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हरियाणा में नोटा को न समझना छोटा, 80% निर्दलीयों को दी पटखनी, शिअद और आम आदमी पार्टी को भी दे चुका मात

Lok Sabha Election 2024 हरियाणा में नोटा को कम आंकना किसी भी दल को भारी पड़ सकता है। हरियाणा में नोटा 80 फीसदी निर्दलीय प्रत्याशियों को धूल चटा चुका है। इसके अलावा शिरोमणि अकाली दल और आम आदमी पार्टी से अधिक वोट नोटा को मिल चुके हैं। सबसे ज्यादा अंबाला के मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया। दूसरे स्थान पर रोहतक रहा है।

By Ajay Kumar Edited By: Ajay Kumar Updated: Tue, 16 Apr 2024 10:58 PM (IST)
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लोकसभा चुनाव 2024: हरियाणा में कम नहीं नोटा की ताकत।
सुधीर तंवर, चंडीगढ़ l हरियाणा में लोकसभा और विधानसभा चुनावों में नोटा (उपरोक्त में कोई नहीं) छुपा रुस्तम साबित हो रहा है। नोटा ने चुनावों में न केवल शिरोमणि अकाली दल (शिअद) और आम आदमी पार्टी (आप) जैसे राजनीतिक दलों को मात देते हुए अधिक वोट हासिल किए हैं, बल्कि 80 प्रतिशत से अधिक निर्दलीय प्रत्याशियों को भी पटखनी दे दी। अन्य विभिन्न दलों के प्रत्याशियों को भी नोटा के आगे घुटने टेकने पड़े।

नोटा दबाने में अंबाला रहा आगे

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में पहली बार नोटा का प्रयोग शुरू किया गया था। पहले ही चुनाव में राज्य के 34 हजार 220 लोगों को कोई प्रत्याशी पसंद नहीं आया और उन्होंने ईवीएम पर नोटा को तरजीह दी। सबसे ज्यादा अंबाला के 7816 मतदाताओं ने किसी भी उम्मीदवार को काबिल नहीं माना। दूसरे स्थान पर रोहतक रहा जहां 4932 वोटरों ने नोटा को चुना। सिरसा तीसरे स्थान पर रहा।

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2019 में 162 प्रत्याशियों को नोटा से कम मिले वोट

2019 के लोकसभा चुनाव में 41 हजार 781 मतदाताओं ने सभी प्रत्याशियों को नकारते हुए नोटा को चुना, जो कुल मतदाताओं का 0.33 प्रतिशत रहा। तब सभी 10 लोकसभा सीटों पर 203 उम्मीदवार चुनावी रण में थे, जिनमें से 162 को नोटा से भी कम वोट मिले। सोनीपत में 23 और करनाल में 10 उम्मीदवार नोटा से हार गए थे।

भिवानी-महेंद्रगढ़ में सबसे कम नोटा का इस्तेमाल

प्रदेश में एक भी लोकसभा सीट ऐसी नहीं थी, जहां नोटा को 2000 से कम वोट मिले हों। सबसे ज्यादा अंबाला में 7943 मतदाताओं ने नोटा को चुना, जबकि भिवानी-महेंद्रगढ़ में नोटा को सबसे कम 2,041 वोट मिले। फरीदाबाद में 4,986, गुड़गांव में 5,389, हिसार में 2,957, करनाल में 5,463, कुरुक्षेत्र में 3,198, रोहतक में 3,001, सिरसा में 4,339 व सोनीपत में 2,464 मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना।

नोटा की जरूरत इसलिए पड़ी

अगर मतदाता को सभी उम्मीदवार गलत लगते हैं और उन्हें कोई उम्मीदवार पसंद नहीं आता तो वह नोटा का बटन दबाकर अपना विरोध दर्ज करा सकते हैं।

2013 में भारत सरकार बनाम पीपल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टीज मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि जनता को मतदान के लिए नोटा का भी विकल्प उपलब्ध कराया जाए। इसके बाद ईवीएम में नोटा का बटन शुरू किया गया।

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