सबसे अधिक वोट मिले थे लेकिन ये मत सीटों पर तब्दील नहीं हो सके थे। इस बार चुनौती यह है कि शिबू सोरेन अस्वस्थ और हेमंत कानूनी शिंकजे में है।

By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Thu, 04 Apr 2024 03:05 PM (IST)
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1991 में जीत के बाद साइमन मरांडी को मिठाई खिलाते शिबू सोरेन, साथ में सूरज मंडल l (फाइल फोटो)

राजीव, दुमका। तब अखंड बिहार का दौर था और झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन की राजनीति का सिक्का बिहार से लेकर केंद्र में चलता था। इससे पहले जल, जंगल और जमीन के मुद्दे को उभार कर झारखंड अलग राज्य के अगुवा शिबू सोरेन ने महाजनी प्रथा के खिलाफ आंदोलन को धार देकर देखते ही देखते आदिवासियों के दिसोम गुरु बन गए थे।

दुमका से सोरेन को मिली सियासी पहचान

यह दौर वर्ष 1970 का था। वर्ष 1970-80 का दशक शिबू सोरेन के लिए संघर्ष व आंदोलन का था लेकिन जब वह संताल परगना की धरती पर कदम रखे तो उन्हें यहां की धरती उन्हें रास आ गई। दुमका ने उन्हें राजनीतिक पहचान दे दी।

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दुमका से लड़ा पहला चुनाव

पहली बार शिबू सोरेन 1980 में दुमका लोकसभा सीट से चुनाव लड़े और जीतकर दिल्ली पहुंच गए। इसके बाद फिर शिबू सोरेन ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। गुरुजी दुमका को अपनी कर्मभूमि बनाकर सत्ता शीर्ष तक पहुंच गए। यह उनके राजनीतिक कद का ही परिणाम था कि वर्ष 1995 में अलग राज्य का पहला पड़ाव ‘जैक‘(झारखंड स्वायत्तशासी परिषद) के तौर पर बिहार सरकार से हासिल किया था। शिबू सोरने अध्यक्ष व सूरज मंडल उपाध्यक्ष थे।

इस बार चुनाव लड़ने में संशय

वर्ष 2000 में अलग झारखंड राज्य बना। केंद्र में कोयला मंत्री और झारखंड के मुख्यमंत्री बनने वाले शिबू सोरेन वर्तमान में अस्वस्थ हैं। दुमका से वह आठ बार सांसद रह चुके हैं। शिबू सोरेन वर्ष 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ेंगे या नहीं इसको लेकर अभी संशय है।

'पहचान ही नहीं... फर्श से अर्श तक पहुंचाया'

दुमका के टीन बाजार में रहने वाले झामुमो कार्यकर्ता अनूप कुमार सिन्हा पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि दुमका ने शिबू सोरेन को सिर्फ राजनीतिक पहचान ही नहीं बल्कि फर्श से अर्श तक पहुंचाया है। गुरुजी जब इस इलाके में झामुमो की राजनीति की शुरुआत किए थे तब संताल परगना में कांग्रेस का दबदबा था।

1984 में पृथ्वीचंद किस्कू ने दी थी शिकस्त

अनूप बताते हैं कि वर्ष 1980 में शिबू सोरेन पहली बार दुमका से सांसद चुने गए थे। इससे पहले लिट्टीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र से स्व.साइमन मरांडी मछली छाप चुनाव चिह्न पर विधायक बन चुके थे। तब गुरुजी का चुनावी प्रबंधन का काम कुछेक कार्यकर्ताओं के ही जिम्मे था, जिनमें प्रो.स्टीफन मरांडी, विजय कुमार सिंह समेत कई चेहरे थे। वर्ष 1984 में गुरुजी कांग्रेस के पृथ्वीचंद किस्कू से चुनाव हार गए थे।

जब झामुमो ने सबको चौंकाया

वर्ष 1991 में हुए चुनाव में झामुमो ने अपने दम पर झारखंड क्षेत्र की 14 में से छह सीटों पर कब्जा जमा सबको चौंका दिया था। इस जीत में संताल परगना की भी तीनों सीट दुमका, राजमहल और गोड्डा भी शामिल थी। तब दुमका से शिबू सोरेन, राजमहल से साइमन मरांडी और गोड्डा से सूरज मंडल ने चुनाव जीता था और ट्रिपल एस के नाम से मशहूर हुए थे।

फिर ऐसी जीत नहीं दोहरा पाई झामुमो

इसके बाद से अब तक हुए लोकसभा चुनावों में झामुमो इस जीत को दोहराने में विफल रही है। झामुमो ने 1996 में झारखंड क्षेत्र के 14 सीटों पर प्रत्याशियों को उतारा था लेकिन शिबू सोरेन को छोड़कर झामुमो के दूसरे प्रत्याशी चुनाव हार गए थे। एक आश्चर्यजनक स्थिति यह भी कि वर्ष 1999 के चुनाव में झामुमो को सबसे अधिक वोट जरूर मिले लेकिन वोट का यह प्रतिशत सीटों पर तब्दील नहीं हो सकी।

अस्वस्थ हैं शिबू सोरेन

इस लोकसभा चुनाव में झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन अस्वस्थ हैं और कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन कानूनी शिकंजे में फंसे हैं। गुरुजी की बड़ी बहू सीता सोरेन उनकी परंपरागत सीट दुमका में झामुमो के खिलाफ भाजपा की टिकट पर चुनावी दंगल में हैं।

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