Lok Sabha Election 2024: नवागत-नौसिखुए हैं तो धाकड़-खुर्राट तक आखिरी रण में हर रंग के दांव; किसका चलेगा जादू?
Lok Sabha Election 2024 phase 7 लोकसभा चुनाव के सातवें और आखिरी रण मे बिहार के आठ संसदीय क्षेत्रों में मतदान होना है। उनमें से चार (पाटलिपुत्र पटना साहिब जहानाबाद नालंदा) मगध परिक्षेत्र के अंश हैं और चार शाहाबाद (आरा बक्सर सासाराम काराकाट) के। इसमें गंवाने के लिए महागठबंधन के पास कुछ भी नहीं तो राजग की संभावना का फलक भी पिछली बार से आगे नहीं बढ़ने वाला।
राज्य ब्यूरो, पटना। इस बार के चुनावी महासमर का शायद ही कोई रंग होगा, जो आखिरी दौर के मैदान में नहीं दिखे। आमने-सामने के पुराने व पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी हैं तो त्रिकोणीय संघर्ष वाली रणभूमि भी। दांव आजमाने वाले नवागत और नौसिखुए हैं तो धाकड़-खुर्राट राजनीतिज्ञ भी। बड़बोला है तो सिनेमाई पर्दे का सितारा भी। जीत की हैट-ट्रिक का प्रयास है तो लगातार तीसरी हार से बचने का उपक्रम भी। पिछली बार सबसे कम मतों के अंतर से जीत का निर्णय करने वाले जहानाबाद में मतदान इसी चरण में होना है।
पिछले छठ चरणों में अब तक 32 संसदीय क्षेत्रों में वोट गिराए जा चुके हैं। आखिरी चरण में आठ संसदीय क्षेत्रों में मतदान होना है। उनमें से चार (पाटलिपुत्र, पटना साहिब, जहानाबाद, नालंदा) मगध परिक्षेत्र के अंश हैं और चार शाहाबाद (आरा, बक्सर, सासाराम, काराकाट) के। इस चरण में गंवाने के लिए महागठबंधन के पास कुछ भी नहीं तो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की संभावना का फलक भी पिछली बार से आगे नहीं बढ़ने वाला।
अभी आठ में से पांच सीटों पर भाजपा है
पिछली बार इन आठ में से पांच सीटों पर भाजपा विजयी रही थी, जहां इस बार भी वह मैदान में है। जदयू के खाते में गई तीन में से एक काराकाट में इस बार राष्ट्रीय लोक मोर्चा के उपेंद्र कुशवाहा मैदान में हैं। काराकाट में पिछली बार जदयू के महाबलि सिंह विजयी रहे थे, जो इस बार बेटिकट हो चुके हैं। नरेन्द्र मोदी की पहली सरकार में मंत्री रह चुके उपेंद्र कुशवाहा ने अगले चुनाव में पाला बदल अपनी संभावना गंवा दी थी।
एक बार फिर 180 डिग्री के कोण पर घूमकर वे पुराने कुनबे में पहुंच गए हैं। पार्टी का नाम-निशान भी बदल गया है। दलगत प्रत्याशी के रूप में मुकाबला भाकपा (माले) के राजाराम कुशवाहा से है। हालांकि, निर्दलीय मैदान में उतरे भोजपुरी गायक व अभिनेता पवन सिंह शानदार त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बनाए हुए हैं।
2019 में जहानाबाद में हुई थी सबसे कम मतों से जीत
इस बार बसपा के टिकट पर दांव आजमा रहे अरुण कुमार ने कुछ ऐसी ही स्थिति जहानाबाद में बनाई है। वहां पिछली बार जदयू के चंदेश्वर चंद्रवंशी ने मात्र 1751 मतों के अंतर से बाजी मारी थी। वह बिहार में सबसे कम अंतर वाली जीत थी। इस बार भी प्रतिद्वंद्वी राजद के सुरेंद्र यादव ही हैं। यहां दबंगई व भ्रष्टाचार से लेकर जाति-धर्म तक की गांठें कभी खुल रहीं तो कभी बंद हो रहीं। बेड़ा पार लगाने के लिए एक-दूसरे खेमे से बड़े-बड़े महारथी घूम-फिर रहे।
बक्सर में चतुष्कोणीय संग्राम
बक्सर में चतुष्कोणीय संग्राम है और उनमें से तीन चेहरे पहली बार मैदान में हैं। एक पल खिलखिलाने और दूसरे पल आंसू बहाने वाले अश्विनी चौबे यहीं से चुनाव जीतकर केंद्र में दो बार मंत्री रहे। इस बार बेटिकट हो चुके हैं। उनकी जगह भाजपा मिथिलेश तिवारी को लेकर आई है। महागठबंधन की सरकार में तीरंदाज बयानों के लिए चर्चित रहे कृषि मंत्री सुधाकर सिंह राजद के प्रत्याशी हैं।
बसपा के हाथी पर ददन पहलवान चढ़े हुए हैं तो भाजपा के टिकट की आस में आईपीएस की नौकरी छोड़ चुके आनंद मिश्रा निर्दलीय ताल ठोक रहे। ददन को संसदीय चुनाव में दांव का पुराना अनुभव हैं, लेकिन बाकी तीनों के लिए पहला अवसर है।
अपने नेताओं के चेहरे का ही आखिरी सहारा है जदयू के कौशलेंद्र कुमार
चौथी बार नालंदा के मैदान में उतरे हैं। नालंदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह जिला है। महागठबंधन में भाकपा (माले) के संदीप सौरभ उनसे मुकाबिल हैं। जेएनयू छात्रसंघ के सितारों में से एक संदीप पालीगंज से विधायक चुने जाने से पहले तक निजी कॉलेज में लेक्चरर हुआ करते थे।
लड़ाई सीधी है और दोनों के लिए अपने नेताओं के चेहरे का ही आखिरी सहारा है। सहारे की यही स्थिति सासाराम में भी बनी है, जहां एक पांव आए और दूसरे हाथ टिकट पाए वाली कहावत चरितार्थ है। वे कांग्रेस प्रत्याशी मनोज कुमार हैं, जो पिछली बार बसपा के टिकट पर यहां तीसरे पायदान पर रहे थे।
प्रतिद्वंद्वी भाजपा के शिवेश राम इस मैदान में पहली बार हैं, लेकिन उनके पिता मुनिलाल संसद में तीन बार इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। पिछली बार यहां से भाजपा के छेदी पासवान विजयी रहे थे, जो इस बार बेटिकट हो गए हैं। भाजपा ने अपने जिन चार सांसदों को बेटिकट किया, उनमें से दो के संसदीय क्षेत्र आखिरी दौर वाले ही हैं।
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तीन का तिलिस्म पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र में भी है
भाजपा के रामकृपाल यादव लगातार तीसरी जीत के लिए बेकरार हैं तो राजद की मीसा भारती तीसरी हार को दरकिनार कर पहली जीत के लिए आकुल। एक-दूसरे के गुण-अवगुण से अवगत दोनों पुराने प्रतिद्वंद्वी हैं। बगल के पटना साहिब में कांग्रेस ने हर चुनाव में प्रत्याशी बदलने की अपनी परंपरा को इस बार भी कायम रखा।
उसके प्रत्याशी अंशुल अविजीत के लिए चुनावी राजनीति का यह पहला अनुभव है। हालांकि, परिवार की राजनीतिक पृष्ठभूमि समृद्ध है। प्रतिद्वंद्विता भी ऐसे ही समृद्ध राजनीतिक विरासत वाले भाजपा के रविशंकर प्रसाद से है, जो उम्र के साथ अनुभव में भी बड़े हैं। देखना दिलचस्प होगा कि यहां जनता अपना दिल किसके लिए बड़ा करती है।
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