बीते कुछ वर्षों में देश की नारी हर दिशा में तरक्की की राह पर अग्रसर है। अब बेटियां किसी से कमजोर नहीं रही हैं। वे घर से लेकर बाहर तक की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा रही हैं। नारी सशक्तीकरण के पथ पर आगे बढ़ रहीं बेटियों ने हर मोर्चे पर कमान संभाली है। चाहे वो देश की आंतरिक सुरक्षा का मामला हो या सीमा पर तैनात होने का।
जागरण, जम्मू-कश्मीर। कल्पना कीजिए कि आप किसी मतदान स्थल पर अपना मत देने पहुंचे हैं और वहां चारों तरफ अत्याधुनिक हथियारों से लैस सुरक्षा व्यवस्था में जांबाज बेटियां तैनात हों। ऐसा ही होने जा रहा है जम्मू-कश्मीर में लोकसभा चुनावों में। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने एक महिला स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप तैनात किया है। इस स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप से जुड़ी बेटियों को जंगल युद्ध, आतंकवाद विरोधी अभियान, राजमार्ग पर सुरक्षा और कानून-व्यवस्था के रखरखाव में तीन महीने का कठोर प्रशिक्षण दिया गया है। जम्मू-कश्मीर से नवीन नवाज की रिपोर्ट...
गहरे हरे रंग की वर्दी पहने, मुंह ढका हुआ और हाथों में क्लाशनिकोव और एसएलआर जैसी राइफलें लिए लड़कियों का एक दस्ता अचानक एक सड़क पर खड़ा हो जाता है। यह दस्ता वहां से गुजरने वाले वाहनों को रोकता है, वाहनों की तलाशी लेता है, वाहन में बैठे लोगों की जांच करता है और फिर एक सैनिक बिटिया अपने अन्य साथियों को हाथ से कुछ इशारा करती है। इसके बाद वाहन आगे बढ़ जाता है।
इस दस्ते से कांपते हैं आतंकी
ये लड़कियां सेना या सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के महिलाकर्मियों का दस्ता नहीं है। ये लड़कियां उस दस्ते की हैं, जिसके नाम से न सिर्फ जम्मू कश्मीर में छिप हुए, बल्कि पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान में बैठे आतंकी, आतंकियों के हैंडलर और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के अधिकारी तक कांपते हैं। ये जम्मू-कश्मीर पुलिस के विशेष आतंकरोधी दस्ते जिसे विशेष अभियान दल, स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप और एसओजी कहा जाता है, की सदस्य हैं।
पहली बार कांस्टेबल रैंक को किया गया शामिल
जम्मू-कश्मीर में आतंकरोधी अभियानों की कमान संभाल रही एसओजी लगभग 30 वर्ष की हो चुकी है। इसमें सब इंस्पेक्टर और इंस्पेक्टर रैंक व उससे ऊपर के रैंक में महिला अधिकारी समय-समय पर अपनी सेवाएं दे चुकी हैं, लेकिन कांस्टेबल स्तर पर पहली बार बेटियां आतंकियों से दो-दो हाथ करने के लिए इसका हिस्सा बनी हैं और वह भी स्वेच्छा से। स्पेशल आपरेशन ग्रुप में शामिल हुईं ये बेटियां जब भी किसी इलाके से गुजरती हैं तो वहां मौजूद लोग एक पल के लिए ठहर जाते हैं। आम लड़कियां कई बार इन्हें रोककर इनके साथ सेल्फी लेने की मनुहार करती हैं।
कितना घातक है दस्ता?
बेटियों के इस दस्ते को लेकर एसपी ऑपरेशन कामेश्वर पुरी का कहना है कि यह नारी सशक्तीकरण की प्रक्रिया है। हमने इन्हें जम्मू-कश्मीर पुलिस के पास उपलब्ध प्रत्येक हथियार को चलाने का प्रशिक्षण दिया है। यह दस्ता किसी भी पेशेवर कमांडो दस्ते की तरह ही काम करेगा। ये दस्ता पलक झपकते दुश्मन को मार गिराने के लिए उसकी घेराबंदी करने, घात लगाने और दुश्मन पर काल बनकर टूट पड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार है।
यहां कारगर साबित होगा दस्ता
यह उन इलाकों में बहुत कारगर साबित होगा, जहां हमें घर-घर तलाशी लेने की जरूरत पड़ेगी या आतंकियों के साथ उनकी महिला साथी भी होंगी। अवैध नशीले पदार्थों और हथियारों के तस्करों की धरपकड़ के लिए, उनकी देश विरोधी गतिविधियों पर अंकुश लगाने में यह एक तरह से फोर्स मल्टीप्लायर का, एसओजी के कार्यबल और क्षमता को बढ़ाने वाला है। हम नियमित तौर पर इनको प्रशिक्षित कर रहे हैं।
हालात का मुकाबला करना आता है
एसओजी में शामिल एक महिला पुलिसकर्मी ने अपना नाम और चेहरा दोनों छिपाते हुए कहा कि मैं कॉलेज में थी, जब मैंने एक दीवार पर लिखा नारा पढ़ा था- फूल नहीं चिंगारी हैं, हम भारत की नारी हैं। हम पुरुषों से किसी प्रकार कम नहीं हैं। कुछ माह पहले ही हमारे कुछ वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने कहा कि एसओजी में महिलाएं भी होनी चाहिए। मैंने उसी समय कहा कि सर, मैं तैयार हूं। सच पूछो तो स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप में शामिल होने के बाद मेरा आत्मविश्वास पहले से कहीं अधिक बढ़ गया है। डर की कोई बात नहीं है, हमें हालात का मुकाबला करना आता है।
सामान्य महिला पुलिकर्मियों की ड्यूटी सिर्फ कानून व्यवस्था संभालने तक सीमित रहती है और हम जंग के मैदान में भी उतरने को तैयार हैं। अपने साथी की बात सुनकर एक अन्य प्रशिक्षित बेटी ने आतंकियों के साथ मुठभेड में भाग लेने की संभावना पर कहा कि उसी दिन का इंतजार है। यह पूछने पर कि क्या मौत से डर नहीं लगता है तो उसने कहा कि हम अपना कफन और कब्र साथ रखती हैं। इसलिए डर की कोई बात ही नहीं है।
सबसे पहले रानु कुंडल ने ज्वाइन की थी एसओजी
स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप में सबसे पहले शामिल होने वाली महिला पुलिस अधिकारी रानु कुंडल ने कहा कि आज हालात बहुत बदल गए हैं। गौरतलब है कि रानु कुंडल कई नामी आतंकियों को मार गिराने मे अहम भूमिका निभा चुकी हैं। वह कहती हैं कि वर्ष 1994-95 में फारूक खान और अशकूर वानी ही स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप का चेहरा हुआ करते थे। उस समय कोई महिला अधिकारी एसओजी में नहीं थी। इसमें शामिल होने के लिए जब मुझसे पूछा गया तो मैंने फौरन हामी भर दी। उस समय मैं सब इंस्पेक्टर थी।
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आए दिन आतंकियों के साथ हमारी मुठभेड़ होती थी। फिर मेरे बैच की कई और महिला अधिकारी स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप में शामिल हुईं और सभी ने मौका मिलने पर स्वयं को साबित किया है। कांस्टेबल स्तर पर भी एसओजी में लड़कियों का होना जरूरी है। इससे आप कई तरह की मुश्किलों से बच सकते हैं। हमारे समय में बहुत कम लड़कियां कांस्टेबल स्तर पर भर्ती होती थी और उस समय की ऑपरेशनल परिस्थितियां भी अलग थीं। आज पुलिसबल में लड़कियों की संख्या पहले से बहुत ज्यादा है और वे पहले से ज्यादा सशक्त भी हैं।
इस योजना का हिस्सा है दस्ता
स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप में महिलाओं की भर्ती को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा आतंक के मोर्चे पर जम्मू-कश्मीर पुलिस की भूमिका को और ज्यादा सशक्त करने के संदर्भ में लागू की जा रही योजना का एक हिस्सा भी देखा जा रहा है। आतंकरोधी अभियानों में महिला दस्ते की मौजूदगी से सुरक्षाबलों पर महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार के लगने वाले आरोप भी बंद होंगे, क्योंकि जब किसी घर में तलाशी लेनी होगी तो एसओजी का महिला दस्ता यह जिम्मेदारी अच्छी तरह निभाएगा।
क्या बोले अधिकारी
एसपी कामेश्वर पुरी कहते हैं कि यह पहला दस्ता है, लेकिन आने वाले दिनों में ऐसे एक नहीं कई दस्ते तैयार किए जाएंगे। जम्मू-कश्मीर पुलिस का प्रयास है कि हर जिला स्तर पर एसओजी में कम से कम दो से तीन महिला दस्ते हों। जम्मू-कश्मीर पुलिस के पूर्व महानिरीक्षक अशकूर वानी का कहना है कि ओज, पराक्रम, समर्पण, बलिदान, प्रेम और राष्ट्रभक्ति, समय आने पर भारतीय नारी इसका प्रतीक बन जाती है।इतिहास के पन्नों को अगर खंगाला जाए तो वीरांगनाओं की कहानियां हमेशा शत्रु को परास्त करने के लिए एक नई ऊर्जा, वीरता और बलिदान की भावना को उत्पन्न करती हैं। उसी परंपरा का वहन करते हुए जम्मू-कश्मीर में आतंकियों और उनके हैंडलरों के साथ आमने-सामने की लड़ाई के लिए स्थानीय बेटियां दुर्गा बनकर लड़ने को तैयार हो चुकी हैं। यह काम बहुत पहले होना चाहिए था, लेकिन खैर, देर आयद दुरुस्त आयद।
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