Lok Sabha Election 2024: आम युवा को टिकट नहीं देते राजनीतिक दल, निर्दलियों पर रोक, लोकतंत्र को संकुचित करेगा
Lok Sabha Election 2024 निर्दलियों के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने से लोकतंत्र संकुचित होगा। दरअसल निर्दलीय प्रत्याशी की निष्ठा अपने क्षेत्र की जनता के प्रति होती है। वहीं दल से आने वाले प्रत्याशी की निष्ठा हाईकमान के प्रति होती है। राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव दिखता है। निर्दलियों के रूप में वे युवा भी चुनाव में हिस्सा ले सकते हैं जिनका कोई राजनीतिक पृष्ठ भूमि नहीं है।
जागरण, नई दिल्ली। भारत विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देशों में से एक है। प्रथम लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक चुनाव के माध्यम से लोकतंत्र निरंतर विकास की ओर अग्रसर है। लोकतंत्र में सभी को मताधिकार और चुनाव लड़ने का अधिकार मिले, ये महत्वपूर्ण बात होती है।
भारत में चुनाव के माध्यम से विविधता में एकता की भावना सुदृढ़ होती है। अभी जब 2024 का लोकसभा चुनाव चल रहा है, बहुत सारे मुद्दों में से एक मुद्दा निर्दलीय प्रत्याशियों की स्थिति को लेकर चर्चा में है। कुछ लोगों और संस्थाओं की राय है कि निर्दलीय उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से रोका जाए।
घटती गई निर्दलीयों की संख्या
अगर हम निर्दलियों की स्थिति पर अगर नजर डालें तो प्रथम लोकसभा चुनाव में 37 उम्मीदवार विजयी हुए और 2019 की लोकसभा चुनाव में चार ही निर्दलीय विजयी हुए। और इनमें से जो एक प्रवृत्ति देखी जा रही कि चुनाव में भाग लेने वाले निर्दलीय प्रत्याशियों की अपेक्षा जीतने वाले निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्या निरंतर कम हुई है, साथ ही यह भी आरोप लगाया जाता है कि बहुत सारे निर्दलीय उम्मीदवार डमी या वोटकटवा के रूप में चुनाव लड़ते हैं, जो एक स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रक्रिया में नकारात्मक बिंदु के रूप में उभर कर सामने आता है।सामूहिक हित विवादास्पद विचार
विधि आयोग ने भी अपनी सिफारिश में निर्दलीयों के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की बात कही है। भारतीय लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की वर्चस्ववादी व्यवस्था सामूहिक हित को ध्यान में रखकर अपनी नीतियां व कार्यक्रम तय करती। भारत जैसे विविधता वाले देश में सामूहिक हित एक विवादास्पद विचार है, कभी कभी छोटी अस्मिताएं राजनीतिक दलों की मुख्य व्यवस्था में नहीं आ पाती, वो हाशिए पर ही रह जाती हैं।
दलों में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव
राजनीतिक दलों के भीतर उनकी चर्चा शायद ही मुख्य धारा में आ पाए। इसकी वजह यह है कि राजनीतिक दलों में प्रायः आंतरिक लोकतंत्र का अभाव दिखता है। ज्यादातर चीजों को हाईकमान नियंत्रित करता है और हाईकमान कुछ व्यक्तियों या एक परिवार का पर्याय होता है, जो दल संबंधी नीतियों, कार्यक्रमों एवं प्रत्याशियों का निर्णय अपने प्रति निष्ठा या अपने लाभ के आधार पर तय करते हैं।यह भी पढ़ें: क्यों घट रही निर्दलीय सांसदों की संख्या? क्या आप जानते हैं पहले लोकसभा चुनाव में कितना था इनका आंकड़ाइसलिए प्रत्याशी अपने निर्वाचन क्षेत्र, जहां से वह चुना जाता है, के प्रति कम निष्ठा रखता हैं, अपने दल व हाई कमान के प्रति अधिक निष्ठा रखता है।