भाजपा से दो-दो हाथ करेंगे नवीन पटनायक, इस वजह से नहीं हुआ गठबंधन, जानें क्या है नरम-गरम रणनीति
Lok Sabha Election 2024 ओडिशा में भाजपा और बीजद के बीच गठबंधन परवान नहीं चढ़ा है। अब दोनों दल एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव मैदान में होंगे। भाजपा की नजर लोकसभा चुनाव में सीटें बढ़ाने पर हैं। वहीं नवीन पटनायक नई रणनीति के तहत चुनाव अभियान में जुटे हैं। इससे पहले 1998 से 2009 तक दोनों दलों में गठबंधन रह चुका है।
उत्तम नाथ पाठक, जमशेदपुर। ओडिशा में गठबंधन की चर्चाओं पर विराम लगने के बाद भाजपा और बीजू जनता दल (बीजद) ने चुनावी मैदान में अलग-अलग मोर्चा संभाल लिया है। बीजद एक बार फिर अपनी उसी रणनीति के साथ आगे बढ़ रही है, जिसमें राष्ट्रीय मुद्दों पर तो वह मोदी सरकार का साथ देती है, लेकिन जमीनी राजनीति में दो-दो हाथ भी करती है। वक्त के हिसाब से कहीं नरम तो कहीं गरम रुख बीजद को देश के अन्य राज्यों के क्षेत्रीय दलों से अलग कतार में खड़ा करता है।
विपक्षी के साथ भी राजनीतिक संतुलन साधने का अवसर देता है। 2024 का चुनाव करीब आते-आते भाजपा और बीजद भले ही गठबंधन के प्रयास में दिखे हों, लेकिन बीजद पिछले कुछ वर्षों से राजग और आईएनडीआईए दोनों से समान दूरी बनाकर चल रहा है।
भाजपा ने तय किया 16 सीटों पर जीत का लक्ष्य
ओडिशा देश के उन पांच राज्यों में शामिल है, जहां लोकसभा के साथ ही विधानसभा चुनाव भी हो रहे हैं। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में एक सीट से बढ़कर आठ सीटों पर काबिज हुई भाजपा का आत्मविश्वास इस बार और बढ़ा हुआ है। भाजपा इस बार यहां 21 में 16 सीटें जीतने का लक्ष्य तय कर चुकी है।नवीन पटनायक के सामने दोहरी चुनौती
उधर, पिछले ढाई दशक से प्रदेश की सत्ता में बरकरार बीजद प्रमुख नवीन पटनायक की राजनीतिक बादशाहत को इस बार लोकसभा के साथ ही विधानसभा चुनाव में भी कड़ी चुनौती देने का उत्साह भाजपा में दिखाई दे रहा है।2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ओडिशा की 147 में से 23 सीटें जीतकर कांग्रेस को पीछे धकेलते हुए राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी बन गई। इस बार भाजपा प्रदेश की सत्ता तक पहुंचने के लिए भी जोर लगा रही है। पार्टी यहां बहुमत हासिल करने का दावा कर रही है।
यह रही गठबंधन नहीं हो पाने की वजह
बताया जा रहा है कि गठबंधन में जो सीटें भाजपा को देने पर बीजद तैयार था, उनसे भाजपा संतुष्ट नहीं थी। इसके अलावा भाजपा से गठबंधन को लेकर बीजद में अंतर्विरोध भी सामने आ रहे थे। बड़ी संख्या में पार्टी के नेता इसके विरोध में थे। उधर, भाजपा के कुछ नेता यह प्रचारित कर रहे थे कि बीजद उनसे गठबंधन का इच्छुक है। इस पर बीजद ने आपत्ति जताई थी।
भाजपा को इतनी सीटें देना चाहती थी बीजद
भाजपा सूत्रों का कहना है कि बीजद ने 23 में 11 लोकसभा सीटें भाजपा को देने की पेशकश की थी, जबकि वह अकेले अपने दम पर इससे ज्यादा सीटें जीत सकते हैं। वहीं विधानसभा चुनाव में भी 147 सीटों में भाजपा को बीजद 30-35 सीटें ही देने को तैयार था।11 साल रहा दोनों दलों में गठबंधन
उल्लेखनीय है कि ओडिशा में भाजपा और बीजद अगर इस बार साथ लड़ते तो 15 वर्ष बाद दोनों पार्टियां एक साथ दिखाई देतीं। 1998 से लेकर 2009 तक भाजपा और बीजद साथ थे। केंद्र में अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार में नवीन पटनायक इस्पात व खान मंत्री रह चुके हैं।1998 के लोकसभा चुनाव में भाजपा-बीजद गठबंधन ने 21 में से 17 लोकसभा सीटें जीती थीं। इसके बाद 1999 में हुए चुनाव में इस गठबंधन को 19 सीटें मिलीं। 2004 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन ने ओडिशा की 21 सीटों में से 18 पर जीत दर्ज की थी।वक्त के हिसाब से रणनीति
राज्य में राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के बावजूद नवीन पटनायक ने राष्ट्रीय महत्व के कई मुद्दों व अवसरों पर मोदी सरकार का समर्थन किया है। वर्ष 2009 में नवीन पटनायक के एनडीए से अलग होने के बाद से ओडिशा में भाजपा और बीजद आमने-सामने हैं। वर्ष 2014 में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनने के बाद भाजपा ने ओडिशा में आक्रामक रणनीति बनाई और कांग्रेस को विपक्ष से बेदखल कर दिया।जब भाजपा ने कराया ताकत का अहसास
वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अकेले आठ सीटें जीतकर अपनी ताकत का अहसास कराया। इस चुनावी जंग के बीच नवीन पटनायक ने मंझे हुए राजनेता की तरह केंद्र से निकटता भी बनाए रखी। उन्होंने नरेन्द्र मोदी को संसद में नोटबंदी, कश्मीर से 370 हटाने के विधेयक, नागरिकता संशोधन अधिनियम, जीएसटी बिल और दिल्ली अधिनियम बिल सहित तमाम मौकों पर समर्थन दिया तो आईएनडीआईए की गोलबंदी से भी पटनायक ने खुद को अलग रखा है।