नवनीत राणा के सामने 'अपनों' की चुनौती, लोकप्रियता और बजरंगबली के सहारे मैदान में, जानिए अमरावती का सियासी हाल
Lok Sabha Election 2024 दक्षिण भारत की कई फिल्मों में अभिनय करने के बाद नवनीत राणा ने राजनीति में कदम रखा था। 2014 में उन्होंने अमरावती से राकांपा की टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन शिवसेना प्रत्याशी आनंदराव अडसूल से जीत नहीं सकीं। मगर 2019 में अमरावती से निर्दलीय चुनाव जीता। इस चुनाव में राणा को राकांपा का समर्थन प्राप्त था।
ओमप्रकाश तिवारी, अमरावती। मुद्दा महिला आरक्षण का हो या कोई और, राष्ट्रहित में प्रभावशाली ढंग से अपनी बात रखने वाली 17वीं लोकसभा की निर्दलीय सांसद नवनीत राणा इस बार महाराष्ट्र के अमरावती क्षेत्र से भाजपा की उम्मीदवार हैं।
2019 में जब वह इसी सीट से चुनकर संसद में पहुंचीं तो एक बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनसे हंसकर पूछा था कि मेरी इतनी जबर्दस्त लहर में आप निर्दलीय कैसे चुनकर आ गईं ? इस बार उसी फायर ब्रांड निर्दलीय सांसद को भाजपा ने उस सीट से अपना उम्मीदवार बना दिया, जहां से कभी वह लोस का चुनाव लड़ी ही नहीं। यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है।
नवनीत राणा: फिल्म से सियासत तक
38 वर्षीय नवनीत की स्कूली शिक्षा मुंबई से हुई है। इसके बाद उन्होंने मॉडलिंग का कैरियर चुना। फिर दक्षिण भारत की कई फिल्मों में अभिनय कर खुद को सिने जगत में स्थापित किया। अमरावती से निर्दलीय विधायक रवि राणा से विवाह करने के बाद राजनीति उन्हें भी भा गई और वह 2014 का लोस चुनाव अमरावती से राकांपा के टिकट पर लड़ गईं, लेकिन तब उन्हें शिवसेना प्रत्याशी आनंदराव अडसूलसे पराजित होना पड़ा।यह भी पढ़ें: हैदराबाद में सूची से हटाए गए 5.41 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम, जानिए चुनाव आयोग ने क्यों लिया ये एक्शन
राकांपा के समर्थन से जीता पहला चुनाव
2019 में इसी सीट से राकांपा का ही समर्थन लेकर जब निर्दलीय लड़ीं तो उन्होंने अडसूल को करीब 37000 मतों से पराजित कर दिया। पहली बार संसद में पहुंचने के बाद ही वह समझ गईं कि भविष्य राष्ट्रवाद का है। यही कारण है कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के समर्थन से चुनकर आने के बावजूद उन्होंने भाजपा की भाषा बोलनी शुरू कर दी।
यहां तक कि महाराष्ट्र में चल रही महाविकास आघाड़ी सरकार के कार्यकाल में उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के घर के सामने हनुमान चालीसा पढ़ने की घोषणा कर दी। वह वहां हनुमान चालीसा पढ़ तो नहीं पाईं, लेकिन उन्हें गिरफ्तार जरूर होना पड़ा। इस घटना ने उनकी छवि एक प्रखर हिंदूवादी की बना दी, लेकिन