भाजपा के संगठन के रूप में पहले से ज्यादा मजबूत बनाने और चुनाव के लिए अचूक रणनीति की बात करेंगे तो एक ही नाम दिमाग में आएगा। वह है केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का। अमित शाह के गृह मंत्री रहते हुए ही जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया। तत्काल तीन तलाक पर प्रतिबंध लगा और हाल ही में सीएए को पूरे देश में लागू किया गया। 59 वर्षीय शाह एक बार फिर चुनावी युद्ध में अपने सैनिकों का नेतृत्व करते हुए नजर आएंगे।
नितिन गडकरी: मेरा काम ही पहचान हैनितिन गडकरी भाजपा सरकार के उन मंत्रियों में से एक हैं जो सरकार के काम को पुख्ता बनाते हैं। देशभर में तेजी से बन रहे हाईवे को देखकर अब तो जनता तक कहने लगी है कि काम हो तो नितिन गडकरी जैसा। गांव की गलियों से लेकर देश की सीमा तक सड़कों का जाल बिछ रहा है, जिससे मोदी सरकार की छवि तेजी से काम करने वाली सरकार की बनी है।
साख का सवाल
राहुल गांधी: भारत जोड़ो न्याय यात्रा की होगी परीक्षा2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। यहां तक कि वह अमेठी से स्वयं भी हार गए थे। हालांकि, वायनाड से जीतकर उन्होंने अपनी लोकसभा सदस्यता बचा ली। मगर कांग्रेस के गढ़ में उनकी हार पार्टी को हतोत्साहित करती है।
ऐसे में इस बार सवाल है कि क्या वह अमेठी लौटेंगे? उन्होंने कन्याकुमारी से कश्मीर तक भारत जोड़ो यात्रा निकाली, लेकिन तीन तीन राज्यों में चुनावी हार इस पर सवालिया निशान लगा दिया। ऐसे में भारत जोड़ो न्याय यात्रा में 53 वर्षीय राहुल गांधी कांग्रेस को कितनी सीटें जितवाते हैं यह तो समय ही बताएगा।
प्रियंका गांधी वाड्रा: विरासत बचाने की चुनौतीसोनिया गांधी लोकसभा चुनाव लड़ने से मना कर चुकी हैं। कयास हैं कि प्रियंका रायबरेली से उम्मीदवार हो सकती हैं। ऐसे में उन्हें अपना राजनीतिक सफर शून्य से शुरू करना होगा। क्योंकि वह आजतक कोई चुनाव नहीं लड़ी हैं। वहीं, राहुल के 2019 में अमेठी से हारने के बाद अब उन पर यूपी में गांधी-नेहरू परिवार की राजनीतिक विरासत को बचाने की जिम्मेदारी भी होगी।
अखिलेश यादव: अस्तित्व बचाने उतरेंगेभाजपा को रोकने के लिए एक बार फिर अखिलेश यादव ने यूपी में गठबंधन का दांव खेला है। यूपी में उनके साथ कांग्रेस भी है। हालांकि, हाल ही में जयंत सिंह की रालोद के एनडीए में लौट जाने से झटका भी लगा है। पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा के साथ गठबंधन किया था और पांच सीटें जीती थीं। इस बार अखिलेश के सामने अपनी सीटें बढ़ाने की चुनौती है।
उद्धव ठाकरे: विधायक और सरकार ही नहीं पार्टी भी गईमहाराष्ट्र में शिवसेना का मतलब ठाकरे हुआ करता था। मगर उद्धव ठाकरे ने जैसे ही भाजपा को छोड़ कांग्रेस का दामन थामा उनकी विधायक और सरकार तो गई ही। उनकी पार्टी भी उनसे छिन गई। अब उनकी पार्टी का नाम है शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे)। ऐसे में आगामी लोकसभा चुनाव में क्या रहेगी रणनीति इस सबकी नजरें रहेंगी।
शरद पवार: भतीजे ने छीन ली पार्टीराष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुखिया शरद पवार का हाल भी उद्धव ठाकरे जैसा ही है। उनके भतीजे अजित पवार ने शिवसेना (शिंदे गुट) से हाथ मिला राज्य (कांग्रेस, शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) की सरकार को गिरा दिया। अब देखना होगा शरद पवार लोकसभा चुनाव में भतीजे के खिलाफ क्या रणनीति अपनाते हैं।
चुनाव में इंपैक्ट तो इनका भी होगा
योगी आदित्यनाथ: काम के दम पर विदेश तक गूंजा नामयूपी में जब योगी आदित्यनाथ को सीएम बनाया गया तो बहुत सवाल उठे थे। मगर अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने साबित किया अच्छा काम करने के लिए नीयत चाहिए, जो कि उनके पास है। यही कारण है कि कोरोना काल में उनके काम की तारीफ ऑस्ट्रेलिया के एक एमपी ने भी की थी। इसी कारण आज यूपी की छवि वैश्विक स्तर पर भी चमक रही है।
ममता बनर्जी: बिखरे विपक्ष का मजबूत चेहरालगातार मजबूत होती भाजपा का विरोध करने के लिए कांग्रेस ने कई अन्य दलों संग मिलकर आइएनडीआइए बनाया। मगर वह तृणमूल को नहीं साध पाई। जबकि ममता बनर्जी भाजपा के विरोध में एक मजबूत और सशक्त चेहरा हैं।
नीतीश कुमारः 2019 का प्रदर्शन के दोहराने की उम्मीदबिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर भाजपा के साथ आ गए हैं। पिछली बार 2019 में भाजपा-जदयू ने बिहार में 40 में से 39 सीट पर कब्जा किया था। ऐसे में नीतीश के फिर से साथ आने से इस बार भी वही प्रदर्शन के दोहराने की उम्मीद होगी।
मल्लिकार्जुन खरगे: बड़ी है लड़ाईअक्टूबर 2022 में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जब पद छोड़ा तो पार्टी की बागडोर मल्लिकार्जुन खरगे ने संभाली। 81 वर्षीय खरगे ऐसे दौर में कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे हैं, जब उनका मुकाबला दो लोकसभा चुनाव से अजेय भाजपा से है। इसके अलावा उन पर कांग्रेस के अस्तित्व को बचाने की जिम्मेदारी भी है।
असदुद्दीन ओवैसी: किसका खेल बिगाड़ेंगेAIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने जब भी तेलंगाना से बाहर निकल अन्य राज्यों के चुनाव में हिस्सा लिया। उन्होंने भाजपा के सामने खड़े दलों के लिए हालात चुनौतीपूर्ण बना दिए। ऐसे में कुछ दल और नेता उन्हें भाजपा की बी टीम भी करार देते हैं। 54 वर्षीय ओवैसी तेलंगाना के अलावा देश के विभिन्न राज्यों में अपनी पार्टी का जनाधार बढ़ाने में जुटे हुए हैं। ऐसे में देखना होगा कि इस बार वह विपक्षी दलों का गणित बिगाड़ेंगे या भाजपा का।
एमके स्टालिनः दक्षिण में आइएनडीआइए की उम्मीदडीएमके सुप्रीमो एमके स्टालिन ने तमिलनाडु में अपना प्रभुत्व स्थापित कर दक्षिण के राज्य में भाजपा कड़ा विरोध किया है। ऐसे में उम्मीद है कि वामपंथियों और कांग्रेस को साथ लेकर स्टालिन राज्य में विपक्षी गठबंधन आइएनडीआइए को जरूरी चुनावी बढ़त दिला सकेंगे।
71 वर्षीय स्टालिन गांधी-नेहरू परिवार के कट्टर समर्थक हैं। हालांकि, उनके पुत्र और पार्टी के कुछ नेताओं की ‘सनातन’ पर विवादास्पद टिप्पणियों ने कई बार आइएनडीआइए को बैकफुट पर ला दिया है। इसका गठबंधन को उत्तर भारत में नुकसान उठाना पड़ सकता है।
यह भी पढ़ें- Lok Sabha Election 2024: 'वफा खुद से नहीं होती और...' EVM पर सवाल उठाने वालों को मुख्य चुनाव आयुक्त का शायराना जवाब यह भी पढ़ें- Lok Sabha Election: प्रदर्शन के आधार पर वोट मांगेगा NDA, पीएम मोदी ने विपक्ष को बताया दिशाहीन