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Lok Sabha Election 2024: बिहार की राजनीतिक धारा को मिले नए नाविक, लेकिन जातियों के भंवर में फंसी नैया! क्या बदलेगी सियासी तस्वीर?

Lok Sabha Election 2024 बिहार की राजनीति नदियों की तरह है जहां समाज की जातीय धारा के साथ बनते-बिगड़ते समीकरण हैं। कहीं जमीन खिसकती हुई तो कहीं फिर से बाहर निकलती हुई। यह समय लोकसभा चुनाव का है। राजनीतिक धाराओं का संगम भी है अलगाव भी। उत्तराधिकारी के रूप में नए नाविक भी तैयार हो रहे हैं। पढ़ें बिहार की नई सियासी तस्वीर पर खास रिपोर्ट..

By Ashwini Kumar Singh Edited By: Sachin Pandey Updated: Sun, 26 May 2024 12:42 PM (IST)
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Lok Sabha Election 2024: बिहार की सियासी पार्टियों का नेतृत्व नए हाथों में जाना शुरू हो गया है।
अश्विनी, पटना। मानसून में बाढ़ और कटाव होना ही होना है। कहीं जमीन नदियों में समा जाती है, कहीं उसमें डूबी भूमि बाहर निकल आती है। नदियां अपनी धारा बदलती रहती हैं। यह प्रकृति का नियम है। कुछ तो प्राकृतिक और कुछ प्रकृति से छेड़छाड़ का परिणाम।

बिहार की राजनीति भी ठीक इन नदियों की तरह है। समाज की जातीय धारा। बनते-बिगड़ते समीकरण। कहीं जमीन खिसकती हुई तो कहीं फिर से बाहर निकलती हुई। यह समय लोकसभा चुनाव का है। राजनीतिक धाराओं का संगम भी है, अलगाव भी। उत्तराधिकारी के रूप में नए नाविक भी तैयार हो रहे हैं। इसमें आने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी देखी जा सकती है।

पुरानी पीढ़ी का प्रशिक्षण

पुरानी पीढ़ी ने राजनीति की धारा में नाव खेने का प्रशिक्षण अच्छे से दिया है। अब हाथ-पांव मारने को अकेला छोड़ दिया, ताकि वे उसकी गहराई को समझते हुए पार उतर सकें। बाहर से उन पर दृष्टि जरूर है। इस नई पीढ़ी में कई चेहरे हैं, जो अपनी राजनीतिक जमीन बचाने को जातीय घेरे का बांध बनाने में जुटे हैं।

‘जातीय बांध’ इसलिए, क्योंकि यह यहां की राजनीति के मूल में है। दो धड़े हैं। एक ओर एनडीए, दूसरी ओर आईएनडीआईए। इन्हें मुख्य नदियां कह सकते हैं। राष्ट्रीय फलक पर गंगा और गंडक की तरह। सहयोगी नदियों से इनकी धारा को और प्रवाह मिलता है, जो क्षेत्रीय स्तर पर प्रभावी हैं।

धाराओं की तरह राजनीति का प्रवाह

नदी की धाराओं की ही तरह राजनीति के प्रवाह को समझा जा सकता है। भाजपा यहां जदयू और लोजपा के साथ प्रवाहित होती रही है तो कांग्रेस राजद के साथ। वाम दल और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) भी है। भाजपा-जदयू का संगम पुराना है, अलगाव भी हुआ, फिर साथ-साथ।

आईएनडीआईए खेमे में कांग्रेस और राजद की पुरानी संगत है। कुल मिलाकर यही राजनीतिक परिदृश्य है, जिसमें नई पीढ़ी अब नावों की पतवार थाम चुकी है। इनमें राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के पुत्र तेजस्वी यादव हैं तो दूसरी ओर दिवंगत हो चुके रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान। राजद की बागडोर अभी लालू के ही हाथ में है, पर नाव तेजस्वी खे रहे।

चिराग के हाथों में नेतृत्व

चिराग अपनी पार्टी की नाव के सर्वेसर्वा बन चुके हैं। नदियों के कटाव की तरह इनकी मूल पार्टी लोजपा दो धड़ों में बंट चुकी है, जिसमें एक चाचा पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व में है। हालांकि, सक्रियता दिख नहीं रही। लोजपा (रामविलास) का नेतृत्व सीधे चिराग के हाथों में। ये दशकों की मूल धाराएं हैं, जिनमें नया नेतृत्व तैयार हो चुका है।

भाजपा में सम्राट चौधरी को क्षेत्रीय उभार मिला है। चुनावी सरगर्मी चरम पर है। बात जातीय समीकरणों की करें तो नेतृत्व को लेकर बिहार में पिछड़े-अति पिछड़े और वंचित समाज के बीच ही असली लड़ाई दिख रही है। सवर्ण का साथ किसी के लिए प्लस प्वाइंट है। मुस्लिम वोट की अहमियत भले हो, पर नेतृत्व जैसी स्थिति नहीं।

जातीय समीकरण

इनमें कौन कितनी सहायक नदियों को जोड़ सकता है, वह आने वाले समय में बहुत कुछ तय करेगा। सो, जोर-आजमाइश इसी की है। पिछ़ड़े-अति पिछड़ों में यादव, कुर्मी, कुशवाहा जैसी जातियां राजनीतिक रूप से प्रभाव रखती हैं। वंचितों में पासवान समाज के साथ मुसहर, रविदास आदि संख्या बल में हैं।

मुसहर समाज से जीतनराम मांझी अभी स्वयं हावी हैं, बेटे संतोष कुमार सुमन को तैयार कर रहे। तेजस्वी का पारंपरिक एमवाई समीकरण साथ है। कटाव तो यहां भी हुआ, पर पिछले विधानसभा चुनाव में ही उन्होंने बांध बांधने का भरपूर प्रयास किया। 

सम्राट चौधरी कुशवाहा जमीन को समेटने में जुटे हैं। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का मार्गदर्शन भी है। इनके पिता शकुनी चौधरी यहां की राजनीति में प्रभावी भूमिका में थे, पर सम्राट भी अब अकेले स्वयं का अस्तित्व गढ़ रहे। चिराग वंचित समाज का बांध बनाने में जुटे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सभा में जिस तरह उन्हें सराहा है, वह इस धारा में भविष्य का संकेत भी है।

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बदल गई धारा

हर बड़ी नदी को सहायक नदियों की जरूरत है। वीआइपी के मुकेश सहनी भाजपा के साथ थे, वहां से कटाव हो गया तो धारा राजद संग जा मिली। स्वयं को उप मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट भी कर चुके हैं। बात क्षेत्रीय क्षत्रपों के मुद्दों की करें तो तेजस्वी ने रोजगार को हथियार बना रखा है।

चिराग आध्यात्मिक गलियारों में भी पर्यटन के औद्योगिक विकास से रोजगार ढूंढ़ रहे। जातीय कैनवास पर भावनाओं का रंग गहरा है। राजनीतिक दलों में नई पीढ़ी लोकसभा चुनाव की जमीन पर आने वाले विधानसभा चुनाव का बिचड़ा भी अभी से बो रही है।

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