देश के पहले चुनाव में एक मतदाता पर 60 पैसे हुए थे खर्च, मगर चौंका देने वाले हैं 2014 और 2019 के आंकड़े; क्या जानते हैं आप?
लोकत्रंत के महापर्व का आयोजन इस बार सात चरणों में किया जा रहा है। लंबी चलने वाली इस चुनाव प्रक्रिया पर खर्च भी काफी होता है। क्या आप जानते हैं कि देश के पहले चुनाव में हर मतदाता पर कितना खर्च किया गया था। 2014 और 2019 लोकसभा चुनाव में खर्च का यह आंकड़ा कहां तक पहुंच गया है। अगर नहीं जातने हैं तो यह खबर जरूर पढ़ें।
संजय सिंह, भागलपुर। पहले लोकसभा चुनाव में निर्वाचन आयोग ने प्रति वोटर 60 पैसे खर्च किए थे। 2004 में यह बढ़कर 12 रुपये और 2009 में 17 रुपये प्रति वोटर जा पहुंचा। 2014 के चुनाव में भी खर्च में वृद्धि देखी गई। इस चुनाव में प्रति मतदाता चुनावी खर्च बढ़कर 46 रुपये हो गया। हैरानी की बात तो यह है कि 2019 के चुनाव में 72 रुपये प्रति मतदाता खर्च आया।
इस साल बढ़ सकता खर्च
सबसे कम खर्चीला चुनाव वर्ष 1957 का है। उस समय प्रति मतदाता 30 पैसे खर्च किए गए थे। हालांकि, 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में यह खर्च और बढ़ सकता है।2019 लोकसभा चुनाव में इतना हुआ खर्च
लोकतंत्र के महापर्व में जैसे-जैसे मतदाताओं की आस्था बढ़ती गई, वैसे-वैसे लोकसभा सीटों की संख्या भी बढ़ती गई। इस कारण चुनावी खर्च में भी इजाफा हुआ है। सबसे अधिक चुनावी खर्च 2019 के आम चुनाव में हुआ था। यह चुनाव कुल 75 दिनों तक चला था। इस चुनाव में 60 हजार करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।
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यह भी जानें
- 2009 से 2024 के बीच लगभग पांच गुना बढ़ गया चुनावी खर्च।
- 2019 लोकसभा चुनाव में प्रति मतदाता खर्च किए गए थे 72 रुपये।
- 1957 में हुआ सबसे कम खर्चीला चुनाव, प्रति मतदाता 30 पैसे आया था खर्च।
चुनावों में बढ़ता गया खर्च का आंकड़ा
प्रत्याशियों की भी खर्च की सीमा 70 लाख से बढ़ाकर 95 लाख कर दी गई है। 2024 के चुनाव में अब कुछ ही दिन शेष रह गए हैं। प्रत्याशी और प्रशासनिक तंत्र का चुनावी खर्च शुरू हो गया है। देश का पहला चुनाव 1951-52 में हुआ था। तब के चुनाव में मात्र 10.5 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे।यह भी पढ़ें: मध्य प्रदेश की इन सीटों पर क्यों है भाजपा और कांग्रेस का खास फोकस? विधानसभा चुनाव के आंकड़े करेंगे हैरान!, जानें सियासी समीकरण
2014 के आम चुनाव में यह खर्च बढ़कर 3870.3 करोड़ तक पहुंच गया। उस दौरान मतदाताओं की संख्या भी बढ़कर 17.5 करोड़ से 91.2 करोड़ हो गई। 1957 के चुनाव को यदि अपवाद माना जाए तो हर चुनाव में खर्च का आंकड़ा बढ़ता चला गया।