Lok Sabha Election 2024: इन मुद्दों पर सियासी दलों को परखता है उत्तराखंड का मतदाता, गांव से शहर तक होती है चर्चा
उत्तराखंड के पहाड़ों में भी लोकसभा चुनाव की बयार बह रही है। गांव से शहर तक चुनाव पर चर्चा चल रही है। मुद्दों की कसौटी पर दलों को कसा जा रहा है। हर चुनाव की तरह इस चुनाव में भी राष्ट्रीय मुद्दों की धमक है। जनता इन मुद्दों पर बात कर रही है। वहीं राजनीतिक दलों ने भी राष्ट्रीय मुद्दों को केंद्र पर रखना शुरू कर दिया है।
केदार दत्त, देहरादून। मध्य हिमालयी राज्य उत्तराखंड भौगोलिक दृष्टि से भले ही छोटा हो और लोकसभा की कुल जमा पांच सीटें हों लेकिन यहां के मतदाता का सोच राष्ट्रीय और परिपक्व है। चुनावों में यह परिलक्षित भी होता आया है। बुनियादी मुद्दे बहुत असरकारी नहीं हैं, बल्कि राज्य का मतदाता राष्ट्रीय मुद्दों पर पार्टी और प्रत्याशियों को कसौटी पर परखता आया है।
चुनाव में होती है राष्ट्रीय मुद्दों की चर्चा
विषय चाहे आंतरिक सुरक्षा का हो या सीमाओं की सुरक्षा अथवा घुसपैठ का, उत्तराखंड के नागरिक सजग प्रहरी की भूमिका निभाते हैं। वे सभी को तौलते हैं। इसी परंपरा को यहां का मतदाता लोकतंत्र के इस महोत्सव में भी आगे बढ़ाता दिख रहा है। यद्यपि, राजनीतिक दल और प्रत्याशी स्थानीय व क्षेत्रीय मुद्दों को भी आगे बढ़ाते हैं, लेकिन कम ही लोग इससे प्रभावित होते हैं।- राष्ट्रीय मुद्दों को खास अहमियत देती आई है उत्तराखंड की जागरूक जनता
- चुनाव चाहे लोकसभा के हों या विधानसभा, सभी में हावी रहते हैं राष्ट्रीय मुद्दे
- इस चुनाव में भी सीमा से लेकर शहर तक राष्ट्रीय मुद्दों की हो रही है चर्चा
देश-प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता न हो, इस दृष्टिकोण से भी यहां के निवासी अपनी परिपक्वता का परिचय देते आए हैं। राजनीतिक स्थिरता आए, इसमें भी वे भागीदारी निभाते आए हैं। कुछ इसी तरह के मुद्दे इन दिनों यहां चुनावी फिजा में चर्चा में हैं। सीमा से लेकर शहर तक इनकी गूंज सुनाई पड़ रही है।
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क्यों राष्ट्रीय मुद्दों को महत्व देता है उत्तराखंड का मतदाता?
राष्ट्रीय मुद्दों को यदि उत्तराखंड का मतदाता अधिक महत्व देता है तो इसके पीछे कई कारण हैं। विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाला यह छोटा सा राज्य चीन और नेपाल की सीमाओं से सटा है। उत्तराखंड की 658 किलोमीटर सीमा इन दोनों देशों से लगी है। सीमावर्ती प्रथम गांवों के लोग एक प्रकार से देश के प्रहरी की भूमिका भी निभाते आ रहे हैं। ऐसे में वे स्वयं को राष्ट्र की चिंता से जोड़ते ही नहीं, बल्कि अपना शत-प्रतिशत योगदान देने को तत्पर दिखते हैं।
यहां मजबूत हैं देशभक्ति और राष्ट्रवाद की जड़ें
यही नहीं, उत्तराखंड सैनिक बहुल प्रदेश है। प्रत्येक तीसरे परिवार का कोई न कोई सदस्य सेना अथवा अर्द्धसैनिक बलों का हिस्सा है। ऐसे में देशभक्ति और राष्ट्रवाद का ज्वार सिर चढ़कर बोलता है। साक्षरता के मामले में भी उत्तराखंड देश के औसत से आगे है।2011 की जनगणना के अनुसार साक्षरता 78.8 प्रतिशत है, जबकि देश में 74.04 प्रतिशत। राज्य में 87.4 प्रतिशत पुरुष और 70.0 प्रतिशत महिलाएं साक्षर हैं। परिणामस्वरूप राष्ट्रीय विषयों की मतदाता गहराई से पड़ताल करते हैं और उसी के बाद तय करते हैं कि चुनावों में उन्हें अपने मत का उपयोग किन मुद्दों को ध्यान में रखकर करना है।