Lok Sabha Election 2024: भाजपा ने 5 सांसदों का टिकट क्यों काटा; यह खोजने में जुटे विरोधी दल, कहीं जातीय फैक्टर तो नहीं...
देश में चुनाव हों और जातीय फैक्टर काम न करे ऐसा भला होता है क्या। झारखंड में सबसे पहले भाजपा ने अपने प्रत्याशियों की घोषणा की। पार्टी ने पांच सांसदों के टिकट विभिन्न कारणों से काट नए चेहरों पर भरोसा जताया। सांसदों का टिकट कटने की भले ही ढेरों वजहें हैं लेकिन विपक्षी गठबंधन इसी बहाने जातीय उपेक्षा की आड़ में इसे मुद्दा बनाने पर काम कर रहा है।
राज्य ब्यूरो, रांची। चुनाव में जाति के इर्द-गिर्द राजनीति स्वाभाविक है। टिकटों के वितरण में जातीय संतुलन का ख्याल रखा जाता है। सामान्य तौर पर संबंधित क्षेत्र में उसी जाति के प्रत्याशी का पलड़ा भारी होता है, जिस समुदाय की उस क्षेत्र में बहुलता होती है। झारखंड का चुनावी संग्राम भी इससे अछूता नहीं है।
झारखंड में सबसे पहले भाजपा ने अपने प्रत्याशियों की घोषणा की। पार्टी ने पांच सांसदों के टिकट विभिन्न कारणों से काट नए चेहरों पर भरोसा जताया। सांसदों का टिकट कटने की भले ही ढेरों वजहें हैं, लेकिन विपक्षी गठबंधन इसी बहाने जातीय उपेक्षा की आड़ में इसे मुद्दा बनाने की रणनीति पर काम कर रहा है। जातीय संगठनों से भी इस बाबत संपर्क किया गया है।
जाति के मुद्दे पर खासकर तीन सीटों के प्रत्याशियों को लेकर घेराबंदी की जा रही है। इनमें पिछले दो-तीन चुनावों से जीत रहे चतरा के सांसद सुनील कुमार सिंह और धनबाद के सांसद पशुपतिनाथ सिंह राजपूत समुदाय से हैं। दोनों ने पार्टी का निर्णय शिरोधार्य कर लिया है। हजारीबाग के सांसद जयंत सिन्हा का भी टिकट कटा है। वे कायस्थ समुदाय से हैं। उन्होंने भी विरोध नहीं किया है।
इस बार भाजपा ने इन सीटों पर इस समीकरण को दरकिनार कर टिकट बांटे हैं। महागठबंधन इसे अपने तरीके से प्रचारित कर रहा है। महागठबंधन ने कोडरमा संसदीय क्षेत्र से भाकपा माले के बगोदर से विधायक विनोद कुमार सिंह को टिकट दिया है। इसके जरिए पूरे प्रदेश में राजपूत समुदाय तक यह संदेश दिया जा रहा है कि विपक्षी गठबंधन इस समुदाय की भावना का ख्याल रख रहा है।
क्या विपक्ष को इस रणनीति से मिलेगा फायदा?
दरअसल क्षत्रिय महासभा ने जाति से एक भी प्रत्याशी नहीं दिए जाने पर आपत्ति जताई थी। ऐसे में आईएनडीआई गठबंधन इसे भुनाने की तैयारी में है कि उसने संबंधित समुदाय की भावनाओं को सम्मान दिया। इसके लिए जातीय संगठनों से भी संपर्क किया जा रहा है, ताकि वे चुनाव के दौरान खुलकर मदद के लिए सामने आएं। इससे संबंधित समुदाय की गोलबंदी कर चुनावी फायदा बटोरने की मंशा है। विपक्षी गठबंधन को उम्मीद है कि इससे चुनाव में फायदा होगा।बाकी प्रत्याशी उतारने में भी इसी रणनीति पर काम
विपक्षी गठबंधन के प्रत्याशियों की पूरी सूची अभी जारी नहीं हुई है। गठबंधन से कांग्रेस ने तीन, झामुमो ने दो और भाकपा माले ने एक प्रत्याशी की घोषणा की है। भाकपा ने गठबंधन से इतर अपने प्रत्याशी उतारे हैं। वहां भी जातीय समीकरण के साथ-साथ संतुलन का पूरा ख्याल रखने की कोशिश की जा रही है, ताकि प्रतिद्वंद्वी को इसके जरिए झटका दिया जा सके।
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