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नवनीत राणा के सामने 'अपनों' की चुनौती, लोकप्रियता और बजरंगबली के सहारे मैदान में, जानिए अमरावती का सियासी हाल

Lok Sabha Election 2024 दक्षिण भारत की कई फिल्मों में अभिनय करने के बाद नवनीत राणा ने राजनीति में कदम रखा था। 2014 में उन्होंने अमरावती से राकांपा की टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन शिवसेना प्रत्याशी आनंदराव अडसूल से जीत नहीं सकीं। मगर 2019 में अमरावती से निर्दलीय चुनाव जीता। इस चुनाव में राणा को राकांपा का समर्थन प्राप्त था।

By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Sun, 21 Apr 2024 02:20 PM (IST)
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लोकसभा चुनाव 2024: अपनी लोकप्रियता और बजरंगबली के सहारे नवनीत राणा।
ओमप्रकाश तिवारी, अमरावती। मुद्दा महिला आरक्षण का हो या कोई और, राष्ट्रहित में प्रभावशाली ढंग से अपनी बात रखने वाली 17वीं लोकसभा की निर्दलीय सांसद नवनीत राणा इस बार महाराष्ट्र के अमरावती क्षेत्र से भाजपा की उम्मीदवार हैं।

2019 में जब वह इसी सीट से चुनकर संसद में पहुंचीं तो एक बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनसे हंसकर पूछा था कि मेरी इतनी जबर्दस्त लहर में आप निर्दलीय कैसे चुनकर आ गईं ? इस बार उसी फायर ब्रांड निर्दलीय सांसद को भाजपा ने उस सीट से अपना उम्मीदवार बना दिया, जहां से कभी वह लोस का चुनाव लड़ी ही नहीं। यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है।

नवनीत राणा: फिल्म से सियासत तक

38 वर्षीय नवनीत की स्कूली शिक्षा मुंबई से हुई है। इसके बाद उन्होंने मॉडलिंग का कैरियर चुना। फिर दक्षिण भारत की कई फिल्मों में अभिनय कर खुद को सिने जगत में स्थापित किया। अमरावती से निर्दलीय विधायक रवि राणा से विवाह करने के बाद राजनीति उन्हें भी भा गई और वह 2014 का लोस चुनाव अमरावती से राकांपा के टिकट पर लड़ गईं, लेकिन तब उन्हें शिवसेना प्रत्याशी आनंदराव अडसूल

से पराजित होना पड़ा।

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राकांपा के समर्थन से जीता पहला चुनाव

2019 में इसी सीट से राकांपा का ही समर्थन लेकर जब निर्दलीय लड़ीं तो उन्होंने अडसूल को करीब 37000 मतों से पराजित कर दिया। पहली बार संसद में पहुंचने के बाद ही वह समझ गईं कि भविष्य राष्ट्रवाद का है। यही कारण है कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के समर्थन से चुनकर आने के बावजूद उन्होंने भाजपा की भाषा बोलनी शुरू कर दी।

यहां तक कि महाराष्ट्र में चल रही महाविकास आघाड़ी सरकार के कार्यकाल में उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के घर के सामने हनुमान चालीसा पढ़ने की घोषणा कर दी। वह वहां हनुमान चालीसा पढ़ तो नहीं पाईं, लेकिन उन्हें गिरफ्तार जरूर होना पड़ा। इस घटना ने उनकी छवि एक प्रखर हिंदूवादी की बना दी, लेकिन

घर में भी जगह-जगह हनुमान जी विराजमान

उनकी यह हनुमानभक्ति स्टंट मात्र नहीं थी। वह अपने चुनाव क्षेत्र से लेकर अपनी हवाई यात्राओं तक में हनुमान चालीसा का पाठ करती देखी जाती हैं। उनके घर में जगह-जगह हनुमानजी की मूर्तियां सम्मान पा रही हैं। वह और उनके पति अमरावती के बाहरी क्षेत्र में 22 मीटर ऊंची एक हनुमान मूर्ति बनवा रहे हैं। अगले वर्ष तक इसके तैयार हो जाने की संभावना है, लेकिन राजनीति के मैदान में कई और चुनौतियां उनके सामने खड़ी हैं।

इस सीट पर रहा है कांग्रेस का वर्चस्व

मूलरूप से यह सीट कांग्रेस के वर्चस्व वाली रही है। 1952 से 1984 तक यहां से लगातार कांग्रेस का ही सांसद चुना जाता रहा है। शुरुआती तीन चुनाव तो पंडित जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में कृषि मंत्री रहे पंजाबराव देशमुख ही जीते। 1991 का चुनाव इसी सीट से प्रतिभाताई पाटिल जीतीं, जो बाद में देश की राष्ट्रपति भी बनीं।

शिवसेना का भी रहा है प्रभाव

1996 से इस सीट पर शिवसेना का प्रभाव बढ़ने लगा। तीन चुनाव यहां से शिवसेना नेता अनंत गुढे जीते। इसके बाद 2009 और 2014 का चुनाव शिवसेना के ही आनंदराव अडसूल जीत चुके हैं। शिवसेना में विभाजन के बाद अडसूल उद्धव ठाकरे का साथ छोड़कर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के खेमे में आ गए थे।

राणा के सामने यह चुनौती भी

भाजपा ने अमरावती से निर्दलीय सांसद नवनीत राणा पर दांव लगाने की सोची तो समझौते में यह सीट इस बार भाजपा के पास आ गई। इससे अडसूल की नाराजगी स्वाभाविक थी। इस लोस क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली छह में से तीन विस सीटों पर कांग्रेस का कब्जा होना भी राणा के लिए एक बड़ी चुनौती है। कांग्रेस ने लोस का टिकट भी पार्टी के विधायक बलवंत वानखड़े को ही दिया है।

राह में रोड़े भी बहुत

इसके अलावा जिले के एक और दबंग विधायक बच्चू कडू भी राणा का जमकर विरोध कर रहे हैं। उनकी प्रहार जनशक्ति पार्टी के दो विधायक हैं। उन्होंने शिवसेना (उद्धव गुट) के एक नेता दिनेश बूब को अपनी पार्टी का टिकट देकर मैदान में उतार दिया है। यानी, इस सीट के अंतर्गत आने वाले छह विधायकों में से सिर्फ एक उनके पति रवि राणा ही उनके पक्ष में हैं।

राणा को 'बाहरी' प्रत्याशी बता रहे भाजपा कार्यकर्ता

भाजपा कार्यकर्ताओं भी नवनीत राणा की उम्मीदवारी को लेकर बहुत खुश नहीं हैं। वह उन्हें 'बाहरी' उम्मीदवार मान रहे हैं। स्थानीय भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं को मनाने का प्रयास प्रदेश भाजपा का शीर्ष नेतृत्व कर रहा है। इतना ही नहीं, शिवसेना के पूर्व सांसद आनंदराव अडसूल को मनाने खुद नवनीत राणा उनके घर जा चुकी हैं।

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