Lok Sabha Election 2024: सियासी शिखर से हाशिये तक कैसे पहुंचे शरद पवार? कभी कांग्रेस से अलग हो खड़ा किया था साम्राज्य
Lok Sabha Election 2024 अपनी राजनीतिक सूझबूझ से महाराष्ट्र में ही देश की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान हासिल करने वाले शरद पवार आज अपने राजनीतिक करियर के आखिरी पड़ाव में हाशिए में दिख रहे हैं। कभी एनसीपी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाने वाले पवार आज अपने गढ़ में ही संघर्षरत नजर आ रहे हैं। पढ़ें उनके सयासी सफर पर ये रिपोर्ट-
ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। एक प्राचीन शिक्षाप्रद कथा है कि किसी जंगल में एक चूहे पर दया कर एक ऋषि ने पहले उसे बिल्ली बनाया, फिर कुत्ता बनाया, और फिर शेर बना दिया। लेकिन शेर बनकर जब वह चूहा ऋषि पर ही आक्रमण करने झपटा, तो ऋषि ने उसे ‘पुनर्मूषकोभव’ का श्राप देकर पुनः चूहा बना दिया।
आज ऐसी ही स्थिति मराठा छत्रप शरद पवार की पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) की दिखाई दे रही है, जो 1999 में अपने गठन के बाद से राष्ट्रीय दर्जा पाकर पुनः क्षेत्रीय हो गई और अब अपना गढ़ बारामती बचाने के लिए ही जूझती नजर आ रही है।
कांग्रेस से अलग होकर बनाई थी एनसीपी
महाराष्ट्र कांग्रेस के दिग्गज नेता एवं चार बार मुख्यमंत्री रहे शरद पवार ने 1999 के लोकसभा चुनाव से पहले सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस छोड़कर अपने दो साथियों पीए संगमा एवं तारिक अनवर के साथ मिलकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) का गठन किया था। यह कांग्रेस से उनकी दूसरी बगावत थी।उससे पहले 1998 में हुए लोकसभा चुनाव में उन्हीं के नेतृत्व में कांग्रेस महाराष्ट्र में 41 सीटें लड़कर 33 सीटें जीतने में सफल रही थी और चार सीटें अपनी सहयोगी एकीकृत रिपब्लिकन पार्टी को जितवाने में सफल रही थी। इसलिए उन्हें लगा कि वह कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी बनाएंगे, तो पूरी महाराष्ट्र कांग्रेस उनके पीछे खड़ी हो जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
उस दौर में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे प्रतापराव भोसले ने जमकर दबंग शरद पवार का मुकाबला किया। 1999 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस जहां 42 सीटों पर लड़कर 10 सीटें जीतने में सफल रही, वहीं शरद पवार 38 सीटों पर लड़कर छह सीटें ही जीत सके।
जिसे छोड़ा, उसी से गठबंधन
यही नहीं, लोकसभा चुनाव के साथ ही हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी उनकी पार्टी को कांग्रेस से 17 सीटें कम मिलीं, और उन्हें उन्हीं सोनिया गांधी के सामने घुटने टेककर कांग्रेस के साथ गठबंधन करना पड़ा, जिनसे कुछ माह पहले ही बगावत करके वह अलग हुए थे।
यह बात और है कि तब के भाजपा नेता गोपीनाथ मुंडे के अड़ियल रुख के कारण पहले से सत्ता में रहा शिवसेना-भाजपा गठबंधन पुनः सत्ता में आने से चूक गया और कांग्रेस-राकांपा गठबंधन की सरकार जो तब बनी, वह 2014 की मोदी लहर तक चलती रही।