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यहां ढोल-नगाड़ा बजा लोगों को बुलाते थे प्रत्याशी, जान हथेली पर रख करते थे चुनाव प्रचार; क्‍यों डर के साये में जी रहे थे लोग?

Lok Sabha Election 2024 पहले के चुनाव में नक्सल और पहाड़ी इलाकों में चुनाव प्रचार करना आसान नहीं होता था। दुर्गम रास्ते के सहारे प्रत्याशियों को प्रचार करने गांवों तक पहुंचना होता था। जीप से प्रचार किया जाता था। प्रत्याशियों को मिस्त्री साथ लेकर चलना पड़ता था। ताकि बिगड़ने पर उसे तुरंत ही ठीक किया जा सके। प्रत्याशियों को हमले का भी डर रहता था।

By Ajay Kumar Edited By: Ajay Kumar Updated: Mon, 08 Apr 2024 05:14 PM (IST)
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लोकसभा चुनाव 2024: ढोल-नगाड़ा बजाकर अखरा में बुलाए जाते थे लोग।
उत्कर्ष पाण्डेय, लातेहार। आम तौर पर नक्सल और पहाड़ी क्षेत्रों में चुनाव अभियान चलाना प्रत्याशियों के लिए सुगम नहीं होता है। उन्हें तरह-तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। तीन दशक पहले चतरा लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाले लातेहार में राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों को चुनाव प्रचार के लिए ‘पापड़’ बेलने पड़ते थे। न आज जैसी सड़कें थीं और न ही पहाड़ों पर आसानी से चढ़ सकने की क्षमता से युक्त इंजन वाले वाहन उपलब्ध थे। आज की तरह चुनाव में पैसे भी नहीं बहाए जाते थे। संसाधन काफी कम थे।

जीप के साथ मिस्त्री लेकर चलता था प्रत्याशी

पहाड़ी क्षेत्रों में प्रत्याशी जीप से प्रचार करने पहुंचे थे। इस दौरान जीप के खराब हो जाने की पूरी संभावना होती थी। इसे देखते हुए प्रत्याशी जीप पर मिस्त्री भी लेकर चलते थे। ब्रेक डाउन की स्थिति में मिस्त्री जीप मरम्मत करता था। अविभाजित बिहार के जमाने में लातेहार घनघोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र था।

हमेशा रहता था हमले का डर

रात की बात कौन करे, दिन में भी इलाके में डरे-सहमे लोगों की आवाजाही होती थी। पहाड़ी और नक्सली क्षेत्र में प्रत्याशी डर के मारे चुनाव प्रचार को नहीं पहुंचते थे। नक्सली चुनाव बहिष्कार का नारा देते थे और प्रचार वाहन को फूंक देते थे। प्रत्याशियों पर भी हमला करते थे।

ढोल-नगाड़ा बजा लोगों को बुलाया जाता था

विपरीत परिस्थिति में भी चुनावी प्रचार करने वाले 79 वर्षीय भगवान दास गुप्ता बताते हैं कि जनसंघ के लिए पहले ढोल और नगाड़ा बजाकर प्रचार किया जाता था। आदिवासी बाहुल्य इलाके में ढोल और नगाड़े के साथ मांदर बजाकर लोगों को अखरा में जमा किया जाता था। इसके बाद लोग अपना संबोधन करते थे।

पूर्व सांसद ब्रजमोहन राम, राजेश चंद्र पाण्डेय, समाजसेवी नरेश प्रसाद गुप्ता, नवल किशोर लाल, रामवृक्ष चौधरी, संतोष साहू, निर्मल शर्मा, अरूण शर्मा, महेंद्र प्रसाद साहू, चंद्रमोहन साहू, रामप्रसाद साहू समेत कई लोगों ने बताया कि पहले दुर्गम रास्तों पर जीप से हम लोग प्रचार करने जाते थे।

इसलिए साथ में होता था मिस्त्री

ग्रामीण इलाकों में जाने के दौरान स्थानीय सेवक मिस्त्री को लोग अपनी जीप में बिठा कर जरूर ले जाते थे। इसका कारण यह होता था कि उस समय तीन गियर वाली जीप होती थी, जब गांव में चढ़ाई पर जीप नहीं चढ़ती तो सेवक मिस्त्री रिवर्स गियर लगाकर बैक में जीप चढ़ाई पर चढ़ाते थे। गांव में पहुंचने पर किसी एक स्थान पर 7 से 8 गांव के ग्रामीणों का जुटान होता था। लाउडस्पीकर बजाने के लिए जीप की बैटरी का इस्तेमाल होता था।

गीत और चुटकुले सुनाकर भी पहुंचते थे लोगों के दिल तक

पहले प्रचार का प्रमुख माध्यम लाउडस्पीकर होता था। हर किसी में लाउडस्पीकर का माइक पकड़ने की आतुरता रहती थी। लेकिन, मुख्य आकर्षण उस समय श्रीराम साहू होते थे। जनसंघ काल के लोकप्रिय नेताओं में श्रीराम साहू तत्कालीन पलामू जिले से लेकर आसपास के इलाकों में अपनी खास पहचान रखते थे।

उनका चुनावी प्रचार करने का तरीका बिल्कुल जुदा होता था। वह जीप में बैठकर लाउडस्पीकर बंधवाते और फिर माइक पर ही चुनाव पर केंद्रित धार्मिक व फिल्मी गाने सयंमित अंदाज में गाते थे। कर्णप्रिय गानों के साथ चुटकुलों की बौछार ऐसी करते थे हर कोई उनके गाने सुनने को आतुर रहता था। आज भी जब कभी चुनाव प्रचार की बात होती है तो दिवंगत श्रीराम साहू की चर्चा बरबस होने लगती है।

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