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Lok Sabha Election 2024: बंगाल में ठप पड़े उद्योगों से बेपरवाह राजनीति! क्या चुनाव में बनेगा मुद्दा?

Lok Sabha Election 2024 एक जमाने में देश के कुल औद्योगिक उत्पादन में 30 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले बंगाल में आज परिस्थितियां एकदम विपरीत हैं। राज्य की हिस्सेदारी घटकर मात्र 6 फीसदी पर आ गई है। जानिए क्या है इसकी वजह और क्या आगामी लोकसभा चुनाव में बंगाल में उद्योगों का बंद होना लोगों के लिए बड़ा मुद्दा बनेगा? पढ़ें रिपोर्ट-

By Jagran News Edited By: Sachin Pandey Updated: Sat, 06 Apr 2024 12:33 PM (IST)
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बंगाल की जूट मिलें बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों को रोजगार दिलाती थीं। (सांकेतिक तस्वीर)

इंद्रजीत सिंह, कोलकाता। किसी जमाने में बंगाल के कल-कारखाने धुआं नहीं सोना उगलते थे। मिथिलांचल में मशहूर लोकोक्ति हुआ करती थी- धाइन कलकत्ता जे देह पर लत्ता यानी कलकत्ता है तो तन पर कपड़ा है। खासकर बंगाल की जूट मिलें बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लाखों को रोजगार दिलाती थीं।

उस दौर में उत्तर प्रदेश-बिहार में इन मिलों को नवविवाहिताओं की सौत कहा जाता था, लेकिन आज स्थिति विपरीत है। देश में बंगाल ही ऐसा राज्य है, जहां करीब चार दशकों में सबसे अधिक कारखाने बंद हुए। वाममोर्चा के 34 सालों के शासन से अब तक लगभग 65 हजार कारखाने बंद हुए।

ममता बनर्जी ने कारखाने खुलवाने का किया था वादा

राज्य की सत्ता में आने से पहले ममता बनर्जी ने चुनावी घोषणा पत्र में बंद कल-कारखानों को खुलवाने का वादा किया था, लेकिन ये वादे पूरे नहीं हो सके। भाजपा दावा करती आ रही है कि सत्ता में आने पर वह उद्योग-धंधे के मामले में राज्य को पुराना गौरव वापस दिलाएगी। ऐसे में बंद कल-कारखाने लोकसभा चुनाव में मुद्दा बन रहे हैं।

दरअसल, वामपंथियों ने सत्ता में आते ही राज्य में बंद, हड़ताल और यूनियनबाजी की संस्कृति को जन्म दिया, जिसने कल-कारखानों को तहस-नहस कर दिया। जो उद्योग चालू हालत में थे, वे भी बंद रहने लगे। कन्फेडरेशन आफ वेस्ट बंगाल ट्रेड एसोसिएशन के अध्यक्ष सुशील पोद्दार का कहना है कि मजदूर संगठनों के उग्र आंदोलन, वाममोर्चा सरकार की गलत औद्योगिक नीतियों ने ही बंगाल के कल-कारखानों को बदहाल कर दिया।

वाममोर्चा के बाद तृणमूल सरकार की लचर कानून-व्यवस्था के कारण बड़े औद्योगिक घराने के साथ छोटे-मोटे उद्योगपति भी बंगाल में निवेश करने से कतराते हैं। बंगाल के सिंगूर से गुजरात के सानंद में टाटा द्वारा अपनी नैनो कार परियोजना को स्थानांतरित किया जाना इसका जीता जागता उदाहरण है।

क्या है वजह

राज्य में 1977 से 2011 तक वाममोर्चा की सरकार रही। इस दौरान ही हड़ताल, बंद व यूनियनबाजी का दौर शुरू हुआ। वामपंथियों के श्रमिक संगठन 'सीटू' के खिलाफ कांग्रेस ने अपने श्रमिक संगठन 'इंटक' को उतारा। इनकी लड़ाई में मिल मालिक व श्रमिक पिसने लगे।

श्रमिकों को यह सब्जबाग दिखा कर उकसाया गया कि हड़ताल और धरना-प्रदर्शन उनकी बेहतरी के लिए है। भले ही उद्योगों में उत्पादन ठप रहे, पर उन्हें पूरा वेतन मिलेगा। राजनीतिक दलों की इस स्वार्थ की लड़ाई से उद्योगपतियों को नुकसान हुआ।

इससे धीरे-धीरे उद्योग बंद होने लगे और लोग बेरोजगार होते गए। राज्य की आर्थिक सेहत भी बिगड़ती चली गई। सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उद्योगपतियों व निवेशकों के साथ सम्मेलन कर उन्हें आगे आने की अपील की, पर उन्हें भी आशा अनुरूप सफलता नहीं मिली। हाल के दशक में बंद होने वाले कारखानों में डनलप टायर फैक्ट्री व हिंदुस्तान मोटर्स आदि प्रमुख हैं।

लगातार गिरा है औद्योगिक ग्राफ

देश की आजादी के वक्त बंगाल में छोटे-बड़े मिलाकर 80 हजार से ज्यादा कारखाने थे। तब देश के कुल औद्योगिक उत्पादन में बंगाल की हिस्सेदारी 30 प्रतिशत से ज्यादा थी, जो अब घटकर छह प्रतिशत रह गई है। इस दौरान गुजरात, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, तमिलनाडु का तेजी से विकास हुआ है।

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पिछले दो दशक में ही उक्त राज्यों की औद्योगिक विकास दर छह से 10 प्रतिशत के बीच रही है। राज्य में 40 हजार एकड़ जमीन ऐसी बेकार पड़ी हैं, जहां कभी कल-कारखाने हुआ करते थे। हालांकि, अब ज्यादातर जमीनों पर रियल एस्टेट के लोगों की नजर है। बंगाल में अन्य राज्यों के मुकाबले 30 प्रतिशत कम बिजली खर्च होती है। राज्य में कल-कारखानों के बंद होने के चलते यह स्थिति पैदा हुई है।

हिंदी भाषी श्रमिकों को बाहरी बताने की साजिश

बंगाल की मिलों में काम करने वाले अधिकांश श्रमिक उत्तर प्रदेश व बिहार के होते हैं। वामदलों और तृणमूल कांग्रेस की सरकारों ने इन्हें ‘बाहरी’ करार दिया। कहा गया कि उद्योगों में काम करने वाले दूसरे राज्यों के लोग सरकार विरोधी होते हैं। इसलिए उन्हें सत्ता के लिए चुनौती माना गया और हड़ताल, तालाबंदी, धरना-प्रदर्शन को औजार बनाकर उन्हें हतोत्साहित किया गया। लिहाजा ज्यादातर श्रमिक बेहतर भविष्य की तलाश में दूसरे राज्यों में पलायन कर गए।

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बंद कारखाने खुलवाने मांग

लोकसभा चुनाव में बंद कल-कारखाने मुद्दा बन रहे हैं। स्थानीय लोग हाल के वर्षों में बंद हुए कारखानों की स्थानीय जनप्रतिनिधि से खुलवाने की मांग कर रहे हैं। इसके अलावा लोग चाहते हैं कि उनके क्षेत्र में नए उद्योग स्थापित हों, जिससे लोगों को रोजगार मिले। वहीं, स्थानीय राजनीतिक पार्टियां भी इसे मुद्दा बना रही हैं। उनका कहना है कि जब तक उद्योगों का विकास नहीं होगा, तब तक राज्य की प्रगति संभव नहीं है।

किसने क्या कहा?

"सत्ता में आने के साथ ही तृणमूल कांग्रेस ने राज्य में उद्योगों के विकास पर ध्यान केंद्रित किया है। राज्य की मुखिया ममता बनर्जी ने इस दिशा में कई ठोस कदम उठाए हैं। हम लोग शुरू से ही इसे लेकर गंभीर हैं।"

सुखेंदु शेखर राय, राष्ट्रीय प्रवक्ता, टीएमसी

"औद्योगिक विकास के मामले में वाममोर्चा व टीएमसी दोनों ने ही बंगाल की जनता को निराश किया है। एकमात्र भाजपा के सत्ता में आने पर ही उद्योगों की प्रगति होगी। भाजपा ही राज्य को उसके पुराने गौरव को वापस दिला सकती है।"

-सुवेंदु अधिकारी, भाजपा विधायक व नेता प्रतिपक्ष

"शुरुआती वर्षों में हम लोगों से कुछ गलतियां हुई थीं, जिसे बाद में हम लोगों ने सुधारा था। माकपा शुरू से ही मजदूरों के हितों के लिए लड़ती रही है। राज्य में उद्योगों का विकास जरूरी है।"

सुजन चक्रवर्ती, वरिष्ठ माकपा नेता

बंगाल में उद्योग धंधों का बुरा हाल है। माकपा के बाद तृणमूल कांग्रेस ने भी उद्योगों के विकास के साथ खिलवाड़ किया है। राज्य की जनता इन लोगों से त्रस्त है। राज्य में उद्योगों का लगना बहुत जरूरी है।"

-अधीर रंजन चौधरी, कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष

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