Move to Jagran APP

Lok Sabha Election 2024: आम युवा को टिकट नहीं देते राजनीतिक दल, निर्दलियों पर रोक, लोकतंत्र को संकुचित करेगा

Lok Sabha Election 2024 निर्दलियों के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने से लोकतंत्र संकुचित होगा। दरअसल निर्दलीय प्रत्याशी की निष्ठा अपने क्षेत्र की जनता के प्रति होती है। वहीं दल से आने वाले प्रत्याशी की निष्ठा हाईकमान के प्रति होती है। राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव दिखता है। निर्दलियों के रूप में वे युवा भी चुनाव में हिस्सा ले सकते हैं जिनका कोई राजनीतिक पृष्ठ भूमि नहीं है।

By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Mon, 22 Apr 2024 08:00 PM (IST)
Hero Image
लोकसभा चुनाव 2024: आम युवा को राजनीतिक दल टिकट नहीं देते हैं।
जागरण, नई दिल्ली। भारत विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देशों में से एक है। प्रथम लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक चुनाव के माध्यम से लोकतंत्र निरंतर विकास की ओर अग्रसर है। लोकतंत्र में सभी को मताधिकार और चुनाव लड़ने का अधिकार मिले, ये महत्वपूर्ण बात होती है।

भारत में चुनाव के माध्यम से विविधता में एकता की भावना सुदृढ़ होती है। अभी जब 2024 का लोकसभा चुनाव चल रहा है, बहुत सारे मुद्दों में से एक मुद्दा निर्दलीय प्रत्याशियों की स्थिति को लेकर चर्चा में है। कुछ लोगों और संस्थाओं की राय है कि निर्दलीय उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से रोका जाए।

घटती गई निर्दलीयों की संख्या

अगर हम निर्दलियों की स्थिति पर अगर नजर डालें तो प्रथम लोकसभा चुनाव में 37 उम्मीदवार विजयी हुए और 2019 की लोकसभा चुनाव में चार ही निर्दलीय विजयी हुए। और इनमें से जो एक प्रवृत्ति देखी जा रही कि चुनाव में भाग लेने वाले निर्दलीय प्रत्याशियों की अपेक्षा जीतने वाले निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्या निरंतर कम हुई है, साथ ही यह भी आरोप लगाया जाता है कि बहुत सारे निर्दलीय उम्मीदवार डमी या वोटकटवा के रूप में चुनाव लड़ते हैं, जो एक स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रक्रिया में नकारात्मक बिंदु के रूप में उभर कर सामने आता है।

सामूहिक हित विवादास्पद विचार

विधि आयोग ने भी अपनी सिफारिश में निर्दलीयों के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की बात कही है। भारतीय लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की वर्चस्ववादी व्यवस्था सामूहिक हित को ध्यान में रखकर अपनी नीतियां व कार्यक्रम तय करती। भारत जैसे विविधता वाले देश में सामूहिक हित एक विवादास्पद विचार है, कभी कभी छोटी अस्मिताएं राजनीतिक दलों की मुख्य व्यवस्था में नहीं आ पाती, वो हाशिए पर ही रह जाती हैं।

दलों में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव

राजनीतिक दलों के भीतर उनकी चर्चा शायद ही मुख्य धारा में आ पाए। इसकी वजह यह है कि राजनीतिक दलों में प्रायः आंतरिक लोकतंत्र का अभाव दिखता है। ज्यादातर चीजों को हाईकमान नियंत्रित करता है और हाईकमान कुछ व्यक्तियों या एक परिवार का पर्याय होता है, जो दल संबंधी नीतियों, कार्यक्रमों एवं प्रत्याशियों का निर्णय अपने प्रति निष्ठा या अपने लाभ के आधार पर तय करते हैं।

यह भी पढ़ें: क्यों घट रही निर्दलीय सांसदों की संख्या? क्या आप जानते हैं पहले लोकसभा चुनाव में कितना था इनका आंकड़ा

इसलिए प्रत्याशी अपने निर्वाचन क्षेत्र, जहां से वह चुना जाता है, के प्रति कम निष्ठा रखता हैं, अपने दल व हाई कमान के प्रति अधिक निष्ठा रखता है।

निर्दलीय अपने क्षेत्र के मतदाता के प्रति निष्ठा रखता है

वहीं निर्दलीय प्रत्याशी अपने निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं के प्रति निष्ठा रखता है, जो लोकतंत्र की मजबूती के लिए अपरिहार्य है, जो लोग यह आरोप लगाते हैं कि निर्दलीय प्रत्याशी डमी या वोटकटवा के रूप में खड़े होते हैं, उन्हें देखना चाहिए कि भारतीय चुनाव आयोग में पंजीकृत तकरीबन 1,406 दलों में से कुछ ही दल चुनाव में अपना खाता खोल पाए हैं।

बाहरी प्रत्याशी भी थोपते हैं दल

राजनीतिक दल अपना प्रत्याशी तय करते समय निर्वाचन क्षेत्र की जनता की राय को शायद ही कभी आधार बनाते हैं। कई बार वे बाहरी उम्मीदवार भी जनता पर थोप देते हैं। निर्दलीय प्रत्याशी उसी क्षेत्र व जनता के बीच का ही होता है। वह टिकट काटे जाने के भय से या दल के प्रति निष्ठा बनाए रखने के दबाव से मुक्त रह कर स्वतंत्र रूप से कार्य करता है।

निर्दलियों पर रोक, लोकतंत्र को संकुचित करेगा

राजनीतिक दलों में प्रत्याशी चुनने की प्रक्रिया में अभी तक कोई ठोस बदलाव नहीं आया है। इसीलिए अब जनता विकल्प चाहती है। इसीलिए 2019 के चुनाव में लगभग 65,00,000 से अधिक लोगों ने नोटा का प्रयोग किया था। तो ऐसी स्थिति में लोकतंत्र को कुछ परिवारों के या उन्हीं की राजनीतिक व्यवस्था यानी राजनीतिक दल के रूप में बनाई गई व्यवस्था के हवाले छोड़ देना और निर्दलियों पर प्रतिबंध लगा देना निस्संदेह भारत के लोकतंत्र को संकुचित ही करेगा।

इसलिए निर्दलीय आवश्यक

निर्दलियों के रूप में चुनाव में बहुत सारे युवा भाग लेते हैं, जिनकी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं होती और एक तरह से वे इन चुनावों में भाग लेकर राजनीतिक प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। इसीलिए निर्दलीय उम्मीदवार भारतीय लोकतंत्र की जड़ों को मजबूती के लिए अत्यंत आवश्यक है।

गंभीर उम्मीदवार ही उतरें

ये जरूर है कि चुनाव आयोग को एक व्यवस्था बनानी चाहिए जिससे चुनाव को गंभीरता से लेने वाले उम्मीदवार ही चुनाव में उतरें। सिर्फ चुनाव लड़ने के लिए या चर्चा में आने के लिए चुनाव के मैदान में उतरने वाले उम्मीदवारों को हतोत्साहित करने की जरूरत है। जैसे अभी हाल ही में एक प्रस्ताव आया है की 10 प्रस्तावकों की जगह 100 प्रस्तावकों को नामांकन के लिए जरूरी कर दिया जाए, साथ ही जमानत राशि भी बढ़ा दी जाए।

सभी की भागीदारी लोकतंत्र के हित में

सभी को भागीदारी का मौका देने में ही लोकतंत्र की सुंदरता है। भागीदारी के अवसरों को सीमित करना लोकतंत्र के हित में नहीं है। इससे मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था में बड़े राजनीतिक दलों का एकाधिकार हो जाएगा और किसी दल में शामिल हुए बिना चुना व लड़ने का विकल्प ही नहीं बचेगा। डॉ. सत्येन्द्र प्रताप सिंह असिस्टेंट, प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय।

यह भी पढ़ें: निर्दलीय या वोटकटवा: अगर इनके चुनाव लड़ने पर लगी रोक तो क्या होगा! पढ़ें विधि आयोग की सिफारिश